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हाशिए पर ले आई मुद्दाविहीन राजनीति

हाशिए पर ले आई मुद्दाविहीन राजनीति
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धारा 370 तीन तलाक और नागरिकता कानून पर विपक्षी दलों का जो रवैया रहा उससे उन्हें फायदे के बजाय नुकसान ही ज्यादा उठाना पड़ा। तमाम पार्टियों के आलकमानों और रणनीतिकारों ने मुद्दों को समझने में चूक की।

कहा जाता है कि लोकतंत्र के लिए दमदार विपक्ष का होना बेहद जरूरी है, लेकिन यह तभी हो सकता है जब सियासी दलों मे मुद्दों को समझने की कला हो। विपक्ष में बैठे दल अगर मुद्दों की गंभीरता को समझने में नाकाम रहेंगे तो उनके लिए अपने अस्तित्व को बचाए रखना भी एक चुनौती बन जाएगा। मुद्दों के अभाव में ही कांग्रेस जैसी पार्टी हाशिए पर पहुँच चुकी है।

एक समय था जब विपक्ष का किरदार बेहद महत्वपूर्ण होता था, सरकार की गलत नीतियों का विरोध पुरजोर तरीके से किया जाता था। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से विपक्ष की आवाज दिन-ब-दिन कमजोर होती जा रही है, इसका मुख्य कारण सही समय पर सही मुद्दों को ना पकड़ पाना है। विपक्ष आजकल जिन मुद्दों को उठाता है उनसे ज्यादातर लोग सीधे तौर पर जुड़े नहीं होते हैं जिसके चलते ऐसे मुद्दों पर विपक्ष को जनता का समर्थन नहीं मिल पाता है। इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि जमीन पर उतर कर विरोध करने के बजाए राजनेता बयानबाजी का सहारा लेने लगे हैं।

ज्यादा पीछे न जाते हुए नोटबंदी के समय से शुरुआत करते हैं। नोटबंदी भाजपा सरकार का एक बहुत बड़ा कदम था, काले धन को बाहर निकालने के जिस उद्देश्य से यह कदम उठाया गया था उसमें सरकार को सफलता नहीं मिल पाई। नोटबंदी से देश भर की जनता कई महीनों तक जूझती रही। उद्योग धंधों में इसका काफी नकारात्मक प्रभाव रहा, हर तबका इससे परेशान रहा लेकिन इस मुद्दे को ठीक ढंग से उठाने और सरकार को घेरने में विपक्ष पूरी तरह नाकाम रहा और जनता से सीधे तौर पर नहीं जुड़ पाने के कारण चुनावों में इसका फायदा उठाने में असफल रहा। नोटबंदी के मुद्दे को जोर-शोर से उठाने के बजाय विपक्ष ने राफेल डील जैसे मुद्दे पर सड़कों पर उतरना बेहतर समझा और सरकार को कटघरे में लाने में अपनी पूरी ताकत झोंक दी। यहां विपक्ष यह तक समझने में नाकाम रहा कि राफेल डील से देश की जनता का सीधे तौर पर कोई लेना-देना नहीं था। शायद यही वजह रही तमाम राजनीतिक दलों को राफेल मुद्दे पर की गई जद्दोजहद का कोई चुनावी लाभ नहीं मिला उल्टे उसे ही मुँह की खानी पड़ी।

धारा 370 तीन तलाक और नागरिकता कानून पर विपक्षी दलों का जो रवैया रहा उससे उन्हें फायदे के बजाय नुकसान ही ज्यादा उठाना पड़ा। तमाम पार्टियों के आलकमानों और रणनीतिकारों ने मुद्दों को समझने में चूक की। यहां तक की पेट्रोल और डीजल के आसमान छूते दामों और बढ़ती महंगाई जैसे संवेदनशील मामलों विपक्षी दल फिसड्डी ही निकले। सड़क पर उतर कर महंगाई से कराह रही जनता से जुड़ने के बजाय पार्टी नेता बयानबाजी में जुटे रहे। फिर एक ऐसा मुद्दा भी आया जो किसी भी पार्टी की दशा और दिशा बदल सकता था लेकिन सभी दल उसको लपकने में पूरी तरह से चूक गए, वह मुद्दा था कोरोना काल के दौरान स्कूल फीस का। इस दौरान तमाम काम धंधे ठप्प हो गए, लाखो लोग नौकरी से हाथ धो बैठे और बड़ी संख्या में लोगों के समक्ष जीवन यापन का संकट खड़ा हो गया। ऐसे में हर अभिभावक स्कूल फीस में राहत की आस लगाए बैठा था और तमाम राजनैतिक दलों से इस मुद्दे पर बड़ी उम्मीद लगाए बैठा था लेकिन करोड़ो अभिभावकों के मन को भापने में सभी दल फिर से चूक कर बैठे। जो भी दल इस मसले को प्रभावी तरीके से उठाता और इस मुद्दे पर अभिभावकों को राहत दिलाने में सहायता करता तो निश्चित तौर पर उस राजनीतिक दल की पहुँच शायद हर घर में हो गई होती लेकिन किसी भी दल ने किसने महत्वपूर्ण मुद्दे पर सड़क पर आकर संघर्ष करने से परहेज किया।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि मुद्दों को उठाने में जिस दिल को महारत हासिल है, वह सिर्फ भारतीय जनता पार्टी है। इसीलिए कहा भी जाता है कि भाजपा से अच्छा विपक्ष कोई नहीं। वर्ष 2014 से पहले केन्द्र में कांग्रेस की मनमोहन सरकार के समय विपक्ष में रहने के दौरान भाजपा ने महंगाई, पेट्रोल- डीजल और भ्रष्टाचार सहित तमाम तत्कालीन मुद्दों पर सरकार को जमकर घेरा था। अपने विरोध प्रदर्शनों के दौरान पार्टी के बड़े नेता भी सड़कों पर उतरने से कतई गुरेज़ नहीं करते थे।जिसके चलते वह जनता से सीधे तौर पर जुड़ने में सफल हुए और चुनावों में उन्हें इसका भरपूर लाभ मिला।

तमाम दूसरे दलों को यहां पर भाजपा से सीख लेने की जरूरत है। उन्हें यह समझना होगा कि अगर जनता से जुड़े मुद्दों को उठाने में वह सफल रहेंगे तो जनता भी चुनावों में उनको ठेंगा ही दिखाएगी।

माजिद अली खां

माजिद अली खां

माजिद अली खां, पिछले 15 साल से पत्रकारिता कर रहे हैं तथा राजनीतिक मुद्दों पर पकड़ रखते हैं. 'राजनीतिक चौपाल' में माजिद अली खां द्वारा विभिन्न मुद्दों पर राजनीतिक विश्लेषण पाठकों की सेवा में प्रस्तुत किए जाते हैं. वर्तमान में एसोसिएट एडिटर का कर्तव्य निभा रहे हैं.

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