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वीर सावरकर : वो व्यक्ति जो भारत का विभाजन रोक सकते थे? 'वीर सावरकर' पर लिखी किताब का RSS चीफ ने किया विमोचन
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत मंगलवार को स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर पर एक पुस्तक के विमोचन कार्यक्रम में शामिल हुए। उन्होंने कहा कि देश में वर्तमान समय में सावरकर के बारे में सही जानकारी की कमी है। सावरकर के बारे में लिखी गईं तीन किताबों से उनको ठीक से जाना जा सकता है।
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि स्वतंत्रता के बाद से ही विनायक दामोदर सावरकर को बदनाम करने की मुहिम चलाई गई। आज के समय में वास्तव में वीर सावरकर के बारे में सही जानकारी का अभाव है। दरअसल, निशाना कोई व्यक्ति नहीं था बल्कि राष्ट्रवाद था।
उदय माहुरकर और चिरायु पंडित की पुस्तक वीर सावरकर के विमोचन के मौके पर मंगलवार को सरसंघ चालक ने कहा कि सावरकर को तत्कालीन परिस्थिति में लगा था कि हिंदुत्व पर जोर देना आवश्यक है। उन्होंने संघ के विचारक पी परमेश्वरन का जिक्र करते हुए कहा कि वह कहते थे सावरकर को बदनाम करने के बाद अब अगला नंबर स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानंद सरस्वती और योगी अरविंद का है। ये राष्ट्रवाद के पुरोधा थे। सावरकर ने इन्हीं के विचारों से प्रेरणा ग्रहण की थी।
भागवत ने कहा कि सबको जोड़ने से जिनकी दुकान बंद हो जाएगी, उन्हें अच्छा नहीं लगेगा। उन्होंने कहा कि यह हमारी जिम्मेदारी है कि हमारी मातृभूमि एकजुट रहे। संघ प्रमुख ने हिंदुत्व को एकता की ताकत बताते हुए कहा कि योगी अरविंद ने कहा था अंतत: अखंड भारत बनेगा। राम मनोहर लोहिया ने भी अखंड भारत का सपना देखा था।
उन्होंने कहा कि ब्रिटिश हुकूमत जानती थी कि उसे अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए बांटो और राज करों की नीति पर चलना होगा और उन्होंने देश के खजाने को लूटा। सावरकर को यह अनुभव अंडमान के जेल में हुआ। विचारों में मतभेद हो सकते हैं यह स्वाभाविक है, लेकिन इसके बावजूद हम साथ चलते हैं यह हमारी राष्ट्रीयता है।
भागवत ने कहा कि गांधी के विचारों से मतभेद रखते हुए भी सावरकर को गांधी के स्वास्थ्य की चिंता थी। जो यह नहीं समझते उनको बदनाम करने के लिए मुहिम चलाते हैं। गांधी और सावरकर विचारों में एक-दूसरे से एकदम अलग थे, लेकिन दोनों अपनी मातृभूमि के समर्पित सिपाही थे। इस मौके पर रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, केंद्रीय मंत्री जनरल वीके सिंह, जितेंद्र सिंह, पुरुषोत्तम रूपाला, और अर्जुन राम मेघवाल भी मौजूद थे।
संघ प्रमुख ने कहा कि सावरकर का हिंदुत्व, विवेकानंद का हिंदुत्व... ऐसा कहने का फैशन सा हो गया है। हिंदुत्व एक ही है, जो शुरुआत से है और अंत तक वही रहेगा। जो भारत का है वो भारत का ही है और उसकी सुरक्षा और प्रतिष्ठा भारत से ही जुड़ी है। लेकिन, विभाजन के समय पाकिस्तान चले गए मुसलमानों के साथ ऐसा नहीं है।
भागवत ने कहा कि हमारी संस्कृति उदार है जो हमें एक साथ बांधती है, वह है हिंदुत्व। जब लोगों ने यह कहना शुरू किया कि अलग पूजा प्रणाली के कारण उनकी एक अलग पहचान है, तो यह कहना पड़ा कि हिंदू राष्ट्रवाद पूजा प्रणाली के आधार पर लोगों को अलग नहीं करता।
संघ के विजयादशमी महोत्सव पर इस बार भी नहीं होगा कोई मुख्य अतिथि
कोरोना महामारी की वजह से प्रोटोकॉल के कारण संघ पिछले वर्ष की तरह इस बार भी अपने विजयादशमी महोत्सव पर अतिथियों को आमंत्रित नहीं करेगा। कार्यक्रम को सरसंघ चालक मोहन भागवत संबोधित करेंगे। इस बार 500 संघ कार्यकर्ता से अधिक को उपस्थित रहने की इजाजत नहीं दी जाएगी। पिछले वर्ष यह संख्या महज 50 थी।