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मध्यप्रदेश के उपचुनाव: आरोप-प्रत्यारोप से परहेज करें कांग्रेस-बीजेपी नेता
विजया पाठक
मध्यप्रदेश में एक लोकसभा और तीन विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव होना प्रस्तावित है। चुनाव की तैयारियों को लेकर दोनों ही सक्रिय राजनीतिक पार्टी भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस अपनी पूरी ताकत लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों में झोंकने में जुटी हुई है। लगातार चुनावी रैलियों का आयोजन हो रहा है, चुनावी बैठकें हो रही हैं और हर पार्टी के दावेदार अपनी जीत को सुनिश्चित करने के लिए जुटे हुए हैं। भाजपा की जीत को सुनिश्चित करने के लिए खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और पार्टी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा लगातार विधानसभा क्षेत्रों में चुनावी रैलियों को संबोधित कर रहे हैं। वहीं, कांग्रेस पार्टी के नेता भी कहीं पीछे नहीं हैं खुद पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ सहित कई वरिष्ठ कांग्रेस नेता सभी विधानसभा क्षेत्रों में रैलियां कर रहे हैं। पिछले कुछ दिनों से लगातार चुनावी रैलियों, चुनावी मंचों पर भाषणों का दौर चल रहा है। लेकिन एक बात जो गौर करने वाली है वो यह है कि दोनों ही राजनीतिक पार्टी के वरिष्ठ नेता इन रैलियों में सिर्फ एक-दूसरे पर छींटाकशी की राजनीति कर रहे हैं।
मंहगाई के मुद्दे पर सब मौन
इस समय सबसे बड़ा मुददा मंहगाई का है। बीजेपी तो इस मुददे को उठाने से रही। कांग्रेस को इस मुददे को बड़े स्तर पर उठाना चाहिए। क्योंकि यह हम सबसे जुड़ा मसला है। खासकर पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ इस पूरे चुनाव की कमान संभाले हुए हैं। हर दिन रैलियां कर कर रहे हैं। लेकिन उनके भाषणों में भी मंहगाई का जिक्र नहीं किया जाता है। यह पूरी चुनावी रैलियों के दौरान आश्चर्य करने वाली बात है। कोई भी राजनीतिक पार्टी के नेता चुनावी रैली में जनता से जुड़े मुद्दों पर बात करते ही नहीं दिखाई दे रहे हैं। सिर्फ एक-दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप का दौर चल रहा है। जबकि चुनावी रैलियों में तो नेताओं को जनता औऱ क्षेत्र के विकास की बात, आने वाले समय में उनको मिलने वाली सौगातों की बात की जाती है। लेकिन अभी तक दोनों ही पार्टियों के बीच सिर्फ छींटाकशी की राजनीति चलती दिखाई दे रही है।
हम देख चुके हैं कि प्याज की कीमतों में वृद्धि होने से सरकार गिर जाती है तो इस समय तो सभी चीजों को दाम आसमान छू रहे हैं। ऐसे में कांग्रेस क्यों इस गंभीर मुददे से ध्यान भटका रही है।
कांग्रेस पार्टी को विशेष ध्यान देनी की आवश्यकता
पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता है और उन्हें अपने पार्टी के नेताओं के साथ एक मीटिंग कर चुनावी रैलियों में दिये जाने वाले भाषण पर विचार विमर्श करना चाहिए। पार्टी के नेताओं को यह बात अच्छी तरह से समझना चाहिए कि उनकी भूमिका विपक्ष नेताओं की है। ऐसे में उपचुनाव में वो जनता के विकास और मंहगाई से जुड़े मुद्दों पर बात नहीं करेंगे तो उनकी सक्रियता धीरे-धीरे समाप्त होती जाएगी। जनता के बीच जाकर उनकी परेशानियों को करीब से समझकर ही सत्ता में बैठी पार्टी को चुनावी रैलियों के माध्यम से घेरा जा सकता है। कुल मिलाकर कमलनाथ खुद इस पूरे मामले को गंभीरता से लें और चुनावी रैलियों में जनता से जुड़े मुद्दे लेकर बात करें, उनकी सुविधाओं की बात करें तभी जनता से उनका सीधे जुड़ाव होगा। एक-दूसरे पर छींटाकशी करने से जनता का क्या भला होने वाला है।
इसलिए भाजपा को नहीं पड़ेगा कोई फर्क
देखा जाए तो भारतीय जनता पार्टी ने सत्ता में रहते हुए जिन क्षेत्रों में उपचुनाव होने जा रहे हैं उन क्षेत्रों में पिछले दिनों सौगातों की झड़ी लगा दी है। उपचुनाव नोटिफिकेशन जारी होने के पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिवस पर आयोजित 20 दिवसीय विशेष आयोजनों में जोबट से लेकर, खंडवा, रैंगाव सहित अन्य विधानसभा क्षेत्रों में जाकर खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लोगों को नई योजनाओं की सौगात दी। ऐसे में यह भाजपा की एक चाल भी हो सकती है कि वो कांग्रेस नेताओं को जनता से जुड़े मुद्दों से भटकाने के लिए एक-दूसरे पर छींटाकशी की राजनीति कर रही है।
कांग्रेस की ओर आदिवासियों का झुकाव
हम देख सकते हैं कि पिछले कुछ समय से प्रदेश के आदिवासी वर्ग का झुकाव कांग्रेस की ओर हुआ है। खासकर कमलनाथ द्वारा उठाये गए मुददों से उनमें कांग्रेस के प्रति रूझान बड़ा है। यही कारण है कि शिवराज सरकार ने भी पिछले दिनों आदिवासियों से जुड़े मसलों पर ध्यान देना प्रारंभ किया। होने वाले उपचुनावों में आदिवासी वर्ग का काफी बड़ा क्षेत्र है। एमपी में कुल 47 सीटें जनजातियों के लिए आरक्षित हैं, जिनमें से पिछले चुनाव में कांग्रेस के पास 32 सीटें गईं थीं। लोकसभा के चुनाव में भले ही भाजपा ने एक तरह से एमपी में क्लीन स्वीप किया लेकिन कई जनजातीय बहुल विधानसभाओं में उसे उम्मीद से कम वोट मिले, जिसने भाजपा की फ़िक्र को और बढ़ाया है। एमपी में 2011 की जनगणना के मुताबिक़ एक करोड़ 53 लाख से अधिक आबादी जनजाति समाज की है। यानी सूबे लगभग हर पांचवा-छठवां व्यक्ति इसी समुदाय से आता है। लगभग 89 विकासखंड जनजाति समुदाय के बाहुल्य वाले हैं। भाजपा के लिए इस जाति को साधना बहुत मुश्किल भरा रहा है। कुल मिलाकर भाजपा का पूरा फोकस इस वर्ग को चुनाव में अपने पक्ष में करने का है। वहीं कांग्रेस को भी अपने चुनावी मुददों में इस वर्ग के हितों की बात करनी चाहिए।