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- प्रियंका के तेवर भी...
शकील अख्तर
बहुत सारी बातें कही जाती हैं कि राजनीति अवसर का, इसका उसका खेल है। मगर प्रियंका गांधी ने साबित कर दिया कि जीवन के दूसरे क्षेत्रों की तरह राजनीति भी साहस और प्रतिबद्धता का खेल है। कल तक यूपी में कांग्रेस सबसे कमजोर खिलाड़ी समझी जा रही थी मगर रविवार की रात लखनऊ में पुलिस द्वारा अपनी गाड़ी चारों तरफ से घेर लेने के बाद गाड़ी से उतरकर पैदल ही लखीमपुर खीरी की तरफ चल पड़ने की हिम्मत ने पासा पलट दिया। पैदल चल रही प्रियंका के साथ लोगों की भीड़ बढ़ती जाने के बाद पुलिस को उन्हें दूसरी गाड़ी में बिठा कर रास्ता छोड़ना पड़ा। रास्ते में जगह जगह उनको रोकने की कोशिश की गई। सड़क पर अवरोधक खड़े कर दिए गए। वे सड़क छोड़कर कच्चे रास्तों में उतर गईं।
अंधेरी रात, बारिश और प्रियंका का यह साहस पुलिस के लिए डरावना स्वप्न बन गया। सरकार जाग गई। उन्हें फिर गाड़ी से उतारा गया। लेकिन प्रियंका ने बिना आर्डर, वारंट उनके साथ जाने से इनकार कर दिया। सीतापुर के पास हरगांव में रात को प्रियंका का साहस देखने लायक था। यह संयोग ही था या इतिहास का कोई बड़ा संदेश पता नहीं मगर 44 साल पहले इसी 3 अक्तूबर को साल 1977 में इन्दिरा गांधी को गिरफ्तार किया गया था।
पुलिस उन्हें गिरफ्तार करके हरियाणा ले जा रही थी। इन्दिरा गांधी ने इसका विरोध किया। रास्ते में बड़खल रेल्वे क्रासिंग पर फाटक बंद था। पुलिस के काफिले को रूकना पड़ा। इन्दिरा गांधी जीप से कूदकर सड़क के किनारे बनी पुलिया पर बैठ गईं। उन्होंने आगे जाने से इनकार कर दिया। भारी हंगामा मच गया। उन दिनों न मोबाइल फोन होते थे। न संचार के अन्य साधन। मगर हवा की तरह बात फैल गई कि इन्दिरा गांधी को गिरफ्तार कर लिया गया है।
कांग्रेसी कार्यकर्ताओं की भीड़ बड़खल रेल्वे क्रासिंग पर पहुंच गई। इन्दिरा की हिम्मत से कांग्रेसी कार्यकर्ताओं में नए उत्साह का संचार हो गया। पुलिस को इन्दिरा जी को मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना पड़ा। और अकारण गिरफ्तारी के कारण मजिस्ट्रेट ने उन्हें रिहा कर दिया। देश भर में सोई हुई कांग्रेस फिर जाग गई।
1977 में हार के बाद अधिकांश कांग्रेसी अपने घरों में छुप गए थे। कार्यकर्ता बड़े नेताओं के घर जाते थे। उनसे पूछते थे कि क्या करना है? नेता कहते थे देख रहे हैं! आज की तरह हीं उस समय भी कांग्रेसी नेता अपने सारे विकल्प खुले रख रहे थे। कार्यकर्ताओं में जज्बा था मगर नेता घर से बाहर निकलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे। इन्दिरा की गिरफ्तारी और फिर उनके प्रतिरोध ने सारा मौसम बदल दिया। 1980 में इन्दिरा गांधी ने शानदार वापसी की।
44 साल बाद लगता है इतिहास खुद को दोहरा रहा है। सोए हुए या जी 23 बनाकर बगावत की तान छेड़े कांग्रेसियों में नई हलचल शुरू हो गई है। जी 23 में एक मात्र जनाधार वाले नेता भुपेन्द्र हुड्डा के सांसद बेटे दीपेन्द्र हुड्डा प्रियंका के साथ हैं। रात को जब पुलिस ने दीपेन्द्र के साथ हाथा पाई की कोशिश की तो प्रियंका बिफर गईं। फिर शुरू हो गए। कहकर वे दीपेन्द्र की ढाल बन गईं। उनका वह अंदाज लोगों को इन्दिरा गांधी की याद दिला गया। बड़खल क्रासिंग पर जब फाटक खुलने के बाद पुलिस ने इन्दिरा गांधी को फिर जीप में बिठाने की कोशिश की तो इन्दिरा ने ऐसे ही तेवर दिखाए थे।
नेता और उसके विश्वासपात्र प्रमुख नेता जब हिम्मत दिखाते हैं तो उस पार्टी से जुड़े लोग ही नहीं समान विचारधाराओं के लोग भी साथ आ जुटते हैं। प्रियंका के बाद उत्तर प्रदेश में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भुपेश बघेल ने तहलका मचा दिया। सोमवार को उनका विमान लखनऊ हवाई अड्डे पर नहीं उतरने दिया गया। मगर बघेल नहीं माने। मंगलवार को आम फ्लाइट से लखनऊ पहुंच गए। रहा था। मगर उन्हें हवाई अड्डे से बाहर नहीं निकलने दिया गया।
मुख्यमंत्री वहीं फर्श पर घरने पर बैठ गए। वहीं से उन्होंने प्रेस कान्फ्रेंस संबोधित की। बघेल को प्रियंका ने अभी कुछ दिन पहले ही युपी चुनाव में मदद के लिए वरिष्ठ पर्यवेक्षक नियुक्त करवाया था। युपी चुनाव के महत्व को देखते हुए यह कहा जा रहा था कि वहां प्रियंका की मदद के लिए एक वरिष्ठ और मेहनती नेता को लगाया जाना चाहिए। राहुल और प्रियंका ने बघेल को छांटा। बघेल इससे पहले असम जैसे उलझे हुए राज्य के भी प्रभारी थे। यहां उनके तेवरों ने प्रियंका और राहुल के निर्णय को सही सबित कर दिया। एक मुख्यमंत्री को राज्य में नहीं घुसने देना और फिर हवाई अड्डे से बाहर नहीं निकलने देना युपी में चर्चा का विषय बन गया।
लखीमपुर की भयानक घटना के बाद यूपी का परिदृश्य बदल गया है। सब हिल गए हैं। केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री मिश्रा के बेटे की गाड़ी के दो वीडियो सामने आने के बाद भाजपा के नेताओं में भी अंदर ही अंदर सवाल उठने लगे हैं। इन्हें सांसद और किसी समय हाथ काट दूंगा कहकर संघ परिवार के चहेते बन गए वरुण गांधी ने स्वर दे दिया। प्रधानमंत्री मोदी के लखनऊ आगमन पर किसानों के साथ हमदर्दी और उनके मंत्री पर हमला करके वरुण गांधी ने दूसरे भाजपा नेताओं के मन की बात कह दी।
अभी तक भाजपा समझ रही थी कि वह हिन्दु मुसलमान करके विधानसभा चुनाव निकाल लेगी। मगर किसानों को इस बुरी तरह रौंदे जाने के बाद अब यह स्पष्ट हो गया है कि इस चुनाव में किसान का मुद्दा सबसे उपर रहने वाला है। प्रधानमंत्री लखीमपुर गए नहीं। अगर वे वहां जाकर मृतकों के परिवारों को सांत्वना दे आते तो शायद उनके दुःख कुछ कम हो जाते। मगर प्रधानमंत्री गए नहीं और जो प्रियंका गांधी जाना चाह रही हैं उन्हें बंद करके रखा गया है।
इस चुनाव में अभी तक यह माना जा रहा था कि समाजवादी पार्टी बड़ी प्लेयर है। मगर प्रियंका के इस साहसिक अभियान के बाद भाजपा को तो धक्का लगा ही है सपा भी दबाव में आई है। बाकी कोई नेता तो घर से निकली ही नहीं घर में ही हाउस अरेस्ट हो गए। मगर प्रियंका रातों रात निकलकर पुलिस से लड़ती हुई उन्हें चकमा देती हुई सीतापुर तक पहुंच गईं थीं। राजनीति में संदेश बहुत तेजी से जाते हैं। और जनता उन्हें ग्रहण भी उसी तत्परता से करती है।
जनता को लग गया कि यह प्रियंका किसी और मेटल की बनी हुई है। जो न डरती है, न पीछे हटती है। गिरफ्तार होती है। कमरा देखती है गंदा है तो खुद आम महिलाओं की तरह झाड़ू उठाकर साफ करने लगती हैं। यूपी में सफाई करते हुए प्रियंका का यह वीडियो क्या क्या गुल खिलाएगा पता नहीं। किस किस कि सफाई होगी अभी नहीं कह सकते। मगर यह तय है कि राजनीतिक मुद्दे भी दूसरे बनेंगे और राजनीतिक समीकरण भी। राजनीतिक मुद्दों में अब हिन्दु मुसलमान के बदले किसान, कानून व्यवस्था, कोरोना में हुई मौतें, गांवों में छुट्टा पशुओं की समस्याएं, मंहगाई जैसे वास्तविक सवाल शामिल होंगे। राजनीतिक समीकरण में अखिलेश यादव को अब दोबारा से सोचना पड़ेगा।
अपनी विश्वसनीयता बनाने और बढ़ाने के लिए 2002 में मुलायम सिंह यादव ने एक बड़ा कामयाब प्रयोग किया था। लेफ्ट के साथ गठबंधन का। लेफ्ट के साथ आने से सपा की कई कमियां छुप गईं थी। लेफ्ट उस समय भी यूपी में कोई बड़ी ताकत नहीं था मगर उसका एक रंग था कि ये गरीब समर्थक नीतियां लागू करवाएगा और जातिवाद नहीं चलने देगा। आज वैसी ही जरूरत अखिलेश को है। प्रियंका गांधी के जुझारू तेवरों के रंग की।
जनता किसी लड़ने वाले को ढूंढ रही है। सपा को कांग्रेस, रालोद, लेफ्ट अन्य छोटी पार्टियों का साथ चाहिए। किसानों के मुद्दे पर शिवसेना ने नई पहल की है। विपक्षी एकता की। लखीमपुर के भयानक कांड ने सारे विपक्षी दलों की आंखें खोल दीं। चाहें ममता हों या स्टानिल. शरद यादव या पवार, लालू हो या उद्धव ठाकरे सब अनुभवी नेता हैं। जनते हैं कि यह घटना टर्निंग पाइंट हो सकती है।