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न खाता न बही, जो अड़ानी अंबानी कहें वही सही!

Nidhi Mishra Jyotishacharya
8 Jan 2021 3:29 AM GMT
न खाता न बही, जो अड़ानी अंबानी कहें वही सही!
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सुप्रीम कोर्ट ने भी दिखाया कोरोना वायरस के फैलने का भय

राज्य मुख्यालय लखनऊ। देखा जाए तो इस महीने में होने वाली बारिश की एक-एक बूँद को खुदा का इनाम माना जाता है और वास्तव में है भी क्योंकि आसमान से पड़ती हर एक बूँद गेहूँ की फसल के लिए अमृत होती है।पिछले साल भी और इस साल भी बारिश की हर एक बूँद दिलों दिमाग़ को परेशान करने वाली साबित हो रही हैं माना गेहूँ की फसल के लिए अमृत हैं लेकिन सरकार की जनविरोधी नीतियों के ख़िलाफ़ जो लोग इस भयंकर हाड़ कंपा देने वाली सर्दी में सड़क पर पड़े हैं जहाँ अब तक लगभग 60 किसानों की ठंड के चलते मौत हो गई लेकिन गूँगी बहरी अंधी सरकार अपने धन्नासेठों को मालामाल करने में इतनी अंधी हो गई है कि उसे उन किसानों की न मौत नज़र आ रही है और न दर्द महसूस हो रहा है उसे सिर्फ़ अड़ानी अंबानी समूहों को फ़ायदा पहुँचाना है अब उसके लिए कौन और किसकी बलि दी जाए वह देने को तैयार है और दे भी रही है।

वैसे तो किसान को अन्नदाता कहा जाता है लेकिन लगता है यह जुमला सिर्फ़ भाषणों तक सीमित है हक़ीक़त में इस जुमले के कोई मायने नहीं हैं अगर होते तो शायद मोदी की भाजपा अन्नदाता के साथ ऐसा सलूक न करती जिसको वही बड़ी उम्मीदों से सरकार में लाए थे कि चलों अब गुजरात मॉडल को देश की कमान सौंपी जाए जबकि गुजरात मॉडल की हक़ीक़त पर सवालिया निशान थे यह वही मॉडल है जिसने राजधर्म नही निभाया था तब प्रधानमंत्री रहे स्व. अटल बिहारी वाजपेयी जी ने नसीहत दी थी कि राजधर्म निभाओ लेकिन नहीं निभा पाए थे देखा जाए तो वह मॉडल नफ़रतों की बुनियाद पर तैयार किया गया था उस मॉडल से देश का भाईचारा छिन्न-भिन्न होने के कगार पर खड़ा हो गया है उसको दरकिनार कर गुजरात मॉडल पर ही भरोसा किया गया।गुजरात मॉडल धार्मिक धुर्वीकरण कर हिन्दू को मुसलमान से मुसलमान को हिन्दू से नफ़रत की दिवार खड़ी कर तैयार किया गया था शुरूआत तो इससे की गई लेकिन इसका अंत हर किसी को हर किसी से लड़ा कर किया जाएगा यह बात जितनी जल्दी समझ जाए उतना ही बेहतर है देश के लिए भी और हिन्दू , मुसलमान , सिख व ईसाई सबके लिए बेहतर हैं जब तक हम एक दूसरे को अपने से अलग समझते रहेंगे तब तक यही होता रहेगा।

मोदी की भाजपा धार्मिक उन्माद भड़काकर सत्ता में आई है न कि देश की जनता ने इनको खुले दिमाग़ से सत्ता की चाबीं सौंपी है इसके परिणाम भी ऐसे ही होंगे।पिछले साल इन्हीं दिनों में CAA, NPR व संभावित NRC के विरोध में देशभर में आंदोलन किया जा रहा था जिसमें आंदोलन करने वाली महिलाएं थी लेकिन उसे मुसलमानों का आंदोलन कहकर कंट्रोल किया गया था जबकि वह भी ग़लत तरीक़े से बनाए गए क़ानून का विरोध था क्योंकि धार्मिक आधार पर क़ानून बनाना हमारे संविधान के विरूद्ध है लेकिन उसका विरोध मुसलमान कर रहा था इस लिए जिसको आधार बनाकर मोदी की भाजपा सत्ता में आई उसको हिन्दू मुसलमान कर दिया गया जो विरोध कर रहे थे न समर्थन कर रहे थे वह ख़ामोश थे इसकी क्या वजह थी यह तो साफ़ है कि वह इस तरह के हालात से सहमत है नहीं तो ग़लत तो ग़लत है उसका विरोध करना चाहिए यही लोकतंत्र है ,लेकिन जब हमारे हितों का नुक़सान हो तभी हम विरोध करेंगे अन्यथा नही उसका नतीजा यही होता है कल मुसलमान को आतंकी कहा जा रहा था आज किसान को नक्सली, खालिस्तानी,चीन परस्त, पाकिस्तान परस्त कहा गया यह बात अलग है ना CAA ,NPR व संभावित NRC का विरोध करने वाले आतंकी थे और न किसानों के हक़ों का नाम देकर अपने उद्योगपति दोस्तों अड़ानी अंबानी के फ़ायदे के लिए बनाए गए तीनों कृषि क़ानूनों का विरोध करने वाले किसान खालिस्तानी है न नक्सली और न चीन व पाकिस्तान परस्त वह भी भारतीय थे यह भी भारतीय है।

मोदी सरकार के लिए न मुसलमान मायने रखता है और न किसान उसकी पहली प्राथमिकता अंबानी अड़ानी है न खाता न बही, जो अड़ानी अंबानी कहें वही सही और यही रहेंगे तुम चाहे कितना भी चिल्लाओ मोदी सरकार पर इसका कोई असर नही होता।लाखों किसान जिस तरीक़े से हाड़ कंपा देने वाली ठंड में अंधखुले टेंटों में नई दिल्ली की सीमाओं पर पड़े है इतनी सर्द हवाओं के बीच जिसमें रहना तो दूर कल्पना करने भर से कपड़े और सामान भीग जाए उसी बारिश के बीच रातें गुज़ारनी पड़े वह भी अपने द्वारा बनाए गए बादशाह की हठधर्मिता के चलते अब इस हालात में उस दिल पर क्या गुजर रही होंगी जिसको हमने ही पाल पोस कर बड़ा किया हो यह रेखांकित करना मेरे लिए मुश्किल है।ख़ैर जिसको यह सोच कर गद्दी सौंपी थी कि हम ही हम होंगे उसकी सरकार में हम कुछ भी नहीं।दिल्ली न देख रही है न सुन रही है और न बोल रही है बादशाह की आँखें ,कान बंद है और ज़बान सिल गई है जो चुनाव में बहुत बोलते है जुमले पर जुमला फेंकते है किसी की कपड़ों से पहचान करते है तो किसी को पकोड़े तलने को कहकर रोज़गार का नाम देते हैं और जनता उन जुमलों के साथ छह सालों से ख़ामोशी और निराशा से खेल रही है।वैसे तो किसानों को नेताओं के द्वारा अन्नदाता कहा जाता है किसान अन्नदाता है यह बात अलग है कि वह हैं या नहीं हैं इस पर फिर कभी चर्चा करेंगे।

जिसने देश के गोदामों को खाद्यान्नों से लबरेज़ कर दिए भारत की छवि को आत्मनिर्भर बनाने में मदद की अपना सहयोग दिया उसको नज़रअंदाज़ नही किया जा सकता वही किसान भीगता ठिठुरता हुआ सड़क पर खड़ा है किसकी वजह से और क्यों ? उस बेचारे की यही तो माँग है कि हमें भी आत्मनिर्भर रहने दो अड़ानी अंबानी जैसे धन्नासेठों का गुलाम मत बनाओ।साहूकारों का नाम आते ही हमारे देश के किसानों का दिल काँपने लगता है क्योंकि उनके साथ उनका बड़ा पुराना और कड़वा अनुभव है।किसानों और साहूकारों के बीच आज के उद्योगपतियों के साथ एक संबंध है शोषण और उत्पीडन का।साहूकारों और उद्योगपतियों के द्वारा किसानों को बरसों से लूट रहे है कोई ब्याज से,चक्रवर्ती ब्याज से कोई सस्ती फ़सल लेकर बढ़ी क़ीमतों में बेचकर अपना ख़ज़ाना भरने में मशगूल रहते है,मगर उनपर कोई अंकुश नहीं हो सकता क्योंकि वह आज के हुक्मरानों के मालिक है।आज के इन क़ानूनों में अड़ानी अंबानी समूहों के मालिकों ने पहले ही स्पष्ट करा लिया था कि किसान अदालत नहीं जा सकेगा हालाँकि विरोध के चलते सरकार ने अभी इस हक पर रोक लगा दी है।

सरकार और किसानों के बीच में कोई समन्वय नहीं बन पा रहा हैं सरकार चाहती है विवादित तीनों कृषि क़ानून बने रहे और किसान किसी भी क़ीमत पर इन तीनों कृषि क़ानूनों को वापिस करने के अलावा किसी समझौते पर विचार करने को भी तैयार नहीं है इससे सरकार और किसानों के बीच आठ दौर की वार्ता के बाद भी कोई समाधान नहीं निकल पाया किसानों ने सरकार से सभी दौर की वार्ताओं में यश और नौ में बातचीत हुईं किसान अपना लंगर का खाना खाते है और सरकार पंच सितारा अशोका होटल से चाँदी की प्लेटों में परोसे जाने वाला खाना खाते है इतना फ़र्क़ है सरकार और किसानों की बीच में, मात्र एक दिन सरकार ने दिखावे के तौर पर लंगर का खाना खाया किसानों के साथ।

किसान नेता राकेश टिकैत ने हमारे से बातचीत करते हुए कहा कि हम एक बात सरकार को समझाना चाहते है कि सरकार को इस ग़लतफ़हमी में नहीं रहना चाहिए कि वह हमें यहाँ से किसी के आदेश से हटा देंगे हम किसी के आदेश से भी हटने वाले नही हैं उनका इसारा सुप्रीम कोर्ट की ओर था उनका कहने का अंदाज अलग ही था वह कह रहे थे कि समझ रहे हैं न हम क्या कहना चाह रहे है नाम लेना मुनासिब नहीं है।अब किसानों की आशंका लगता है सही साबित हो सकती है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा कि किसानों के आंदोलन में कोविड-19 की गाइडलाइन का पालन हो रहा हैं या नही अब सवाल उठता है कि क्या किसानों के आंदोलन को कोरोना को बहाना बनाकर ख़त्म कराने की सरकार की कोशिश होंगी ?

सवाल यह भी है कि क्या सुप्रीम कोर्ट को चुनावी भीड़ पर भी कोरोना की गाइडलाइन के पालन पर सरकार और विपक्ष से पूछना चाहिए था कोरोना वायरस की गाइडलाइन का पालन वहाँ भी होना चाहिए न कि सिर्फ़ आंदोलनों से ही कोरोना फैलता है यह ऐसा सवाल है जो हर किसी के ज़हन में घूम रहा है।सुप्रीम कोर्ट ने भी दिखाया कोरोना वायरस के फैलने का भय।इसके बाद टकराव के हालात पैदा हो सकते है क्योंकि सरकार पूरी तरीक़े से इस आंदोलन के सामने हताश और निराश खड़ी दिखाई दे रही है वह यहाँ बिलकुल फैल साबित हुई है असल में इस सरकार के छह साल हिन्दू मुसलमान के धुर्वीकरण करने में निकल गए किया कुछ नही कभी तीन तलाक़ का मामला लाकर हिन्दू मुसलमान कर देती कभी राममंदिर का मुद्दा लाकर इसके अलावा कोई सकारात्मक कार्य नही किया जिसकी बुनियाद पर जनता के बीच जा सके हिन्दुस्तान के इतिहास में अविश्वसनीय सरकार साबित हुईं है परन्तु हिन्दू मुसलमान करने में झूठ बोलने में इनका कोई मुक़ाबला नही कर सकता है यही सच है।

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