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पहली जयंती पर याद किए जा रहे कल्याण सिंह: जब बोले थे - बंद कराइए तमाशा
राजस्थान के पूर्व राज्यपाल और भाजपा के वरिष्ठ नेता रहे दिवंगत कल्याण सिंह की पहली जयंती ( Kalyan Singh Birth Anniversary ) आज 'स्मृति दिवस' के रूप में मनाई जा रही है। बीजेपी के वरिष्ठ नेता रहे कल्याण सिंह (Kalyan Singh) साल 1932 में आज के ही दिन अतरौली में जन्मे थे. पूरे प्रदेश में कल्याण सिंह जैसा दिग्गज नेता के चर्चे रहे हैं. राम जन्भूमि को आज जो रूप मिला है, उसके लिए संघर्ष करने वालों में से एक कल्याण सिंह भी थे. वे हमेशा खुद से पहले अपने लोगों, अपने प्रदेश के बारे में सोचते थे. यही वजह थी कि उनके निधन पर इतनी भीड़ इकट्ठा हुई, जिसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता था.
सीएम योगी ने कल्याण सिंह को किया याद
उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत नेता कल्याण सिंह को याद कर सोशल मीडिया पर पोस्ट किया. सीएम योगी ने अपने ट्विटर अकाउंट पर पोस्ट कर लिखा, "लोकप्रिय जननेता, राम मंदिर आंदोलन में अतुल्य योगदान देने वाले भाजपा परिवार के कर्तव्यनिष्ठ सदस्य, उ.प्र. के पूर्व मुख्यमंत्री श्रद्धेय कल्याण सिंह जी को उनकी जयंती पर कोटिशः नमन. आदरणीय बाबू जी को उनके दृढ़ निर्णयों तथा शुचितापूर्ण जीवन के लिए सदैव स्मरण किया जाएगा.
आज उनके बारे में कुछ ऐसे किस्से बताते हैं जो शायद सबको न पता हों.
बात साल 2014 की है। माल एवेन्यू के अपने आवास पर कल्याण सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई थी। और कल्याण ने मोदी की अगुवाई की तारीफ की और कहा कि 2014 में बीजेपी प्रचंड बहुमत से जीतेगी।
1998 में तत्कालीन राज्यपाल रोमेश भंडारी ने कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त कर जगदंबिका पाल को सीएम बना दिया। 48 घंटे के भीतर पाल पैदल हो गए और कल्याण फिर सीएम बने यह जगजाहिर किस्सा है। उस समय आरएस माथुर यूपी के मुख्य सचिव थे और इकलौते अधिकारी जो एक ही साथ पाल और कल्याण दो मुख्यमंत्रियों के सचिव थे। अपनी किताब 'क्राफ्ट ऑफ पॉलिटिक्स : पॉवर फॉर पैट्रेनज' में माथुर लिखते हैं कि जगदंबिका पाल कोर्ट के उस फैसले की कॉपी के लिए अड़े थे, जिसमें उनकी नियुक्ति अवैध बताई गई थी। इसके बिना वह सीएम दफ्तर छोड़ने को तैयार नहीं थे। दूसरी ओर कुछ बीजेपी विधायकों का मत था कि उन्हें जबर्दस्ती कमरे से बाहर किया जाए।
और जगदंबिका पाल बने एक दिन के सीएम
इसी बीच कुछ प्रभावशाली लोगों ने कहा कि कल्याण सिंह के फिर से सीएम नियुक्त होने का राजभवन से आदेश जारी हो। माथुर ने इस बार में जब विधि अधिकारी एनके महरोत्रा से पूछा तो उन्होंने कहा कि जब जगदंबिका पाल की नियुक्ति ही अवैध है तो कल्याण सिंह का कार्यकाल ब्रेक ही नहीं हुआ। ऐसे में वह सीएम बने हुए हैं। बड़ा सवाल यह था कि यह संदेश मीडिया व जनता तक कैसे दिया जाए कि कल्याण की बहाली हो चुकी है। दबाव इतना था कि व्यवस्था कभी भी अराजकता की ओर बढ़ सकती थी।
इस तरह से निकला रास्ता
मंथन के बाद रास्ता निकला और आरएस माथुर ने कल्याण सिंह से अनुरोध किया कि यदि वह कैबिनेट की बैठक कर लें तो उसका प्रेसनोट जारी कर दिया जाएगा, इससे सारा संदेश स्पष्ट हो जाएगा। कल्याण ने सहजता से यह बात स्वीकार कर ली और जगदंबिका पाल ने भी सीएम दफ्तर छोड़ दिया। एक बड़े कद का राजनेता जिसकी सीएम कुर्सी जबर्दस्ती छीन ली गई थी उनकी परिपक्वता ने सहजता से एक बड़ा संकट टाल दिया।
कल्याण की बर्खास्तगी के सूत्रधार रहे तत्कालीन राज्यपाल रोमेश भंडारी कल्याण के फिर कुर्सी पर बैठने के कुछ दिन बाद ही नैनीताल (तब उत्तराखंड नहीं बना था) गए। भंडारी के फैसले से नाराज कुछ कार्यकर्ताओं की भीड़ ने उनकी गाड़ी रोक ली, उन्हें आगे जाने ही नहीं दिया। स्थानीय प्रशासन ने यह कहकर हाथ खड़े कर दिए कि राज्यपाल के आने की पूर्व सूचना नहीं थी।
कल्याण बोले- बंद कराइए तमाशा
रोमेश भंडारी ने मुख्य सचिव आरएस माथुर को फोन कर नाराजगी जाहिर की। माथुर ने फोन रखा ही था कि दूसरा फोन सीएम कल्याण सिंह का था। उनके स्वर रोमेश भंडारी से ज्यादा तल्ख थे। उन्होंने साफ शब्दों में कहा, 'यह तमाशा तत्काल बंद कराइए, पद की गरिमा का सम्मान हर-हाल में होना चाहिए।' कल्याण के तेवर से अफसरों के पसीने आ गए और कुछ ही देर में भंडारी के काफिले का रास्ता साफ हो गया।
सरल स्वभाव के थे कल्याण सिंह
बीजेपी के कद्दावर नेता रहे दिवंगत कल्याण सिंह की यादें संभल जिले के देवापुर गांव से जुड़ी हुई हैं. संभल में उनका ससुराल है. उनकी सादगी और सरल स्वभाव की चर्चा कर कल्याण सिंह को यहां लोग हमेशा याद करते हैं.
गांव वाले कहते थे 'बाबूजी'
कल्याण सिंह के साले और वरिष्ठ बीजेपी नेता गजराज सिंह ने कुछ समय पहले बताया था कि सभी लोग कल्याण सिंह को 'बाबूजी' कहकर बुलाते थे. उनकी सादगी और ईमानदारी के सभी लोग कायल थे. उड़द की धुली दाल उन्हें बेहद पसंद थी. जब भी वह ससुराल देवापुर आते थे, तो उड़द की दाल खास तौर से बनवाई जाती थी.