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- सवाल नहीं सलाम कीजिए...
मेरी एक बहुत ही खूबसूरत महिला मित्र है जो गुजरात रहती है खूबसूरत का मतलब चेहरे से नहीं है विचार ,सोच और समझदारी से है ।वो यही कोई 9 वर्ष पूरानी मेरी दोस्ती है ,पहले घंटो बात होती थी लेकिन जब से उसके ऊपर राजनीति का भूत सवार हुआ है उसके अंदर की वो सारी खूबसूरती जिसका मैं कायल रहता था वो अब दिखाई नहीं देती है फिर भी हमेशा उस पर नजर बनी रहती है लेकिन पहले जैसे घंटो बात नहीं होती है।
कल उसका एक पोस्ट आया जिसमें वो लिखी थी—मैं लिखने के लिए राजनीति पर पूरा ग्रंथ लिख दूँ क्योंकि पिछले बीस साल की राजनीति की पंक्ति - पंक्ति मुझे समझ है । मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री नहीं वर्ल्ड बैंक का स्टाफ थें। उनको मैं नेता ही नहीं मानती। देश का सारा महत्वपूर्ण सम्पत्ति बेचकर मैडम की झोली भर दी।लेकिन मुझे बहस नहीं करना क्योंकि जमीन पर कुछ सकारात्मक करने का सपना अभी भी मुझमें मरा नहीं है । सोशल मीडिया पर दिन भर दरी बिछाकर लेट नहीं सकती कि सबको जवाब दे सकूं।
मेरा मानना है कि राजनीति की समझ आज भी सबसे कठिन विषय है इसी संदर्भ को ध्यान में रखते हुए उसके राजनीति से जुड़े इस पोस्ट पर लंबे अंतराल के बाद एक छोटी सी प्रतिक्रिया लिख डाली, मोदी को भी यही भ्रम है ,इस छोटी सी प्रतिक्रिया पर उसकी प्रतिक्रिया आयी ,आप लोग लगे रहिए । जब तक आप लोग लगे रहेंगे मोदी को वोट की कमी नहीं होगी। जिस दिन सज्जन पत्रकार लोग मोदी के लिए नफ़रत फैलाना छोड़कर , लोग तक सही सूचना पहुँचाना शुरू कर देगे तभी बदलाव हो सकेगा।
जहां तक मैं इसे समझता हूं इसके अंदर साहित्य ,संगीत और स्त्री पुरुष के बीच के रिश्ते को लेकर जो समझ है वह विरले मिलता है इस तरह की समझ रखने वाली महिलाएं हिन्दू मुसलमान और भारत पाकिस्तान को लेकर इस तरह जुनूनी हो गयी है कि इसके अंदर का इंसान मर गया है जो इसकी पहचान थी।
खैर अब संदर्भ पर आते हैं ये वही देश है जहां किसी भी राजनीतिक दल या राजनीतिज्ञों की आलोचनाओं को इस तरह से दिल पर नहीं लेते थे । एक दिन की बात है लाल किला पर कवि सम्मेलन आयोजित था उस वक्त नेहरू देश के प्रधानमंत्री थे और उस कवि सम्मेलन के मुख्य अतिथि नेहरु थे ,नेहरू आये और मंच पर चढ़ने लगे पीछे रामधारी सिंह दिनकर चल रहे थे तभी नेहरू सीढ़ियां चढ़ते हुए उनके पैर लड़खड़ा गए तो दिनकर ने उन्हें संभाला. नेहरू ने उन्हें धन्यवाद कहा तो इस पर दिनकर ने कहा – 'जब जब सत्ता लड़खड़ाती है तो सदैव साहित्य ही उसे संभालती है।
इतनी बड़ी बात वो कह गये लेकिन नेहरु उनके बात को दिल पर नहीं लिए और उन्हें फिर से राज्यसभा भेज दिया। आज कोई ऐसा सोच भी सकता है नेहा सिंह राठौर हाल ही में यूपी में क्या बा एक गीत गायी बवाल मच गया और लोग उसके चरित्र तक पर सवाल खड़े कर दिये इतनी असहिष्णु हो गये हैं हमलोग आलोचना बर्दाश्त नहीं है ।
मतलब सवाल नहीं करना है सवाल किये तो फिर आपकी खैर नहीं है हमारी महिला मित्र सज्जन पत्रकार कह कर जिन पत्रकारों पर कटाक्ष की है वो कौन है रवीश कुमार. पुण्य प्रसून बाजपेयी ,अजीत अंजुम ,अभिसार शर्मा जैसे दर्जनों पत्रकार जो सरकार से सवाल कर रहे थे इस वजह से उन्हें नौकरी से निकलवा दिया गया।जबकि इस तरह के सवाल सरकार से पहले भी ये पत्रकार करते थे।
लेकिन अब देश बदल गया है ,देश की सोच बदल गयी है,समझदारी बदल गयी है सवाल नहीं सलाम कीजिए ,21 सदी के भारत को इसी दिशा में ले जाने कि कोशिश चल रही है लेकिन बड़ा सवाल यह है कि देश सवाल करने वालो से ही बनता है और बढ़ता भी है। इसलिए सवाल करना मत छोड़िए।भले ही आज के इस पोस्ट से गुजरात वाली महिला मित्र नराज ही क्यों ना हो जाये जोखिम उठाते रहना हां इतिहास सवाल करने वालों को ही याद रखता है।
(रंगनाथ के फेसबुक से साभार)