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पंजाब फार्मूला राजस्थान के लिए होगा आत्मघाती, सचिन को दिखाना चाहिए सिद्धू की तरह दमखम
राजनीतिक रूप से अपरिपक्व राहुल गांधी ने पंजाब की तर्ज पर राजस्थान में भी बेवकूफी भरा कोई निर्णय किया तो कांग्रेस की भट्टी बुझकर रह जाएगी । यद्यपि देश में पहले से ही कांग्रेस का जनाजा निकल रहा है । यूपी और पंजाब चुनाव के बाद रही सही भी कांग्रेस सिमटकर रह जाएगी । इसलिए राहुल एन्ड कम्पनी को राजस्थान पर रहम करना चाहिए ।
पंजाब में जो कुछ हुआ, उसकी चिता का धुंआ अभी से उठता दिखाई दे रहा है । चुनाव के बाद कांग्रेसियों को स्यापा मनाना पड़ेगा । राहुल ने कांग्रेस को निपटाने की सुपारी ले रखी है तो नवजोत सिंह सिद्धू ने पंजाब से कांग्रेस को निपटाने का बीड़ा अपने हाथ मे लिया है ।
कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व यह सोचता है कि पंजाब में सबकुछ आसांनी से निपट गया है तो यह उसकी बहुत बड़ी भूल है । अभी तो विज्ञापन चल रहे है । पूरी पिक्चर अभी बाकी है । पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन चुप होकर बैठेंगे, यह मुगालता नही पालना चाहिए । अंदर ही अंदर ही आगे की रणनीति को अंजाम दिया जा रहा है । उधर बीजेपी भी कैप्टन से संपर्क साध रही है ।
यदि कैप्टन बीजेपी में चले गए अथवा कांग्रेस से नाता तोड़ लिया तो आगामी चुनावों में कांग्रेस की लुटिया डूबना सुनिश्चित है । नवजोत का क्या है, वह फिर से बीजेपी में जाकर कांग्रेस के खिलाफ ताली ठोकेंगे । माना जा रहा था कि चुनावो में फिर से 75 से 90 सीट कांग्रेस को आ रही थी । लेकिन राहुल ने भांजी मारकर सीधे आधी से भी कम सीट करदी है । जिसका नेता खुद पार्टी को ध्वस्त करने के लिए बुलडोजर चला रहा हो, उस पार्टी के लिए बीजेपी को सक्रिय होने की आवश्यकता क्यों होगी ?
दरअसल कांग्रेस पार्टी की मृत्यु तो उसी दिन होगई थी, जब पार्टी की कमान "राजकुमार" राहुल गांधी ने संभाली थी । अब इसका अंतिम संस्कार होना बाकी है । यदि राहुल के हाथ मे पार्टी की कमान फिर से आ जाती है तो कांग्रेस की अंतिम संस्कार की क्रिया भी बहुत जल्द पूर्ण हो जाएगी । पंजाब इसका जीता जागता उदाहरण है ।
कमोबेश कांग्रेस का हर नेता राहुल के साथ साथ प्रियंका और सोनिया की चमचागिरी करने में सक्रिय है । पार्टी की असल कमान किसके हाथ मे है, इस बारे में कोई नही जानता । हर कांग्रसी के लिए सोनिया, राहुल के अलावा प्रियंका का नाम लेना भी अनिवार्य है । वरना पत्ता कटते हुए एक मिनट भी नही लगती है । जैसे कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ हुआ । अच्छा है कि राहुल ने विवाह नही किया, वरना ये कांग्रेसी उनकी पत्नी और संतान तक को पार्टी की कमान देने के लिए अनशन पर बैठ जाते ।
राहुल को पार्टी की कमान सौपने की पैरवी करने वालों को इस बात का जवाब तो देना ही होगा कि नेहरू/गांधी परिवार में जन्म लेने के अलावा इस राजकुमार की योग्यता क्या है ? ना इसको सलीके से भाषण देना आता है और न ही यह कुशल वक्ता है । विजन नाम की चीज से यह कोसो दूर है । सामान्य ज्ञान, संसदीय कायदे-कानून से इसका कोई ताल्लुक नही है । सुरजेवाला की बैसाखियों के सहारे कब तक चलते रहेंगे ?
अपनी बचकानी हरकतों के लिये विख्यात राहुल ने संसद में आंख मारकर अपनी और पार्टी की हंसी उड़वाई और मोदी के गले मिलकर राहुल ने अपनी बेवकूफी का परिचय दिया । बोफोर्स और ईवीएम का राग अलापने वाले राहुल की अब बोलती बन्द हो चुकी है । क्या ऐसा अपरिपक्व नेता पार्टी को डूबने से बचा सकता है ?
राहुल ने कसम खाई थी कि जब तक कांग्रेस को पूरी तरह नेस्तनाबूद नही कर दूंगा, तब तक चैन से नही बैठूंगा । आज कमोबेश समूचे देश मे कांग्रेस सिमट चुकी है । छतीसगढ़, राजस्थान और पंजाब में कांग्रेस का ठीकठाक वजूद है । यहां से भी कांग्रेस को निपटने के लिए राहुल सक्रिय है । इसकी शुरुआत पंजाब से हो चुकी है । कुछ दिन बाद राजस्थान में भी कोई मूर्खता दिखाई दे । देश को पूर्णतया कांग्रेसमुक्त करना ही शहजादे का एकमात्र लक्ष्य है ।
राहुल की बचकाना हरकत की वजह से एमपी की कांग्रेस सरकार बीजेपी को हस्तगत होगई । इनके खास सिपहसालार ज्योतिरादित्य सिंधिया और जतिन प्रसाद कांग्रेस का दामन छोड़ चुके है । तीसरे सिपहसालार सचिन पायलट भी मुंह फुलाए बैठे है । जब पंजाब की कलह सुलझाने के लिए पूरा गांधी परिवार कई माह से सक्रिय है तो राजस्थान के प्रति उदासीनता क्यों ?
कांग्रेसियों के पास अभी भी आत्ममंथन का वक्त है । चमचागिरी छोड़कर उन्हें ऐसे व्यक्ति को पार्टी की कमान सौपनी चाहिए जिसमे पार्टी चलाने की क्षमता और योग्यता हो । यदि राहुल के हाथ मे पार्टी की कमान चली गई या गांधी परिवार के पास रहती है तो पार्टी का रसातल में जाना सुनिश्चत है ।
इसलिए कांग्रेसियों को अब जी- हजूरी नही, साहस दिखाना चाहिए । गांधी परिवार से ख़ौफ खाने की वजह से ही पार्टी आज लहूलुहान पड़ी है । कांग्रेस का अंतिम संस्कार हो, उससे पहले ऐसा कोई पुख्ता उपाय करना होगा जिससे यह पुनः जीवित हो सके । सचिन जैसे उत्साही और ऊर्जावान व्यक्ति को पार्टी की कमान सौपनी चाहिए ताकि कांग्रेस पुनर्जीवित हो सके ।
पायलट को भी चाहिए कि गांधी परिवार की चौखट पर आए दिन हाजरी देने से उनकी प्रतिष्ठा धूमिल हो रही है । माना कि वे भीड़ जुटाने में सिद्धहस्त है इसका सकारात्मक उपयोग करना चाहिए । रोज रोज ढोक देने से कुछ हासिल होने वाला नही है । बजाय इसके पार्टी पर कब्जा करने के लिए पुख्ता उपाय करते हुए असंतुष्टों से सम्पर्क साधना चाहिये ।
आज कांग्रेस नेतृत्वविहीन है । निश्चय ही पायलट में नेतृत्व करने और जबरदस्त भीड़ एकत्रित करने की जबरदस्त कूवत है । दूरगामी सोच पार्टी के लिए श्रेयस्कारी कदम होगा । आए दिन दिल्ली दरबार जाने से उनकी समर्थकों के बीच भी प्रतिष्ठा का चीरहरण हो रहा है । ढोक देना उनकी नियति है तो कुछ नही कहना । वरना पायलट को भी नवजोत सिंह सिद्धू की तरह अपना दमखम दिखाना चाहिए । पायलट को यह नही भूलना चाहिए कि उनके साथ मानेसर गए विधायकों का सब्र पूरी तरह जवाब दे चुका है और उनका धीरे धीरे भरोसा टूटता जा रहा है ।