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पत्रकार संतोष सिंह का सवाल, कश्मीर शांत है ऐसे समय में इस फिल्म को दिखाने का क्या मतलब है!
संतोष कुमार सिंह
कश्मीर से मेरा पुराना वास्ता रहा है दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान कश्मीरी छात्रों के एक ग्रुप से हमारी अच्छी बनती थी और कश्मीर समस्या को लेकर अक्सर बहस होती रहती थी।
मेरा पहला प्यार भी कश्मीर से ही थी इसलिए कश्मीर से मेरा दिल का भी रिश्ता रहा है और यही वजह कि कश्मीर हमेशा मेरे जेहन में बसता है।
कश्मीर से किसी तरह जान बचा कर कर आये कश्मीरी से भी दिल्ली में अक्सर मिलने जाया करते थे हमारी वो कश्मीरी मुसलमान थी लेकिन हर रविवार को उन हिन्दू कश्मीरी के लिए कुछ ना कुछ बना कर घर से ले जाती थी जो रिफ्यूजी के तौर पर दिल्ली में रह रहे थे।साथ खाना खाती थी और घंटों उन सबों के बीच बैठ कर बात करती रहती थी और एक दूसरे को ढाढ़स बढ़ाती रहती थी की एक दिन आयेगा जब हम सब आपको वापस कश्मीर ले जायेंगे
उस समय भी मुझे ये समझ में नहीं आता था कि कश्मीर का युवा हथियार कैसे उठा सकता है क्यों कि वो बहुत ही व्यवहार कुशल और जिंदा दिल इंसान होता है दिल्ली में कश्मीर से भाग कर आये लोगों से भी मैं पुछता रहता था कि ये लोग आपके साथ ऐसा व्यवहार कैसे कर दिया वो कहते थे ये सही है इन्ही लोगों की वजह से हम लोग जिंदा यहां पहुंच पाये हैं ।पाकिस्तानी आतंकी ये सब कर रहा है कश्मीरी तो अभी भी हम लोगों के लिए जान तक की परवाह नहींं करते हैं ।
दिल्ली से लौटे तो 2002 में ईटीवी ने मुझे दरभंगा में काम करने के लिए भेज दिया संयोग से जिस समय मैं दरभंगा पहुंचा ठीक उसी समय दरभंगा के डेंटल कॉलेज में पढ़ने वाले कश्मीरी छात्र छात्राएं परीक्षा को लेकर आंदोलन कर रहे थे। उसके साथ विश्वविधालय और डेंटल कॉलेज के प्रबंधक का व्यवहार बेहद आपत्तिजनक था कालेज प्रबंधक और विश्वविद्यालय कश्मीरी छात्र छात्राओं को दुधारु गाय समझ रखा था इनके आन्दोलन को मेरी खबर की वजह से राष्ट्रीय मुद्दा बन गया और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के निर्देश के बाद इन छात्रों को इस गठजोड़ से मुक्ति मिला पाया। इस दौरान भी कश्मीर के बच्चों और परिवार को एक बार फिर नजदीक से देखने का मौका मिला।
2018 में माता वैष्णो देवी यूनिवर्सिटी द्वारा कश्मीर को लेकर देश क्या सोचता है इस विषय पर आयोजित सेमिनार में मुझे वक्ता के रुप में आमंत्रित किया गया था इस दौरान भी कश्मीर के बच्चों के साथ हमारी लम्बी बातचीत हुई ।आज भी कश्मीर से मुझे मुक्ति नहीं मिली है ऐसे में फिल्म द कश्मीर फाइल्स की चर्चा ने मुझे एक बार फिर उत्साहिता कर दिया है फिल्म में जो दिखाया गया है उस संदर्भ में कुछ कहने कि जरूरत नहीं है लेकिन इस हिंसा के पीछे एक सच से दर्शक को दूर रखा गया है।
जिस दौरा पर यह फिल्म आधारित है उसका दूसरा पहलु यह है कि उस हिंसा के डर से कुछ ही लोग कश्मीर छोड़कर बाहर निकले थे, अभी भी जितने कश्मीरी कश्मीर छोड़ कर दिल्ली और जम्मू में शरण लिए हुए हैं उसको हजार गुना ज्यादा हिन्दू अभी भी कश्मीर के अपने गांव मेंं रह रहे है और उनकी सुरक्षा के लिए आज भी कश्मीरी मुसलमान बंदूक उठाते हैंं ।
जिस तरह के हिंसा का शिकार वहां के हिन्दू हुए हैं उससे कम हिंसा का शिकार वहां के मुसलमान लड़कियां नहीं हुई है तालिबान और पाकिस्तानी आतंकी शुरुआती दिनों में भले ही हिन्दू को निशाना बनाया था बाद के दिनों में उससे कहीं अधिक कश्मीरी मुसलमान को निशाना बनाया था।
और आज भारतीय फौज की सफलता का राज भी यही है।लेकिन इस सबसे इतर जो ऐतिहासिक सत्य है भारत में एक मात्र कश्मीर का मुसलमान ही है तो आज भी हिन्दू होने का पहचान बचा कर रखा है जी है जो कश्मीरी पंडित मुसलमान बने वो आज भी अपने नाम के अंत में पंडित लिखता है ,भट्ट लिखता है ,रैना लिखता है ,डोगरा लिखता है इतना ही नहीं कश्मीर का ही मुसलमान है जिसने मुगल शासक को कश्मीर में प्रवेश नहीं करना दिया वहां की अधिकांश आबादी मुसलमान बनने से पहले बौद्ध थे बाद के दिनों में सूफी आंदोलन से प्रभावित होकर बड़ी संख्या में कश्मीर के लोग इस्लाम धर्म कबूल कर लिया एक भी कश्मीर का मुसलमान जबरन धर्म परिवर्तन वाला नहीं है।
दूसरा ऐतिहासिक तथ्य यह है कि देश का एक मात्र ऐसा कश्मीर का मुसलमान कौम है जो सार्वजनिक रुप से हिन्दू बनने के लिए राजा के पास दरख्वास्त किया था और उस समय के महाराजा हरि सिंह ने मुस्लिम कौम के इस प्रस्ताव को स्वीकार भी कर लिया था। लेकिन कश्मीरी पंडित इसके लिए तैयार नहीं थे फिर भी महाराजा हरि सिंह अडिग रहे और अंत में कश्मीर के पंडित सड़क पर उतर आये और अनुष्ठान करने से मना कर दिया तो तो फिर महाराजा हरि सिंह ने बनारस से पंडित बुलाये और कश्मीर के मुसलमान को हिंदू में शामिल कराने को लेकर अनुष्ठान शुरू किये, लेकिन इस बीच खबर आने लगी है कश्मीरी पंडित इस आयोजन के विरोध में झेलम नदी में कूद कर जान देने की घोषणा कर दिया है, बड़ा हंगामा हुआ और अंत मेंं महाराजा ने इस कार्यक्रम को रद्द कर दिया ।
ऐसे मेंं यह सवाल उठना लाजमी है कि इस फिल्म के सहारे कश्मीर के मुसलमानों की जो छवि बनाने कि कोशिश हो रही है इसका मतलब क्या है 1990 के बाद कश्मीर में जो कुछ भी हुआ उसके लिए कश्मीर को जिम्मेदार क्यों ठहराया जा रहा है ऐसा नहीं है कि कश्मीर में हिंसा का जो दौर शुरु हुई उसमें सिर्फ हिन्दू ही मारे गये सिर्फ हिन्दू लड़कियों के साथ ही रेप हुआ कश्मीरी मुसलमानों के साथ भी ऐसा ही हुआ।
फिलहाल अभी तो कश्मीर शांत है ऐसे समय में इस फिल्म को दिखाने का क्या मतलब है।जबकि नफरत इंसान और इंसानियत को नुकसान ही पहुंचाता है ऐसे मेंं इस फिल्म के सहारे देश के यूथ को क्या संदेश देना चाह रहे हैं क्या देश को कश्मीर बनाना चाह रहे हैं ।