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मित्रसेन के नाम से शुरू होती है मिल्कीपुर विधानसभा की राजनीति
अयोध्या। आजादी के बाद से मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर विधायकी का इतिहास पूर्वांचल के कद्दावर एवं बाहुबली नेता माने जाने वाले स्वर्गीय मित्रसेन यादव के नाम लिखा गया है। क्योंकि स्वर्गीय मित्र सेन यादव इसी मिल्कीपुर विधानसभा सीट से 6 बार विधायक और फैजाबाद संसदीय क्षेत्र से दो बार सांसद भी रहे हैं।
यही नहीं जिले में पिछड़ा क्षेत्र के रूप में माने जाने वाले मिल्कीपुर विधानसभा क्षेत्र से राजनीति की धुरी स्वर्गीय मित्रसेन यादव के ही इर्द-गिर्द घूमती रही है और वह मिल्कीपुर के किंग मेकर भी कहे जाते रहे हैं। मित्रसेन यादव ने मिल्कीपुर विधानसभा सीट से कई बार हैट्रिक लगाई है।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के चुनाव निशान हंसिया बाली से वर्ष 1977 में उन्होंने पहला चुनाव जीता और मरते दम तक विधायक रहे। हालांकि विधानसभा चुनाव 2012 में मिल्कीपुर की सीट अनुसूचित जाति के आरक्षित कोटे में चले जाने के बावजूद भी उन्होंने जिले की बीकापुर विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी के सिंबल पर चुनाव जीता था। लेकिन मिल्कीपुर की राजनीति में उनका दखल निरंतर रहा। वर्ष 1977, 1980, 1985 व 1989 के विधानसभा चुनाव में वह लगातार मिल्कीपुर से विधायक चुने गए थे।
उन्हें मिल्कीपुर की राजनीति में कांटे की टक्कर देने वाले कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे स्वर्गीय बृजभूषण त्रिपाठी ने एक बार कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर करारी शिकस्त दी थी और वह चुनाव हार गए थे। इसके अलावा राम मंदिर आंदोलन जब चरम पर था उस बीच रामलहर के चलते स्वर्गीय मित्र सेन यादव के शिष्य ब्लाक प्रमुख कमलासन पांडे को भाजपा प्रत्याशी मथुरा प्रसाद तिवारी ने पराजित किया था। लेकिन कल्याण सिंह के नेतृत्व में बनी भाजपा सरकार गिर जाने के चलते दोबारा हुए विधानसभा चुनाव में फिर मित्रसेन यादव मिल्कीपुर के विधायक निर्वाचित हुए थे।
मित्रसेन यादव मिल्कीपुर विधानसभा क्षेत्र ही नहीं समूचे प्रदेश में उस वक्त चर्चा में आ गए थे जब फैजाबाद से सांसद चुने जाने के बाद मिल्कीपुर में हुए उपचुनाव में उन्होंने अपने बेटे आनंद सेन यादव को विधानसभा का चुनाव न लड़ा कर अपने परिवार से भी बगावत ले ली थी। मित्रसेन यादव ने अपने शिष्य रामचंद्र यादव को उप चुनाव में समाजवादी पार्टी से प्रत्याशी घोषित कराते हुए एड़ी चोटी का जोर लगाकर रामचंद्र यादव को मिल्कीपुर का विधायक भी बनाया था।
हालांकि उनके बेटे आनंद सेन यादव ने जेल में रहकर मिल्कीपुर विधानसभा का चुनाव बसपा के बैनर तले लड़ा था और उस समय अपने पिता के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले रामचंद्र यादव पटखनी भी दे दी थी। आनंद सेन यादव प्रदेश में बसपा सरकार बनने के बाद राज्यमंत्री भी बनाए गए थे। हालांकि उन्हें एक दलित बालिका के अपहरण एवं हत्या के आरोप में राज्यमंत्री का पद छोड़ना पड़ा था और जेल तक का लंबा सफर भी तय करना पड़ा था। परिसीमन और जनगणना के बाद वर्ष 2012 में मिल्कीपुर की सीट अनुसूचित कोटे में चली गई थी और आरक्षित हो जाने के चलते उन्होंने जिले की पड़ोसी विधानसभा बीकापुर में अपना राजनीतिक डेरा डाल दिया था जहां से सपा के सिंबल पर विधायक चुने गए थे।
हालांकि उन्होंने सपा प्रत्याशी अवधेश प्रसाद को मिल्कीपुर से विधायक बनाने में अपनी महती भूमिका अदा की थी। 2017 के विधानसभा चुनाव में मोदी लहर के बीच गोरखनाथ बाबा मिल्कीपुर से भाजपा विधायक चुने गए थे। अबकी बार 2022 का विधानसभा चुनाव मिल्कीपुर में सपा बनाम भाजपा होने के प्रबल आसार हैं।
जहां समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव एवं मिल्कीपुर से अनुसूचित कोटे में एक बार विधायक एवं पूर्व मंत्री अवधेश प्रसाद सपा से मिल्कीपुर विधानसभा के प्रबल दावेदार हैं वहीं दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी से विधायक रहे गोरखनाथ बाबा ने भी पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी घोषित किए जाने में अपनी मजबूती के साथ दावेदारी पेश की है। फिलहाल मिल्कीपुर की राजनीति की चर्चा होती है, मित्रसेन यादव का नाम सुर्खियों में आ जाता है और मिल्कीपुर विधानसभा की राजनीति ही मित्रसेन के नाम से ही शुरू होती है।