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प्रधानमंत्री मोदी की वैश्विक स्तर पर सात साल की कुटनीतिक पहल

प्रधानमंत्री मोदी की वैश्विक स्तर पर सात साल की कुटनीतिक पहल
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अरविंद जय तिलक

सात वर्ष के ऐतिहासिक कालखंड में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वैश्विक स्तर पर भारत की सफलता और साख के नए कीर्तिमान गढ़े हैं। उन्होंने जहां एक ओर अपनी सफल कुटनीति से अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जापान और रुस सरीखे ताकतवर देशों को अपना मुरीद बनाया है वहीं चीन और पाकिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय मोर्चे पर करारी पटकनी दी है। किसी भी राष्ट्र की विदेशनीति को प्रभावित करना अथवा अपने अनुकूल बनाना आसान नहीं होता। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने यह कमाल कर दिखाया है।

पड़ोसी देशों की बात करें तो बांग्लादेश, भूटान, म्यांमार, नेपाल, श्रीलंका और थाइलैंड से भारत के संबंध प्रगाढ़ हुए हैं। अभी चंद माह पहले प्रधानमंत्री मोदी ने बांग्लादेश की आजादी के 50 साल पूरे होने के अवसर पर यात्रा कर दोनों देशों के ऐतिहासिक व सभ्यतागत संबंधों को मिठास से भर दिया। दोनों देशों के बीच 5 अहम समझौते पर सहमति बनी जो कि संपर्क, उर्जा, व्यापार, स्वास्थ्य और विकास के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने जब पहली बार सत्ता संभाली तो सबसे पहले भूटान की यात्रा की। तब उन्होंने 'भारत के लिए भूटान और भूटान के लिए भारत' की जरुरत बता दोनों देशों के अटूट रिश्तों को सहेजने की कोशिश की।

उन्होंने भूटानी संसद के माध्यम से भूटान को भरोसा दिया कि दोनों देशों के रिश्ते पहले से अधिक प्रगाढ़ होंगे। 2019 में जब उन्होंने प्रधानमंत्री पद की दोबारा शपथ ली तब बिम्सटेक देशों के नेताओं को अपने शपथ समारोह में आमंत्रित किया और उसमें भूटान के प्रधानमंत्री लोते शेरिंग भी शामिल थे। प्रधानमंत्री मोदी ने भारत के छोटे भाई सरीखे नेपाल के साथ संबंधों को नया आयाम दिया है। उन्होंने अपनी नेपाल यात्रा के दौरान जनकदुलारी मां सीता की पावन जन्मस्थली जनकपुर स्थित जानकी मंदिर में दर्शन-पूजन कर दोनों देशों की धार्मिक-सांस्कृतिक विरासत को सहेजने की पहल की। तब उन्होंने कहा था कि वह बतौर प्रधानमंत्री नहीं बल्कि मुख्य तीर्थयात्री बनकर आए हैं।

प्रधानमंत्री मोदी के दिल से निकला यह उद्गार रेखंाकित करने के लिए पर्याप्त है कि नेपाल भारत के दिल में बसता है और भारत उसके सुख-दुख का साथी है। प्रधानमंत्री मोदी ने धार्मिक-सांस्कृतिक संबंधों से इतर दोनों देशों की उन्नति के लिए एक नई परिकल्पना '5-टी' यानी 'टेªडिशन (परंपरा), टेªड (व्यापार), टूरिज्म (पर्यटन), टेक्नोलाॅजी (तकनीक), और ट्रांसपोर्ट (परिवहन) के क्षेत्र में मिलकर काम करने की वकालत की और नेपाल ने भी सहमति जतायी। प्रधानमंत्री मोदी ने श्रीलंका का भी दिल जीता है और आज की तारीख में दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक, राजनीतिक, सामरिक और आर्थिक कारोबार को नई ऊंचाई मिल रही है।

पड़ोसी देशों से इतर प्रधानमंत्री मोदी की पहल से मध्य एशिया और यूरोप से भी संबंध मजबूत हुए हैं। प्रधानमंत्री मोदी के प्रयास से मध्य एशिया में भारत की भू-राजनीतिक स्थिति लगातार मजबूत हो रही है। व्यापार, उर्जा, अर्थव्यवस्था, संस्कृति, पर्यटन, पर्यावरण और सुरक्षा क्षेत्र को नया पंख लग रहा है। नियमित आदान-प्रदान, यात्राएं, विचार-विमर्श, सैन्यकर्मियों का प्रशिक्षण सैन्य तकनीकी सहयोग तथा संयुक्त अभ्यास जैसे कार्यक्रमों को बढ़ावा मिल रहा है। उम्मीद है कि प्रधानमंत्री मोदी की कुटनीति से मध्य एशिया के देशों से व्यापार, निवेश, अंतरिक्ष, स्वास्थ्य सुविधाओं, कृषि, सूचना एवं संचार प्रौद्यागिकी के क्षेत्र में भारत को पैठ बनाने में मजबूती मिलेगी।

मध्य एशिया से संबंधों की बेहतरी इसलिए भी आवश्यक है कि यह एक बहुत बड़ा उपभोक्ता बाजार है। इस क्षेत्र में भारत के लिए स्वयं को स्थापित करने का बड़ा अवसर है। प्रधानमंत्री मोदी के कुटनीतिक प्रयास से मुस्लिम देशों से भी बेहतर संबंध स्थापित हुए हैं। याद होगा 2019 में संयुक्त अरब अमीरात के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन जायद अल नहयान ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को यूएई के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'ऑर्डर ऑफ जायद' से नवाजा।

यह भारत के लिए गर्व का क्षण था। क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन जायद अल नहयान ने तब प्रधानमंत्री मोदी को भाई बताया था और 'अपने दूसरे घर' आने के लिए आभार जताया। तब प्रधानमंत्री ने अबू धाबी में व्यापार जगत के प्रवासी भारतीयों को संबोधित कर जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने का मकसद स्पष्ट किया और साथ ही भारतीय रुपे कार्ड को भी लांच किया। इस तरह पश्चिम एशिया में यूएई पहला देश बन गया जहां रुपे कार्ड चलता है।

सऊदी अरब से भी भारत के संबंध मजबूत हुए हैं। याद होगा पुलवामा हमले के दोषियों को सजा दिलाने की भारत की मुहिम को दुनिया भर में मिल रहे समर्थन के बीच फरवरी 2019 में भारत यात्रा पर आए सऊदी अरब के युवराज ने भी भारत के साथ कंधा जोड़ने का वादा किया। जबकि यह सच्चाई है कि सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच गहरी निकटता है। वैश्विक मसलों पर अमूमन दोनों का सुर एक जैसा रहता है। लेकिन इसके बावजूद भी सऊदी अरब का आतंकवाद के मसले पर भारत का समर्थन बदलते वैश्विक परिदृश्य में प्रधानमंत्री मोदी की बढ़ती महत्ता और सकारात्मक कुटनीतिक विजय का ही नतीजा है।

प्रधानमंत्री मोदी की कुटनीतिक पहल से मलेशिया, तुर्की, इंडोनेशिया, ईरान, नाइजीरिया, अल्जीरिया, कुवैत, कजाकिस्तान, कतर, मिस्र, बहरीन, ट्यूनीशिया, उज्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और जार्डन सरीखे अन्य मुस्लिम देशों से भी संबंध मजबूत हुए हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने इजरायल के साथ भारत के रिश्ते को पुनर्परिभाषित किया है। दोनों देशों के रिश्ते को स्वर्ग में बनने और धरती पर लागू करने के भावुक विचार रेखांकित करने के लिए पर्याप्त है कि दोनों देश भावनात्मक रुप से एकदूसरे के कितने निकट हैं। दक्षिण एवं पश्चिम एशिया के साथ-साथ भारत और यूरोपीय संघ के बीच भी रिश्ते परवान चढ़े हैं।

भारत और यूरोपीय संघ 'स्टैंड-अलोन' निवेश संरक्षण पर सहमति के साथ साझा हितों, लोकतंत्र, स्वतंत्रता, कानून का शासन, मानवाधिकारों का सम्मान जैसे कई अन्य मानवीय मसलों पर सहमति जताते हुए स्वीकार किया कि यह हमारी सामरिक साझेदारी का मूल्य है। अच्छी बात है कि दोनों पक्षों ने भारत-यूरोपीय संघ ढांचा 2025 को लेकर तय कार्य बिंदुओं पर आगे बढ़ने तथा टिकाऊ विकास एवं पेरिस समझौता 2030 के एजेंडे पर आगे बढ़ने को तैयार हैं।

दुनिया की महाशक्ति अमेरिका की बात करें तो प्रधानमंत्री मोदी ने अपने कुटनीतिक-रणनीतिक धार से दशकों पुराने अमेरिका की पाक नीति को बदलकर रख दिया है। उनकी कुटनीतिक पहल का ही नतीजा है कि अमेरिका की प्रतिनिधि सभा भारत के साथ रक्षा संबंध विकासित करने और रक्षा उपकरणों की बिक्री तथा प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के मामले में अन्य नाटो के सहयोगी देशों के साथ लाने की पहल के तहत द्विदलीय समर्थन वाले बिल को मंजूरी दे दी है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कुटनीतिक पहल से अमेरिका और पाकिस्तान के बीच दूरिया बढ़ी है। पहले अमेरिका और पाकिस्तान के बीच कितनी निकटता थी इसी से समझा जा सकता है कि मई, 1965 में प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने जब अमेरिकी राष्ट्रपति जाॅन्सन के निमंत्रण पर वहां की यात्रा का कार्यक्रम बनाया तब उसी समय पाकिस्तान के अयूब खान के दौरे के कार्यक्रम के कारण अमेरिका ने अपना निमंत्रण वापस ले लिया। यही नहीं जब भी कभी प्रतिबंधों की बात आयी तो अमेरिका पाकिस्तान के साथ-साथ भारत को भी किसी प्रकार की अमेरिकी सहायता प्रदान करने पर रोक लगाया। यानी तब अमेरिका के पलड़े पर भारत और पाकिस्तान बराबर थे।

लेकिन आज प्रधानमंत्री मोदी ने पाकिस्तान के असली चेहरे को बेनकाब कर अमेरिका को उससे न सिर्फ दूर किया है बल्कि अमेरिकी संसद के जरिए भारत और अमेरिका के अपरिहार्य संबंधों को भी निरुपित कर दिया है। न्यूक्लियर सप्लाई ग्रुप यानी एनएसजी और एमटीसीआर के मसले पर अमेरिका के समर्थन को इसी दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए। मानकर चलना चाहिए कि बदलते वैश्विक परिदृश्य में पाकिस्तान को पहले जैसा न तो अमेरिका से करोड़ों डाॅलर की आर्थिक मदद मिलने वाला है और न ही कुटनीतिक समर्थन।

मजेदार तथ्य यह भी कि अमेरिका की लाख धौंसपट्टी के बावजूद भी भारत ने रुस के साथ 40 हजार करोड़ रुपए के एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम की खरीद को अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा की जरुरत बताकर स्पष्ट कर दिया कि उसके लिए देश की सुरक्षा सर्वोपरि है। वह किसी के अर्दब में आने वाला नहीं है। यही नहीं भारत ने एस-400 को लेकर काउंटरिंग अमेरिकाज एडवर्सरीज थू्र सैंक्शंस एक्ट यानी काटसा के तहत प्रतिबंधों के सवाल पर अपना नजरिया स्पष्ट करते हुए कह भी चुका है कि भारत का रुस के साथ संबंधों का लंबा इतिहास रहा है जिसकी वह अनदेखी नहीं कर सकता।

मतलब साफ है कि भारत अमेरिका या रुस के दबाव में अपनी विदेश नीति को नए सिरे से परिभाषित करने वाला नहीं है। अभी गत माह पहले ही द्वितीय विश्व युद्ध में जर्मनी पर सोवियत जीत की 75 वीं वर्षगांठ के मौके पर आयोजित रुस की विक्ट्री डे परेड उत्सव में भारतीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने शिरकत किया। उस दरम्यान रुस ने चीन की लाख मनाही के बावजूद भी भारत को एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम देने की प्रतिबद्धता दोहराकर रेखांकित किया कि दोनों देश सदाबहार और भरोसेमंद साथी हैं।

गौर करें तो ऐसा पहली बार हुआ है जब भारत का रुस और अमेरिका दोनों से रिश्ते प्रगाढ़ है। आमतौर पर भारतीय कालखंड में ऐसा दौर कभी नहीं रहा है। प्रधानमंत्री मोदी के कुटनीतिक दांव के आगे पड़ोसी देश चीन भी घुटने के बल है। उसके लाख विरोध के बाावजूद भी भारत मिसाइल टेक्नोलाजी कंट्रोल रिजीम (एमटीसीआर) में शामिल हो गया है। यह उपलब्धि हासिल करने के बाद अब भारत दूसरे देशों को अपनी मिसाइल टेक्नोलाॅजी बेचने को तैयार है और जरुरत पड़ने पर अमेरिका से प्रिडेटर ड्रोन्स को खरीद भी सकेगा।

अच्छी बात यह कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुपरसोनिक मिसाइल तैयार करने वाली कंपनी ब्रह्मोस एयरोस्पेस को उत्पादन बढ़ाने के निर्देश दे दिए हैं। इससे चीन बौखलाया हुआ है। क्योंकि मलेशिया, फिलीपींस और इंडोनेशिया ब्रह्मोस मिसाइल को खरीदने की कतार में हंै। ध्यान देना होगा कि ये वहीं देश हैं जो दक्षिणी चीन सागर में चीन की साम्राज्यवादी नीति से परेशान हैं। भारत-जापान, भारत-जर्मनी, भारत-फ्रांस मजबूत होते रिश्ते और दोनों देशों के बीच असैन्य परमाणु सहयोग, रक्षा उपकरण तकनीक और गोपनीय सैन्य सूचना संरक्षण समेत कई महत्वपूर्ण समझौते से भी चीन परेशान है। भारत और जापान के एक साथ आने से दक्षिणी चीन सागर में चीन के बढ़ते हस्तक्षेप को लगाम लगा है।

दूसरी ओर अमेरिका के साथ लाॅजिस्टिक एक्सचेंज मेमोरेंडम आॅफ एग्रीमेंट सप्लाई एग्रीमेंट (एलईएमओ) ने भी चीन की चिंता बढ़ा दी है। इस समझौते से दोनों देशों के युद्धपोत और फाइटर एयरक्राफ्ट एक दूसरे के सैनिक अड्डों का इस्तेमाल तेल भराने एवं अन्य साजो-सामान की आपूर्ति के लिए कर सकेंगे। इससे चीन खौफजदा है और उसे लग रहा है कि भारत और अमेरिका उसकी घेराबंदी कर रहे हैं।

चीन इसलिए भी असहज है कि चार देशों के राजनीतिक समूह क्वाड (क्वाड्रिलेटरल सेक्युरिटी डायलाॅग) के सदस्य देशों-भारत, अमेरिका, जापान और आस्टेªलिया ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में विस्तारवादी रुख अपना रखे चीन पर नकेल कसना शुरु कर दिया है। मोदी ने साफ संकेत दे दिया है कि चीन को अब अपने हद में रहने की जरुरत है। गौर करें तो प्रधानमंत्री मोदी ने सात वर्ष के कालखंड में एक ऐसा ताकतवर भारत गढ़ा है जो हर चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए तैयार है।

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