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पायलट ने फिर भाजपा का दरवाजा खटखटाया, गहलोत समर्थक विधायक भी रस्सी तोड़ने पर आमादा
बगावती तथाकथित कांग्रेसी नेता सचिन पायलट फिर से बगावत पर उतारू है । इस दफा वे आर पार की लड़ाई लड़ने के मूड में है । मुख्यमंत्री बनने के चक्कर मे वे पिछले साल भी बगावत का झंडा उठा चुके है । इनकी बगावत पार्टी के लिए घातक हो सकती है तो पायलट का राजनीतिक भविष्य हो सकता है अंधकारमय । उनको सूझ नहीं रहा है कि उनके लिए उम्दा बीजेपी रहेगी या नई पार्टी ।
पायलट इस आधार पर मुख्यमंत्री बनने की दावेदारी आलाकमान के सामने जता चुके है कि उनके प्रयास और मेहनत की वजह से ही पार्टी सत्ता में आई है । लेकिन लोकसभा चुनावों में पार्टी का सूपड़ा कैसे साफ हुआ, इसका जवाब पायलट के पास नही है । आलाकमान ने इनकी दावेदारी को खारिज करते हुए अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बना दिया । सचिन पायलट तभी से मुँह फुलाए बैठे है ।
अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री की कुर्सी से बेदखल कर खुद उस कुर्सी पर बैठने की मंशा के साथ पायलट ने पिछले साल अपने 19 विधायकों के साथ बगावत का बिगुल बजाया था । ये सभी 19 विधायक या तो मंत्री बनना चाहते थे या ख्वाहिश रखते थे पहले से ज्यादा रुतबे की । सरदारशहर से विधायक भंवरलाल शर्मा, दीपेन्द्रसिंह तथा हेमाराम चौधरी इसलिए खफा थे कि वरिष्ठ होने के बाद भी उनको मंत्रिमंडल में जगह नही मिली । शर्मा, चौधरी तथा दीपेन्द्रसिंह पहले भी मंत्री रह चुके थे । इसलिए इनकी नाराजगी वाजिब थी । रमेश मीणा और विश्वेन्द्र सिंह कोई मलाईदार विभाग की आस में थे । लेकिन इनकी ख्वाहिश पूरी नही हुई । ऐसे में नाराज होना स्वाभाविक भी है ।
दरअसल जब पायलट ने बगावत की थी उससे कुछ ही समय पहले उनके खास मित्र ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा के मंदिर में ढोक लगाई थी । सिंधिया की तर्ज और सलाह पर ही पायलट भी भाजपा में जाने के लालायित थे ताकि वे बीजेपी की बैसाखी के सहारे राजस्थान के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हो सके । मगर ख्वाब अधूरा रह गया ।
मंत्री पद की कुर्सी पर बैठ सके इस ख्वाहिश और उम्मीद के साथ 19 विधायक पायलट के बहकावे में आकर हरियाणा के मानेसर जा धमके । भाजपा में प्रवेश के लिए दरवाजा खटखटाया गया । परन्तु पायलट गुट को कोई सफलता हासिल नही हुई । भाजपा आलाकमान ने जोड़ बाकी लगाया कि इन 19 विधायकों के बलबूते पर राजस्थान में सत्ता परिवर्तन नही हो सकता है । लिहाजा पायलट गुट बैरंग जयपुर लौटना पड़ा ।
जयपुर लौटने के अलावा पायलट गुट के पास कोई विकल्प ही नही बचा था । भाजपा ने अपना दरवाजा कर दिया । इधर पार्टी ने पायलट से उप मुख्य मंत्री और पीसीसी चीफ का पद छीन लिया । साथ गए रमेश मीणा और विश्वेन्द्र सिंह को भी अपना मंत्री पद गंवाना पड़ा । जयपुर लौटते वक्त पायलट ने अपने समर्थित विधायकों को भरोसा दिलाया कि उन्हें यथोचित सम्मान मिलेगा । इन लोगों का ख्वाब कभी पूरा होगा, इसमें फिलहाल तो संशय ही दिखाई देता है ।
खुद पायलट आश्वस्त थे कि उन्हें बेहतर तरीके से समायोजित किया जाएगा । मगर हुआ उलटा । पार्टी में इन दिनों पायलट की बेहद बेकद्री हो रही है । राहुल गांधी की राजस्थान यात्रा के दौरान पायलट को मंच पर बैठने तक नहीं दिया । खुद राहुल गांधी भी पायलट के प्रति उदासीन रहे । ऐसे में गहलोत और पीसीसी चीफ गोविंद सिंह डोटासरा ने भी पायलट से दूरी बनाए रखी ।
पायलट अब समझ चुके है कि मानेसर से जयपुर लौटते वक्त प्रियंका और राहुल ने जो वादा किया वह मात्र छलावे और धोखेबाजी के अलावा कुछ नही था । इसलिए अब पायलट एन्ड कंपनी फिर से बगावत पर उतारू है । चाकसू में जो हुआ वह ट्रेलर था । आगे की फ़िल्म अभी बाकी है । किसान महापंचायत के जरिये पायलट अपनी ताकत दिखा रहे है । लेकिन इसका कितना असर होगा, जल्दी दिखाई देने वाला है ।
खबर मिली है कि पायलट और भाजपा के बीच फिर से खिचड़ी पक रही है । बताया जाता है कि भाजपा का फिर से दरवाजा खटखटाने का प्रयास कर रहे है । लेकिन भाजपा आलाकमान पायलट के प्रस्ताव पर ज्यादा गम्भीर नही है । इधर सचिन पायलट भी यह बात बेहतर तरीके से समझ चुके है कि उनका कांग्रेस में अब भविष्य नही है । राहुल गांधी जिसके पीछे पायलट उछल रहे थे, उन्होंने फिलहाल दूरी बना रखी है । पायलट के लिए यही सबसे बड़ी खतरे की घंटी है ।
पायलट को सबसे बड़ा यह खतरा नजर आ रहा है कि कहीं अगले चुनावों में गहलोत उनकी टिकट ही नहीं कटवा दे । यह नौबत आए उससे पहले पायलट अपना बन्दोबस्त करने की जुगत में है । वह महापंचायत के जरिये गहलोत और आलाकमान पर प्रेसर डालने का प्रयास कर रहे है । मगर यह पासा उनके लिए घातक साबित नजर आ रहा है । पायलट की सबसे बड़ी गलती यह रही कि उन्होंने सब्र से काम नही लिया । वरना अगली बार उनका मुख्यमंत्री बनना सुनिश्चित था । हालांकि अभी कांग्रेस की हालत ठीक नही है । लेकिन विरोधी पार्टी बीजेपी की सेहत कांग्रेस से भी ज्यादा गंभीर है । ऐसे में पायलट के लिए मुख्यमंत्री बनने के दरवाजे खुले हुए थे । अगली बार गहलोत के पास भी उनका विरोध करने का कोई मजबूत आधार नहीं है ।
वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए गहलोत को ज्यादा इतराना नहीं चाहिए । उन्हें यह नही भूलना होगा कि उनकी पार्टी के अधिकांश विधायको का सब्र पूरी तरह टूट चुका है । ढाई साल इन विधायकों को लॉलीपॉप देते हुए बीत चुके है । अगर गहलोत ने शीघ्र मंत्रिमंडल का विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियां नही की तो जिन विधायकों को अब तक बांधे रखा, वे रस्सी तुड़ा कर भाग भी सकते है । यह बात आलाकमान और कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी अजय माकन को भी नहीं भूलनी चाहिए । बगावत की आग सुलग तो चुकी है । अब केवल हवा देना शेष है ।