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- बिछड़े प्रेमियों के...
डॉ. सुनीता
बेतहाशा उदास होकर घर से निकल पड़ी। धूसर सड़क पर ज़मीनी चांद के चिल्ल-पों के बीच आकाशीय चाँद सर पर संगत घुन बजाते संग-संग चलने लगा।
बोझिल मन गाँव के पोखरे में डूबती लड़की के गर्दन से उब-चुभ पानी की लहरों से जिरह की कहानी निकल पड़ी। अचानक पीछे से छपाक की तेज ध्वनि आयी। वह कूद पड़ा बचाव के लिए॰॰॰ वह बच गयी। बचाने वाला डूब गया। आज तक उसका थाह नहीं मिला।
दशकों बाद क़िस्सों में वह बुडुआऽ बन गया। अब वह सलाना बलि लेने का प्रतीक है। राजा का भव्य किला। काली मंदिर के ओट में प्रेम का बड़ा सहारा है लेकिन बुडुआऽ की आत्म छपक-छपक आवाज़ के साथ जब-तब बाहर निकलते ही समस्त फ़िज़ाओं में फैली रूमानियत औचक भय, रूदन, दारुण और लोगबंग {जंगल की देवी} में तिरोहित हो जाती॰॰॰
एक-एक करके आत्मकथ्य की मुद्रा में आत्माएँ प्रकट होतीं और पानी के किनारों पर बैठकर खो दिये प्रेमियों के नाम फ़ातिहा पढ़ते हुए काली मंदिर 🛕 के चबूतरे को तब तक निहारतीं जब तक चबूतरे का रंग बदल नहीं जाता॰॰॰ जैसे उनकी ज़िंदगी से सारे रंग उड़ा दिये गये बग़ैर अनुमति ठीक वैसे ही वह उड़ा देती हैं अपने हुनर के नाम चबूतरे के लाल तंबई रंग को॰॰॰
आज चाँद 🌜 ज़रा उदास लगा...