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न्याय और शांति के लिए दसवें दिन भी जारी रही पदयात्रा, वर्तमान समय की जरूरत नहीं, मजबूरी है पलायन
नई दिल्ली। वर्तमान समय में पलायन एक गंभीर समस्या के रूप में हम सबके सामने है। लाखों लोग रोजगार की तलाश में शहरों की ओर पलायन करते हैं। कोविड –19 महामारी ने पूरे देश के सामने पलायन कर चुके श्रमिकों की समस्या को महत्वपूर्णता से उजागर किया है, जिसे हम काफी समय से अनदेखा कर रहे थे। पलायन की समस्या को रोकने के लिए एक ऐसी अर्थव्यवस्था की आवश्यकता है जिसमें गैरबराबरी ना हो। एक तरह से कहें तो देश को अहिंसात्मक अर्थव्यवस्था की जरूरत है। जहां सबकी भागीदारी और हिस्सेदारी हो। वर्तमान समय में जन संगठन एकता परिषद गाँधीवादी राजगोपाल पी. व्ही. की अगुवाई में यही कार्य कर रहा है।
उल्लेखनीय है कि एकता परिषद और सर्वोदय समाज गाँधीवादी विचारक राजागोपाल पी. व्ही के नेतृत्व में 21 सितम्बर से न्याय और शान्ति पदयात्रा पर है। इस पदयात्रा के दरम्यान मध्यप्रदेश में पलायन एक बड़ी समस्या के रूप में उभर कर सामने आया है। एकता परिषद के प्रदेश अध्यक्ष डोंगर शर्मा कहते हैं, "कोविड -19 महामारी के दौरान जो लोग शहर से वापस अपने गाँव की ओर आए थे, अब वापस रोजगार की तलाश में शहर की ओर पलायन कर चुके हैं। जिनके पास थोड़ी बहुत ही जमीन है वह कुछ ना कुछ करके जीवन यापन कर रहे हैं। लेकिन जो भूमिहीन हैं उनके लिए पलायन करना मजबूरी है।"
बुंदेलखंड और चंबल में पदयात्रा की आगुवाई कर रहे एकता परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष रनसिंह परमार के अनुसार, "बुंदेलखंड और चंबल इलाके में लोग बड़ी संख्या में ऋतुकालीन पलायन करते हैं। पलायन करने वाले लोगों में ज्यादातर लोग आदिवासी और दलित समाज से आते हैं। इनकी आजीविका पलायन पर ही निर्भर है। कोविड के दौरान बड़ी संख्या में यहां के लोग बाहर फंस गए थे। कुछ लोग फसल की कटाई के लिए और कुछ लोग छोटे मोटे उद्योग-धंधे में रोजगार के लिए पलायन करते हैं। लोगों के पास स्थानीय रोजगार की उपलब्धता नहीं है, नरेगा के अंदर भी लोगों को रोजगार नहीं मिल रहा है, जमीन लोगों के पास है नहीं, जंगल कट रहे हैं तो वनोपज भी नहीं है, तो इनके लिए पलायन ही एक मात्र आजीविका का साधन है।"
मध्यप्रदेश के धार जिले में पदयात्रा की अगुवाई कर रही एकता परिषद की राष्ट्रीय संयोजक श्रद्धा कश्यप के अनुसार, "गांवों के खेतों में फसल होने के वाबजूद भी लोगों की संख्या कम नजर आ रही है। स्कूल और कॉलेज खुले होने के बाद भी युवा मजबूर होकर रोजगार की तलाश में पलायन कर रहे हैं। गाँव में गाय, भैंस, बकरी आदि चराने के लिए बुजुर्गों को छोड़ दिया गया है, 80 प्रतिशत गांव खाली है। यहाँ से हर दिन लोग मालवा, गुजरात आदि जगहों के लिए रोजगार की तलाश में पलायन कर रहे हैं। प्रदेश का यह क्षेत्र वैसे भी सूखा क्षेत्र है, ऐसे में इनके पास जीवनयापन के लिए पलायन एक मात्र विकल्प रह जाता है।"
उल्लेखनीय है कि न्याय और शान्ति पदयात्रा – 2021 देश के 105 जिलों के साथ-साथ विश्व के 25 देशों में आयोजित की जा रही है। वहीं मध्यप्रदेश में यह पदयात्रा 27 जिलों में चल रही है। यात्रा के दौरान लगभग पांच हजार पदयात्री पैदल चल रहे हैं और लगभग दस हजार किलोमीटर की दूरी तय की जाएगी। इस अनूठी पदयात्रा का समापन 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के मौके पर की जाएगी। 2 अक्टूबर को दुनिया में अन्तराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाया जाता है।