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Special on Jallianwala Bagh: योजनाबद्ध तरीके से किया था नरसंहार
अनंत विजय
जलियांवाला बाग में अंग्रेजो ने जो नरसंहार किया था, वो मानवता के इतिहास की क्रूरतम घटनाओं में से एक है। औपनिवेशिक शासन के दौरान अंग्रेजों का ये कृत्य इतिहास के एक काले अध्याय के तौर पर दर्ज है। जलियांवाला बाग में जनरल डायर ने जो किया वो किसी तात्कालिक वजह से नहीं किया गया था बल्कि बेहद सोच समझ कर उस नरसंहार को अंजाम दिया गया था। कई इतिहासकारों ने इस बात की चर्चा की है कि 13 अप्रैल 1919 के पंजाब के जलियांवाला में जनरल डायर ने जो कहर बरपाया उसके पीछे 10 अप्रैल 1919 को पंजाब के अमृतसर में हिंसक प्रदर्शन और अंग्रेज औरतों पर हमले रहे। ये ठीक है कि अमृतसर में जो हिंसक प्रदर्शन और आगजनी की घटना हुई उसके बाद शहर को सेना के हवाले कर दिया गया था। लेकिन जलियांवाला बाग में जो नरसंहार जनरल डायर ने किया अगर उसके पहले और बाद की घटनाओं को देखें तो ये स्पष्ट होता है कि अंग्रेजों ने भारतीयों को सबक सिखाने की योजना बना ली थी और उस योजना को जनरल डायर को अंजाम देने का जिम्मा सौंपा गया था।
जलियांवाला बाग नरसंहार के पहले के इतिहास के पन्ने को पलटते हैं तो अंग्रेजों की भारतीयों के सबक सिखाने के सूत्र स्पष्ट तौर पर दृष्टिगोचर होते हैं। 1918 में अहमदाबाद में मिलों में हड़ताल और उसके मिले जनसमर्थन से अंग्रेजों के कान खड़े हो गए थे। इस बीच 1919 के आरंभ में रालेट एक्ट आ गय़ा। इस कानून में आतंकवादी गतिविधियों को रोकने के नाम पर भारतीयों के नागरिक अधिकारों पर पाबंदी लगाई गई थी। विश्वयुद्ध के बाद इस तरह के कानून की अपेक्षा नहीं की गई थी। जब ब्रिटिश सरकार ने जल्दबाजी में इस कानून को पारित करवाने की कोशिश की तो उसका उल्टा असर भारतीय जनमानस पर पड़ा। पूरे देश में उसके खिलाफ माहौल बना। महात्मा गांधी ने सत्याग्रह सभा की स्थापना की और स्वाधीनता सेनानियों से गांव-गांव जाकर लोगों को जागरूक करने की अपील की। गुलामी की बेड़ियों को काटने के लिए सत्याग्राह का उपयोग असर दिखाने लगा था। इसी दौर में बड़ी सभाएं होने लगी थीं जिसमें आम लोगों की भागीदारी बढ़ने लगी थी। इस लिहाज से अगर विचार करें तो 1919 का मार्च और अप्रैल का महीना स्वाधीनता आंदोलन के दौर में जनता के राजनीतिक रूप से जागरूक और बरतानिया हुकूम के खिलाफ आम जनता के उठ खड़े होने का दौर था। स्वाधीनता को लेकर चल रहे संग्राम में आमलोगों की बढ़ती भागीदारी से बरतानिया हुकूमत की परेशानी बढ़ने लगी थी और वो इसको दबाने की योजना बनाने लगे थे।
जब रालेट एक्ट के विरोध में पूरे देश में हड़ताल, विरोध प्रदर्शन होने लगे तो उस वक्त अंग्रेजों ने इसको दबाने के लिए बल प्रयोग किया। लखनऊ,पटना,कलकत्ता(अब कोलकाता) बांबे (अब मुंबई), कोटा और अहमदाबाद में इन विरोध प्रदर्शनों को दबाने के लिए अंग्रेजों ने निहत्थे लोगों पर जमकर लाठियां चलाईं, कहीं कहीं गोलियां भी। इन विरोध प्रदर्शनों की तीव्रता और उसमें जनभागीदारी से उत्साहित होकर गांधी ने 6 अप्रैल को राष्ट्रव्यापी हड़ताल की घोषणा कर दी। लोगों का उत्साह अपने चरम पर पहुंच चुका था । वो गुलामी की बेड़ियां तोड़ने के लिए बेचैन हो रहे थे। उधर अंग्रेज इस जन आंदोलन को दबाने के लिए अपना दमनचक्र तेज कर दिया था। लोगों को जेल में ठूंसा जाने लगा, बिना किसी कारण के गिरफ्तारियां होने लगीं। पूरे देश में इसकी बेहद तीव्र प्रतिक्रिया हुई। इस बीच 13 अप्रैल को जलियांवाला बाग में लोग विरोध प्रदर्शन के लिए जमा हुए। इस प्रदर्शन को दबाने के लिए जनरल डायर ने जो अपराध किया उसने ब्रिटिश साम्राज्य को कुछ सालों तक भारत पर शासन करने की ताकत भले दे दी लेकिन भारत की जनता इस जख्म को नहीं भूल सकी। जलियांवाला बाग नरसंहार में बहे खून ने भारत के स्वाधीनता आंदोलन को नई दिशा दे दी।
जलियांवाला बाग नरसंहार के छह महीने बाद उसकी जांच का दिखावा भी बरतानिया हुकूमत ने किया। ब्रिटिश सरकार ने लार्ड विलियम हंटर की अगुवाई में एक कमेटी बनाई और उसको नरसंहार की जांच का जिम्मा सौंपा। इसको हंटर कमीशन के नाम से जाना गया। हंटर कमीशन के सामने जनरल डायर ने जो बयान दिए उसको देखकर ये लगता है कि एक हजार से अधिक निहत्थे लोगों का हत्यारा कितना बेखौफ था। उसने कहा था कि भीड़ पर गोली चलाने की योजना बनाई गई थी ताकि भविष्य में कोई भी ब्रिटिश सरकार से विद्रोह करने की सोचे भी नहीं। उसने तो यहां तक कहा था कि अगर उस समय हथियारबंद गाड़ियां होतीं तो वो लोगों को कुचलवा देता। इस बयान को अगर जनरल डायर के कृत्य को हाउस आफ लार्ड्स में मिले समर्थन से जोड़कर देखें तो ये स्पष्ट है कि अंग्रेजों ने एक नरसंहार की योजना बनाई थी। यह अकारण नहीं था कि जब हाउस आफ लार्ड्स जनरल डायर के कारनामे के पक्ष में वोटिंग कर रही थी उसी समय ब्रिटेन की जनता ने जनरल डायर के लिए उस वक्त तीसस हजार पाउंड की राशि जुटाई थी। जलियांवाला बाग नरसंहार ब्रिटिश उपनिवेश का एक ऐसा चेहरा है जिसके लिए अंग्रेजों को पूरी मानवता से क्षमा मांगनी चाहिए। गाहे बगाहे इसकी मांग उठती भी रहती है लेकिन इसके लिए संगठित होकर प्रयास करना चाहिए।