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नीतीश कुमार भारतीय राजनीति का राहुल द्रविड़ और वीवीएस लक्ष्मण है, हमेशा बैकफूट से खेलते है
Nitish Kumar, Rahul Dravid, VVS Laxman ,Indian politics
संतोष सिंह
कल देर रात दिल्ली से एक बड़े पत्रकार का फोन आया कैसे हो संतोष ,जी सर ठीक है आज कल स्वराज पर पूरा ध्यान दे रहे हो क्या विचार है कुछ खास नहीं बस यू ही सर ,अच्छा है यह काम आपको बहुत पहले करना चाहिए था हम दिल्ली वाले बिहार की खबर को लेकर आप पर खास नजर रखते हैं।
खैर एक सवाल है आपसे नीतीश के दिल्ली यात्रा के दौरान नीतीश के बॉडी लेंगुएज में जो बदलाव आ रहा है वो उनकी आत्ममुग्धता है या आत्सविश्वास ।
सर मेरा मानना है कि नीतीश कुमार भारतीय राजनीति का राहुल द्रविड़ और वीवीएस लक्ष्मण है,नीतीश की राजनीतिक शैली पर गौर करिए वो हमेशा बैकफुट से खलते हैं कभी नीतीश को आप फ्रंटफुट पर खेलते हुए नहीं देखे होंगे, 1973 के छात्र संघ के चुनाव में वो लालू को नेता बनाने में लगे थे, हारते हारते 1985 में पहली बार विधायक बने ,1990 में जब लालू प्रसाद और रामसुन्दर दास मैदान में थे उस वक्त भी नीतीश लालू के साथ खड़े रहे यह समझते हुए कि लालू के मुख्यमंत्री बनने के बाद बिहार की राजनीति में उनकी सम्भावना नहीं रहेगी ।
लेकिन वो लालू का साथ नहीं छोड़े और जब उन्हें लगने लगा कि उनकी जो राजनीतिक छवि बनी है वो लालू के साथ रहते कमजोर पड़ सकती है तो फिर वो लालू का साथ छोड़ दिए ,1995 में उनकी पार्टी बूरी तरह से चुनाव हार गयी वहां भी वो जार्ज के पीछे ही खड़े रहे ,याद करिए जब 2000 के बिहार विधानसभा चुनाव का जब परिणाम आया राजद के बाद सबसे अधिक सीट 66 सीट बीजेपी जीत कर आयी थी और नीतीश की पार्टी को मात्र 34 सीट मिला था क्या हुआ बाजपेयी जी नीतीश पर भरोसा जताते हुए उन्हें बिहार का मुख्यमंत्री बनने का आग्रह किया जबकि कही से भी वो दूर दूर तक वो बिहार के सीएम पद के उम्मीदवार नहीं थे और 2005 के चुनाव में तो बीजेपी नीतीश के चेहरे पर ही चुनाव मैदान में उतरा ।
2020 के चुनाव में क्या स्थिति थी मोदी जैसा शक्तिशाली नेता भी हर सभा में नीतीश सीएम होंगे बोलते हुए थक नहीं रहे थे ।मतलब नीतीश ने 35 वर्ष के राजनीतिक जीवन में सामने वाले को यह भरोसा दिलाने में हमेशा कामयाब रहे कि हम साथ रहेंगे तो एक सम्मान जनक स्कोर जरुर खड़ा कर देंगे ,और इसी भरोसा के साथ नीतीश बिहार से बाहर निकले हैं उन्हें राजनीति के अंकगणित में नीतीश की क्या हैसियत है ये नीतीश को पता है इसलिए प्रधानमंत्री पद को लेकर उन्होंने स्थिति साफ कर दिया है ये समझते हुए कि अगर स्थिति बनी तो बन भी सकते हैं नहीं बने तो खोने के लिए अब बचा ही क्या ।
और यही वजह है कि दिल्ली में नीतीश ममता और केसीआर से अधिक मजबूती के साथ मोदी पर हमला भी रहे हैं और जिनसे भी मिलने गये एक सम्मान के साथ इनसे हाथ मिलाया ।हर मुलाकात के बाद मोदी पर हमला कर रहे हैं लेकिन बीजेपी के किसी भी नेता की जुवान तक नहीं खुल रही है पीएम मोदी ये जरुर बोले कि हमारे खिलाफ सारे भ्रष्टाचारी एक साथ हो रहे हैं लेकिन नीतीश ऐसा चेहरा है जिस पर अभी भी दाग नहीं और यही ताकत मोदी और शाह को परेशान किये हुए हैं ।
ममता बाहर निकली तो सीबीआई और ईडी से सहारे ऐसा घेराबंदी किया कि उनकी बोलती बंद है वो जबाव देने कि स्थिति में नहीं है कि उनके मंत्री के पास इतने पैसे कहां से आये। बिहार में क्या हुआ राजद के जिन तीन नेता के घर छापेमारी हुई सीबीआई को अनुमान था कि इन तीनों के यहां से( RJD सांसद अशफाक करीम, फैयाज अहमद के अलावा एमएलसी सुनील सिंह) 30 से 40 करोड़ रुपये की सम्पत्ति और नगद और जेबरात के रुप में जरुर मिलेगा ।
लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं मिला अभी हाल यह है कि ईडी बिहार के तीन चार मंत्री के घर ,ससुराल नाते रिश्तेदार और दोस्त का डाटा खंगाल रही है कही से कुछ बड़ा मिल जाये क्ययों कि बीजेपी के पास यही एक जरिया है जिसके सहारे नीतीश की घेराबंदी की जा सकती है ।
जहां तक मुझे जानकारी है सीबीआई और ईडी की 40 से अधिक अधिकारी इन दिनों बिहार में इसी काम में लगे हैं आरसीपी सिंह को करीब लाने के पीछे भी यही सोच है कि नीतीश के निवेश का कुछ सबूत दे दे ताकी उन्हें भी भ्रष्ट घोषित किया जा सके ।
सृजन में तीसरी बार नये सिरे से अनुसंधान शुरु हुआ है लेकिन नीतीश तक पहुंच नहीं पा रहा है इसकी एक बड़ी वजह है कि कही का भी अधिकारी हो नीतीश कुमार को लेकर थोड़ा सोफ्ट रहते हैं क्यों कि अब अधिकारियों में सवर्ण का दबदवा नहीं के बराबर रह गया है जो मोदी के लिए किसी भी हद तक जा सकता है देख नहीं रहे हैं ईडी के हेड को पंडित जी को सेवा विस्तार पर विस्तार किये जा रहे हैं लेकिन मोदी को भरोसेमंद दूसरा अधिकारी नहीं मिल रहा है ।
नीतीश इन सब बातों को समझते हैं और सबसे बड़ी बात है उनके पास राजनीति का जो अनुभव है उस तरह के अनुभव का कोई दूसरा नेता देश के सामने नहीं है वही विपंक्ष में जो नेता हैं उनसे नीतीश का हमेशा से बेहतर रिश्ता रहा है ।
गौर करिएगा तो नीतीश राष्ट्रीय राजनीति में पकड़ मजबूत हो इसके लिए बिहार के सीएम रहते 10 वर्ष से ही काम कर रहे हैं।
याद है नीतीश कुमार बिहार में गुरुगोविन्द सिंह के 350 वाँ जन्मदिन मना कर सिख के दिलो पर राज कर ही रहे हैं और पहली बार गया में जो पिंड दान का आयोजन हो रहा है मौका मिले तो आकर देखिए कितनी भव्यता के साथ आयोजन सरकार कर रही है पहली बार इस तरह की व्यवस्था देखने को मिल रहा है मतलब इसी आयोजन के सहारे राष्ट्रीय स्तर पर एक छवि बनाने की तैयारी में हैं।इसलिए मेरी समझ ने नीतीश का आत्मविश्वास बढ़ा क्यों कि बिहार में इन्होंने ऐसी किलाबंदी कर दी है जिसे भेदना फिलहाल मुश्किल दिख रहा है और इस वजह से राष्ट्रीय राजनीति में खुल कर खेलने में इन्हें परेशानी नहीं है।
क्या बात है धन्यवाद आपने तो रविवार का आलेख का मेटेरियल दे दिया अरे रात का एक बजे गया सांरी सांरी संंतोष जी माफ करिए दिल्ली वाले के लिए इतनी रात का कोई मतलब नहीं है लेकिन आपको बहुत कष्ठ दे दिए सांरी आइए दिल्ली इन्तजार कर रहे हैं आपका ।