धर्म-कर्म

सोलह श्रृंगार में जानें क्या है खास, करवा चौथ पर लगाना माना जाता है बेहद शुभ

सोलह श्रृंगार में जानें क्या है खास, करवा चौथ पर लगाना माना जाता है बेहद शुभ
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करवा चौथ पूजा विधि- इस व्रत में महिलाएं दोपहर में या शाम को कथा सुनती हैं। कथा के लिए पटरे पर चौकी में जलभरकर रख लें।

करवा चौथ व्रत 24 अक्टूबर, रविवार को रखा जाएगा। इस दिन महिलाएं पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं। करवा चौथ के दिन सुहागिनें सोलह श्रृंगार करती हैं। महिलाओं के श्रृंगार में सबसे जरूरी और खास चीज मेहंदी होती है। इस दिन महिलाएं हाथों पर तरह-तरह की डिजाइन बनवाती हैं।

विवाह के बाद हर स्त्री के लिए सोलह श्रृंगार

सिंदूर - सिंदूर जो सबसे सुहाग के सामान में सबसे अधिक महत्व पूर्ण माना जाता है। यह एक सुहागन स्त्री की पहचान होता है। यह सिंदूर एक स्त्री के विवाहित होने की पहचान करवाता है धार्मिक मान्यता के अनुसार स्त्रियां अपने पती की दीर्घायु की कामना के साथ सिंदूर लगाती हैं।

बिंदी- बिंदी एक स्त्री के मुख की आभा को और ज्यादा बढ़ा देती है। आज के समय में भले ही स्त्रियां बाजार में मिलने वाली स्टिकर बिंदी का प्रयोग करती है लेकिन पहले के समय में कुमकुम की बिंदी लगाई जाती थी। मान्यता अनुसार यह एक स्त्री के सुहाग का प्रतीक तो होती ही है साथ ही यह भृकुटि के बीचो-बीच लगाई जाती है इसलिए बिंदी दिमाग को शांत रखने का काम भी करती है।

काजल- आज के समय में आंखो की सुंदरता बढ़ाने के लिए बाजार में कई तरह का सामान उपलब्ध होता है लेकिन केवल काजल लगाने भर से ही आंखों की सुंदरता में चार-चांद लग जाते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार काजल बुरी नजर से रक्षा करता है इसलिए इस सोलह श्रृंगार काजल को भी शामिल किया गया है।

मंगलसूत्र - सिंदूर की तरह ही मंगलसूत्र धारण करने का भी एक अलग महत्व होता है। विवाह के समय सामाजिक रितिरिवाजों का निर्वहन करते हुए मंत्रोच्चार के बीच वर अपनी वधू के गले में मंगलसूत्र पहनाता है। यह एक स्त्री के सुहाग का प्रतीक होता है। मान्यता है कि इससे पति की आयुु जुड़ी होती है। गले में पहना हुआ मंगलसूत्र जब शरीर से स्पर्श करता है तो उसके कई फायदे भी होते हैं।

मेहंदी -हिंदू धर्म में शादी के समय मेहंदी रचाना एक महत्वपूर्ण रस्म होती है। मेहंदी को बहुत ही शुभ माना जाता है। हर सुहागन स्त्री के लिए हाथों में मेहंदी रचाना सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। लोकमान्यता अनुसार मेहंदी का रंग जितना गहरा होता है वैवाहिक जीवन भी उतना ही खुशहाल होता है। कवंदती अनुसार मेहंदी के रंग की गहराई पति के प्रेम की गहराई का प्रतीक होती है।

चूड़ियां- आजकल के समय में कई तरह के डिजाइन और धातु आदि की बनी हुआ चूड़ियां आने लगी हैं लेकिन सुहागन स्त्री के लिए कांच की चूड़िया पहनना शुभ माना जाता है। लाल और हरे रंग की चूड़ियां सुहागन स्त्री की सुंदरता को और भी अधिक बढ़ा देती हैं। सोलह श्रंगार में चूड़िया एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। मान्यता है कि चूड़ियों की खनक से नकारात्मकता दूर होती है।

बिछिया - हिंदू धर्म में एक विवाहित स्त्री के लिए पैरों में बिछिया पहनना अनिवार्य माना जाता है। शादी के समय पैरों में बिछियां भी पहनाई जाती हैं जो कांसे की बनी होती हैं। कुछ दिनों बाद इन्हें बदलकर चांदी से बनी बिछियां पहन ली जाती हैं। सुहाग के सामान में बिछिया भी बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती हैं।

गजरा- स्नानादि करने के पश्चात मांग में सिंदूर लगाने के साथ ही बालों का सजाने का प्रचलन बहुत पहले के समय से रहा है। जब भी सोलह श्रृंगार की बात आती है कोशों को संवारने और आलंकृत करने की बात जरूर आती है। पहले के समय में स्त्रियां अपने बालो में चंदन आदि की सुगंधित धूप देती थी जिसके बाद फूलों आदि से उन्हें सजाया जाता था। सलीके से बंधे और सजे हुए बाल सुहागन स्त्री का प्रतीक माना जाता था। मान्यता है कि बालों में गजरा लगाने से वैवाहिक जीवन में प्रेम की सुगंध से महकता है।

लाल जोड़ा- हिंदू धर्म में लाल रंग को बहुत तरजीह दी जाती है क्योंकि यह शुभता और सुहाग की निशानी माना जाता है। हालांकि आजकर बाजार में कई डिजाइनर और अलग-अलग रंगों को जोड़े आने लगे हैं लेकिन ज्यादातर लड़कियां अपनी शादी में लाल रंग का जोड़ा ही पहनती हैं।

मांग टीका -एक सुहागन स्त्री के लिए मांग टीका बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। मांग के बीचो-बीचे पहना जाने वाला यह आभूषण चेहरे की आभा को तो बढ़ाता ही है साथ ही यह वैवाहिक जीवन के सही सा साध कर चलने का प्रतीक भी होता है।

नथ- शादी के समय दुल्हन को सोने की नथ अवश्य पहनाई जाती है। नथ के बिना दुल्हन का श्रंगार अधूरा सा लगता है। सुहागन स्त्री के लिए नथ एक आवश्यक आभूषण माना गया है।

कर्णफूल- कर्णफूल यानी कानों में पहने जाने वाले कुंडल। आज के समय में वैसे तो कई तरह के डिजाइनों में आर्टिफिशियल कुंडल आने लगे हैं लेकिन आमतौर पर सोने, चांदी और कुंदन के बने हुए कर्णफूल धारण किए जाते हैं। यह महिलाओं की सुंदरता को तो बढ़ाते ही हैं साथ ही इनका संबंध स्वासथ्य से भी माना जाता है। कानों के पास कई एक्यूप्रेशर पॉइंट्स होते हैं कर्ण फूल पहनने से उनपर दबाव पड़ता है जो सेहत के लिए अच्छा रहता है। लोककिवदंती के अनुसार कर्णफूल धारण करना सदैव अच्छी बातों को सुनने के प्रतीक होता है।

बाजूबंद- हाथों के ऊपरी हिस्से में स्वर्ण, कुंदन या चांदी आदि धातुओं का बना हुआ बाजूबंद धारण किया जाता है। माना जाता है कि यह महिलाओं के शरीर में रक्तसंचार को बेहतर बनाने में सहायक होता है। इसके साथ ही धार्मिक मान्यता के अनुसार इसका संबंध धन रक्षा से माना गया है।

अंगूठी- शादी की रस्मों की शुरूआत वर-वधू के द्वारा एक दूसरे से अंगूठी पहनाकर की जाती है। यह प्यार और विश्वास की निशानी मानी जाती है। अंगूठी बाएं हाथ की अनामिका उंगली में पहनाई जाती है। इसके पीछे कारण माना जाता है कि अनामिका उंगली की नसे हृदय से लगती हैं। इससे पति-पत्नी के बीच प्रेम बना रहता है।

कमरबंद- कमर में चांदी, सोने की धातु के बने हुए रत्न जड़ित आभूषण स्त्री के शरीर की शोभा बढ़ाता है। महिलाओं के लिए चांदी की धातु का कमरबंद बहुत शुभ माना जाता है। यह अपने घर के प्रति स्त्री की जिम्मेदारयों का प्रतीक होता है।

पायल- पैरो चांदी की पायल शुभता और संपन्नता का प्रतीक होती है। बहू को घर की लक्ष्मी माना जाता है, इसलिए घर की संपन्नता बनाए रखने के लिए दुल्हन के श्रंगार में पायल आवश्यक मानी गई हैं। पायल सदैव चांदी की ही पहननी चाहिए कभी भी पायल सोने की नहीं पहनी जाती हैं।

शुभ मुहूर्त- करवा चौथ पर रोहिणी नक्षत्र में चांद निकलेगा। 24 अक्टूबर को सुबह 03 बजकर 01 मिनट पर चतुर्थी तिथि लगेगी और अगले दिन 25 अक्टूबर को सुबह 05 बजकर 43 मिनट तक रहेगी। चांद निकलने का समय 08 बजकर 11 मिनट पर है। करवा चौथ के दिन पूजन का शुभ समय 06 बजकर 55 मिनट से लेकर 08 बजकर 51 मिनट तक रहेगा।

करवा चौथ पूजा विधि- इस व्रत में महिलाएं दोपहर में या शाम को कथा सुनती हैं। कथा के लिए पटरे पर चौकी में जलभरकर रख लें। थाली में रोली, गेंहू, चावल, मिट्टी का करवा, मिठाई, बायना का सामान आदि रखते हैं। प्रथम पूज्य गणेश जी की पूजा से व्रत की शुरुआत की जाती है।

गणेश जी विघ्नहर्ता हैं इसलिए हर पूजा में सबसे पहले गणेश जी की पूजा की जाती है। इस बात का ध्यान रखें कि सभी करवों में रौली से सतियां बना लें। अंदर पानी और ऊपर ढ़क्कन में चावल या गेहूं भरें। कथा के लिए पटरे पर चौकी में जलभरकर रख लें। थाली में रोली, गेंहू, चावल, मिट्टी का करवा, मिठाई, बायना का सामान आदि रखते हैं। प्रथम पूज्य गणेश जी की पूजा से व्रत की शुरुआत की जाती है।

गणेश जी विघ्नहर्ता हैं इसलिए हर पूजा में सबसे पहले गणेश जी की पूजा की जाती है। इसके बाद शिव परिवार का पूजन कर कथा सुननी चाहिए। करवे बदलकर बायना सास के पैर छूकर दे दें। रात में चंद्रमा के दर्शन करें। चंद्रमा को छलनी से देखना चाहिए। इसके बाद पति को छलनी से देख पैर छूकर व्रत पानी पीना चाहिए

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