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कथक सम्राट पद्म विभूषण पंडित बिरजू महाराज का निधन, उनसे जुड़ी 4 यादें
कथक सम्राट पद्म विभूषण पंडित बिरजू महाराज अब हमारे बीच नहीं हैं। रविवार की देर रात हार्ट अटैक की वजह से 83 वर्षीय पंडित बिरजू महाराज का निधन हो गया। पंडित बिरजू महाराज की वंशावली पर लखनऊ घराने की मुहर लगने के बाद भी उनकी हस्ती कभी बनारस घराने से जुदा नहीं समझी गई। चाहे पुश्तों के हिसाब से देखें या फिर रिश्तों के लिहाज से परखें, बिरजू महाराज के बुलंद किरदार और बिजली से कौंधते उनके कदमताल पर संगीत के तीर्थ बनारस की कथक शैली की छाप साफ नजर आती थी। पंडितजी के निधन का समाचार सुनकर काशी के कला और संस्कृति के क्षेत्र के लोगों के साथ ही सामाजिक सरोकार से जुड़े लोग शोक में डूब गए हैं।
कथक सम्राट बिरजू महाराज का निधन संगीत जगत के लिए बड़ी क्षति है। कथक के पर्याय रहे बिरजू महाराज देश के प्रसिद्ध शास्त्रीय नर्तक थे। वे भारतीय नृत्य की कथक शैली के आचार्य और लखनऊ के 'कालका-बिंदादीन' घराने के प्रमुख थे। उनके जन्म से लेकर मृत्यु तक की कहानी काफी रोचक है। आइये पढ़ते हैं:-
बिरजू महाराज का जन्म 4 फरवरी 1938 को लखनऊ के 'कालका-बिन्दादीन घराने' में हुआ था। बिरजू महाराज का नाम पहले दुखहरण रखा गया था। यह बाद में बदल कर 'बृजमोहन नाथ मिश्रा' हुआ। इनके पिता का नाम जगन्नाथ महाराज था, जो 'लखनऊ घराने' से थे और वे अच्छन महाराज के नाम से जाने जाते थे। बिरजू महाराज जिस अस्पताल में पैदा हुए, उस दिन वहां उनके अलावा बाकी सब लड़कियों का जन्म हुआ था, इसी वजह से उनका नाम बृजमोहन रख दिया गया। जो आगे चलकर 'बिरजू' और फिर 'बिरजू महाराज' हो गया।
ससुराल के साथ ही काशी में समधियाना भी था
पंडित बिरजू महाराज ने एक बार काशी में कहा था कि 17वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में बनारस स्टेट के हंडिया क्षेत्र (अब प्रयागराज जिले की तहसील) के नृत्य साधकों का एक परिवार तत्कालीन अवध के नवाब असफउद्दौला के बुलावे पर लखनऊ आया था। उनके दरबार के चुनिंदा रत्नों में शामिल हुआ। कथक सम्राट पं. बिरजू महाराज उसी कुलवंश के चश्मे-चिराग हैं। रिश्तों की बात करें तो गिरिजा देवी के गुरु पंडित श्रीचंद्र मिश्र की पुत्री लक्ष्मी देवी पंडितजी की जीवन संगिनी बनीं।
वहीं, विख्यात सारंगी वादक पंडित हनुमान प्रसाद मिश्र के छोटे पुत्र पंडित साजन मिश्र के साथ पंडितजी की बड़ी बेटी कविता का विवाह हुआ। पंडित बिरजू महाराज के एक भाई ने बनारस घराने के पंडित रामसहाय के सानिध्य में तबला वादन में निपुणता हासिल कर बनारस बाज शैली को बुलंदियों तक पहुंचाया।
संकटमोचन संगीत समारोह के प्रति थी विशेष आस्था
संकटमोचन मंदिर के महंत और BHU-IIT के प्रो. विश्वंभरनाथ मिश्र ने बताया कि संकटमोचन संगीत समारोह के प्रति पंडितजी की विशेष आस्था थी। पंडितजी कहते थे कि वाराणसी गुणी संगीतत्रों की जन्म-कर्मस्थली है। इस समारोह की बेला में अपनी सृजनात्मक यात्रा को स्वयं के लिए पुण्य उपलब्धि मानता हूं। 2018 के समारोह में पंडित बिरजू महाराज ने कथक के भावों से और पंडित जसराज ने सुरों से नटवर नागर का स्वरूप सजाया था।
समारोह में मौजूद लोगों का मन मयूर इस कदर झूमा था कि उसकी अभिव्यक्ति हर-हर महादेव के उद्घोष के रूप में गूंजती रह गई थी। प्रो. विश्वम्भरनाथ मिश्र ने कहा कि कोरोना महामारी का जब से प्रकोप देश और दुनिया में फैला तभी से पंडितजी यहां नहीं आए। आखिरी बार लगभग 3-4 महीने पहले उनसे बात हुई थी तो उन्होंने कहा था कि जल्द ही काशी फिर आना होगा। ऐसी पुण्य आत्माएं सदियों में एकाध बार ही अवतरित होती हैं।
हर-हर महादेव के उद्घोष से दिशाएं गूंजती हैं
पद्म भूषण पंडित साजन मिश्र ने साल 2021 में अपने समधी के जन्मदिन से एक दिन पहले कहा था कि महाराजजी बनारस के किसी भी मंच पर उपस्थित हों तो हर-हर महादेव के उद्घोष से दिशाएं गूंज जाती हैं। वह जहां खड़े हो जाते हैं वहां स्वयं नटराज कृपा बरसाते हैं। हर पद संचलन और भाव मुद्रा में उनमें नटराज की छवि उतर आती है। उम्र की थकान के बावजूद चेहरे के विविध भावों और हाथों की अनूठी मुद्राओं की जीवंत प्रस्तुतियों से वह अपने प्रशंसकों को रिझा कर मंच पर छाए रहते हैं।
रियाज में रियायत नहीं देते थे
पंडित बिरजू महाराज की बड़ी पुत्री और उनकी शिष्या कविता मिश्र ने पिछले साल बताया था कि गुरुकुल में अन्य शिष्य हो या हम लोग, रियाज में वह किसी तरह की रियायत नहीं देते थे। नर्तन में कृष्ण की भाव भंगिमा हो या राधा रानी की कटाक्ष मुद्रा, क्या अंतर है। यह साधने में कई दिन गुजर जाते थे। उनका पखावज, वीणा या हारमोनियम वादन पर आज भी उनका गजब का अधिकार था। बता दें कि पंडित बिरजू महाराज को काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) ने डॉक्टरेट की मानद उपाधि भी दी थी।