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पंजाब चुनाव की समीक्षा ?

सुजीत गुप्ता
20 Jan 2022 10:50 AM IST
पंजाब चुनाव की समीक्षा ?
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पंजाब में भाजपा अपने पूर्व के वरिष्ठ सहयोगी अकाली दल की छाया से बाहर निकल चुकी है। क्योंकि अकाली दल के साथ गठबंधन में भाजपा को केवल हिंदू बहुल या शहरी क्षेत्रों से ही चुनाव लड़ने का अवसर मिलता था और ग्रामीण तथा सिख बहुल क्षेत्रों पर अकाली दल अपना उम्मीदवार उतारता था, इसलिए सिख नेताओं का भाजपा में सदैव अभाव रहा। इस चुनाव में भाजपा हरियाणा के मार्ग पर चलती दिख रही है। 2014 का हरियाणा विधानसभा चुनाव भाजपा को लगभग ही ऐसी ही परिस्थितियों में अपने बलबूते पर लड़ना पड़ा था।

अकाली दल से गठबंधन के कारण 2017 में भाजपा ने 117 सदस्यों वाली विधानसभा में सिर्फ 23 सीटों पर चुनाव लड़ा था। लेकिन अब अकाली दल से उसका गठबंधन टूट गया है, यह भाजपा के लिए एक बड़ा अवसर साबित हो सकता है। भाजपा के पास खोने को मात्र 3 सीटें हैं पर पाने को बहुत कुछ है! शायद सत्ता भी जिसकी ओर वह बढ़ती दिख रही है। आज पंजाब भाजपा का ग्राफ निरंत बढ़ता दिखाई दे रहा है।

कांग्रेस के कई विधायक, पूर्व विधायक, पूर्व सांसद, अकाली दल व अन्य दलों के कई वरिष्ठ नेता भाजपा में शामिल हो चुके हैं। उम्मीद है कि चुनाव आते-आते उसके पास विभिन्न दलों से नाराज सिख और दूसरी जातियों के नेताओं की कतार लग जाएगी। रही बात कार्यकर्ताओं की, पंजाब में भाजपा को कार्यकर्ताओं की कोई कमी नहीं है, ऊपर से नरेंद्र मोदी जैसा लोकप्रिय चेहरा उसके पास है।

पंजाब में भाजपा कैप्टन अमरिंदर सिंह और अकाली नेता सुखदेव ढ़ींढ़सा की पार्टी मिलकर चुनाव लड़ेगी। इस तरह से तीन दल एक साथ मिलकर पंजाब के चुनावी समर में उतरने वाले हैं। कैप्टन अमरिंदर सिंह व सुखदेव सिंह ढींडसा न केवल अनुभवी नेता हैं बल्कि राज्य के प्रसिद्ध सिख नेता हैं। इनकी ग्रामीण इलाकों में अच्छी पैठ है, जिसका लाभ भाजपा गठजोड़ को मिलेगा।

पंजाब में बदलते हुए राजनीतिक हालातों के चलते चुनावी मुकाबला पंचकोणीय होता दिख रहा है। आम आदमी पार्टी में फूट जारी है, कांग्रेस भ्रमित है, अकाली दल (बादल) के पास सशक्त नेतृत्व का अभाव दिख रहा है, तो किसानों ने खुद चुनाव लड़ने की घोषणा करके कई दलों की नींद हराम कर दी है।

कांग्रेस से नाराज हिंदू मतदाताओं की कांग्रेस से नाराजगी अब उसके गले की हड्डी बनती दिख रही है। पंजाब में कुछ महीने पहले हुए कांग्रेस सरकार के नेतृत्व परिवर्तन के दौरान पार्टी के नेताओं के मुख से एक शर्मनाक बात सुनने को मिली कि पंजाब का मुख्यमंत्री हिंदू न हो! इसे हिंदुओं ने अपना अपमान माना है। इस अपमान ने पंजाब के हिंदुओं को लामबंद करने का काम किया है। यह सत्ताधारी दल को महंगा पड़ सकता है।

पंजाब में हिंदू मतदाता दूसरा सबसे बड़ा वर्ग है। राजनीतिक दलों द्वारा चाहे इस वर्ग को कमतर करके देखा जाता रहा है परंतु निष्पक्ष तौर पर अनुमान लगाया जाए तो हिंदू मतदाताओं की संख्या 45 प्रतिशत के आसपास बैठती है। यह मतदाता लगभग हर विधानसभा क्षेत्र को प्रभावित करते हैं और 60 से 70 सीटों पर निर्णायक हैं।

किसान आंदोलन में शामिल 37 किसान संगठनों में से 25 संगठनों ने 'संयुक्त समाज मोर्चा' गठित कर पंजाब के विधानसभा चुनावों के लिए खम ठोक दिया है और किसान नेता बलबीर सिंह राजू वालों को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया है। 25 किसान संगठनों ने गत दिनों 'संयुक्त समाज मोर्चा' बनाकर पांचवा कोण बनने की कोशिश की है। किसानों के मैदान में उतरने से उनके हितैषी कहे जाने वाले अकाली दल (बादल), कांग्रेस तथा आम आदमी पार्टी की राजनीतिक उम्मीदों को झटका लगा है। इससे शिरोमणि अकाली दल-बसपा गठजोड़, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस तीनों को ही ग्रामीण सीटों पर नुकसान होगा।

भाजपा का तो पहले से ही ग्रामीण वर्ग में कोई आधार नहीं है इसलिए उसका ज्यादा नुकसान नहीं होगा। उसका मुख्य वोट बैंक शहरों में ही माना जाता है। अकाली दल बादल के साथ रहते हुए वह अपने हिस्से की 23 शहरी सीटों पर चुनाव लड़ती आई है। स्पष्ट है कि किसानों के मैदान में उतरने से भाजपा को कोई नुकसान होने वाला नहीं है बल्कि भाजपा विरोधी मतों के बंदरबांट से भाजपा को लाभ ही हो सकता है।

पंजाब में पंचकोणीय चुनाव होने से इसका भाजपा को बहुत बड़ा लाभ मिलने जा रहा है। पांचों गठबंधन जमकर लड़ रहे हैं, अतः किसी को भी स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने जा रहा। चुनाव बाद नये सिरे से गठबंधन बनेगा। अकाली दल (बादल) न तो आप पार्टी के साथ जा सकता है और न ही कांग्रेस के साथ। भाजपा के साथ उसका 30 साल से अधिक का साथ रहा है। कृषि कानूनों के कारण यह दोनों अलग हुए थे, अब वह दूरी भी नहीं रही। अतः स्वाभाविक रूप से अकाली दल भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनायेगा।

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