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उत्तर प्रदेश में लोक सभा चुनाव परिणाम बुलडोजर राजनीति का अस्वीकार

Shiv Kumar Mishra
13 Jun 2024 7:02 AM GMT
उत्तर प्रदेश में लोक सभा चुनाव परिणाम बुलडोजर राजनीति का अस्वीकार
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उत्तर प्रदेश में लोक सभा चुनाव परिणाम बुलडोजर राजनीति का अस्वीकार

देश के आम चुनाव के नतीजों ने सभी को चौंकाया है। गैर राष्ट्रीय गणतांत्रिक गठबंधन दलों, जिनमें इंडिया गठबंधन के प्रमुख दल शामिल हैं, के शानदार प्रदर्शन ने लोकतांत्रिक संसदीय व्यवस्था में लोगों का विश्वास बहाल किया है। सबसे ज्यादा प्रेरित करने वाला उत्तर प्रदेश में इंडिया गठबंधन का प्रदर्शन रहा है। यहाँ समाजवादी पार्टी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने मिलकर 80 में से 43 सीटें जीती हैं। प्रदेश की कुछ सीटों के नतीजों पर प्रतिक्रियाओं का दौर अभी भी जारी है। फैजाबाद लोकसभा क्षेत्र, जिसके अंतर्गत अयोध्या आता है, में भाजपा प्रत्याशी की हार और इंडिया गठबंधन में शामिल समाजवादी पार्टी के अवधेश प्रसाद की जीत मुख्य चर्चा का केंद्र बिंदु रही है।

किसी ने इस जीत को भगवान श्री राम का सन्देश बताया, तो कुछ ने इस हार पर अयोध्या के हिन्दुओं की नासमझी और धर्म के साथ गद्दारी तक का तमगा लगा दिया। जनादेश का इस प्रकार समाज के एक बड़े धड़े द्वारा अपमान करना बेहद चिंताजनक है। सोशल मिडिया पर अयोध्यावासियों पर धर्म के साथ धोखा करने का लांछन लगाने वाले वह लोग हैं जो अयोध्या क्षेत्र और स्थानीय निवासियों के जीवन से कोसों दूर हैं। अयोध्या के आम लोगों, जिसमें कई साधू-संत भी शामिल हैं, की लम्बे समय ये यह शिकायत रही है कि उन्हें राम मंदिर आंदोलन का खामियाजा भुगतना पड़ा है। पहले आए दिन कर्फ्यू लग जाता था और स्थानीय जन-जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है और अब अयोध्या के ‘विकास‘ या यूं कहें कि धर्म के व्यवसायीकरण की मार झेलनी पड़ रही है। बाहर से आने वाले दर्शनार्थियों को इसका अहसास नहीं हो सकता।

जनता ने उस राजनीति को नकारा है जिसमें योगी रु. 3 करोड़ खर्च कर 22 लाख दिए दीपोत्सव के नाम पर, जो उनके द्वारा शुरू की गई परम्परा है, जलाते हैं सिर्फ इसलिए कि उनका नाम गिनीज़ बुक में आ जाए। दिए जल चुकने के बाद अगली सुबह, जो दिवाली का दिन होता है, अयोध्या के गरीब लोग दियों से बचा-खुचा सरसों का तेल इकट्ठा करने जाते हैं ताकि उनके चूल्हे जल सकें। योगी पेशेवर कलाकारों को मुम्बई से बुलाकर राम, सीता, लक्ष्मण बना कर उत्तर प्रदेश सरकार के हेलिकॉप्टर से अयोध्या में उतारते हैं। यह सरकारी पैसों से मोदी-योगी की पुण्य कमाने की राजनीति अयोध्या की जनता को रास नहीं आई है। धर्म के नाम पर दिखावा यह अयोध्या के गरीब और श्रद्धालू लोगों के साथ मजाक है।

उत्तर प्रदेश में जनता का यह फैसला आज के दौर की बुल्डोजर राजनीति और ‘विकास’ के बड़े ढकोसले के खिलाफ एक मजबूत सन्देश भी है। बीते कुछ वर्षों में यह देखा गया है कि उत्तर प्रदेश में विकास का मॉडल बड़े एक्सप्रेस-वे, हवाई अड्डे, मेट्रो, मंदिर कॉरिडोर, आदि जैसे चमचमाते कार्यों में ही समेटा गया है। भाजपा इस बार के लोकसभा चुनाव में इन्हीं दावों के साथ उतरी थी। इन बड़ी परियोजनाओं के गुबार में देखा गया है कि जहाँ भी इन बड़ी तथाकथित विकास परियोजनाओं’ को अंजाम दिया गया वहां की स्थानीय जनता और उनकी मुलभूत सुविधाओं को नजरअंदाज किया गया है। अयोध्या में भाजपा की शिकस्त या फिर वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कीे जीत के अंतर में आई भारी कमी स्थानीय मुद्दों को दरकिनार करने की गलती की ओर इशारा करता है।

बीते समय अयोध्या में हुए विकासात्मक कार्य वहां की आम जनता के लिए विनाशकारी साबित हुए। नए अयोध्या के लिए रु. 30 हजार करोड़ से अधिक के खर्च में बन रहे मुख्य मार्ग तथा अनेक भव्यता के कार्य हेतु 4 हजार से अधिक घरों और दुकानों को ध्वस्त किया गया है। इसके एवज में लोगों को मिले मुआवजे बेहद कम और घाटे का सौदा रहा। इसके साथ भारी संख्या में परिवारों ने अपनी आजीविकाएं भी खोईं। जिन्होंने विरोध किया अथवा करने का प्रयास किया उनके खिलाफ दण्डात्मक कार्यवाही हुई या करने की धमकी दी गई। वहीं दूसरी ओर भाजपा से जुड़े स्थानीय लोगों ने निर्माणाधीन मंदिर के पास की जमीनें खरीद कर मंदिर के ही ट्रस्ट को कई गुना दामों में बेचा। यहां बहती गंगा में हाथ धोने की कहावत चरितार्थ होती है। स्थानीय लोगों से ज्यादा तो प्रधानमंत्री के गृह राज्य गुजरात के व्यवसायियों ने होटल, रेस्टॉरेण्ट, निर्माण के ठेके, आदि में पैसा कमाने के अवसर का खूब लाभ उठाया। इसमें अयोध्या का छोटा व्यापारी, दुकानदार, यदि विस्थापन के प्रकोप से बचा रहा, तो मार खाया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 22 जनवरी 2024 को नए भव्य मंदिर के उद्घाटन पर देश भर की मशहूर हस्तियां शामिल रहीं। दुनिया के बड़े होटल, टाउनशिप, और मंदिर बनने के पश्चात आसमान छूती जमीनों की कीमत ने स्थानीय लोगों के मुद्दे जिसमंे आजीविका जैसे मूल सवाल शामिल हैं को गायब कर दिया।

उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के नतीजे, खासतौर पर ग्रामीण और कस्बाई इलाकों में भाजपा की करारी शिकस्त तत्कालीन सरकार के विकास आख्यान पर जनता की मुखर प्रतिक्रिया है। पिछले कुछ समय से जिस विकास की गाथा राज्य में लिखी जा रही थी उसके प्रति जनता ने सबका ध्यान असल विकास के मुद्दों की ओर आकर्षित करने की कोशिश की है। आजमगढ़ जिले में हवाई अड्डा विस्तारीकरण के विरुद्ध स्थानीय ग्रामीणों का जमीन-मकान बचाने का संघर्ष और इसी जिले में पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे के समीप गांव की जमीन इंडस्ट्रियल कॉरिडोर के लिए हड़पने की कोशिशों के विरुद्ध ग्रामीणों के विरोध प्रदर्शन तथा प्रदेश में जारी बुलडोजर फैसलों के कहर के खिलाफ जनता ने लगातार संघर्ष जारी रखा है। वहीं गौ-हत्या पर प्रतिबंध लगाने के नाम पर गोवंश की खरीद-बिक्री बंद हो जाने से सारे अनुपयोगी पशु खुले घूम-घूम कर किसान की फसल खाने लगे। रात-रात जग कर किसान को अपनी फसलें बचानी पड़ीं। जगह-जगह अपने-अपने तरीकों से लोगों ने सरकार का इस मुदृदे पर विरोध किया। जनता द्वारा जारी ऐसे संघर्ष का असर चुनाव नतीजों में भी पाया गया जहाँ सामूहिक तौर पर लोगों ने संविधान तथा उनके खेती-किसानी पर आने वाले खतरों को भांप लिया और भाजपा को सबक सिखाया। मोदी-योगी के आतंक के कारण जो लोग मुखर नहीं हो पाए उन्होंने भी चुनाव के अवसर का इस्तेमाल अपने मंतव्य को व्यक्त करने के लिए किया।

उत्तर प्रदेश में इंडिया गठबंधन के 43 सांसदों में 32 संसद पिछड़ा, दलित और मुस्लिम समाज से हैं। गठबंधन का यह राजनैतिक-सामाजिक समीकरण राज्य को प्रगतिशील राजनीति की ओर ले जाने में निर्णायक साबित हो सकता है, बशर्ते जनता के असल मुद्दे राजनीति के केंद्र में रखे जाएं। मजबूत विपक्ष के जरिए एक संतुलित संसद स्थापित होने की भी उम्मीद है जहाँ जन कल्याण के सभी जरूरी पहलुओं पर चर्चा एवं कानून पारित हों और बीते 10 वर्षों से सूखा झेल रही लोकतान्त्रिक संसदीय प्रणाली में फिर से हरियाली आए।

लेखकः राजशेखर एवं संदीप पाण्डेय

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