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SCN LIVE DEBATE : किसान आंदोलन के 11 माह पूरे, सरकार खामोश किसान नाराज?
तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली के गाजीपुर, सिंधु और टिकरी बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन को 26 अक्टूबर 2021 को 11 माह पूरे हो गए हैं।
किसान आंदोलन के 10 टर्निंग पॉइंट
24 से 26 नवंबर 2020 के बीच दिल्ली के गाजीपुर, सिंघु, टिकरी और शाहजहांपुर बॉर्डर पर किसानों के जत्थे पहुंच गए और धरने पर बैठ गए।
26 जनवरी 2021 को दिल्ली में ट्रैक्टर परेड निकाली। इस दौरान कई जगह पर हिंसा हुई। लालकिले पर धार्मिक झंडा फहराया गया। हिंसा में दिल्ली में 59 मुकदमे दर्ज किए गए। 158 किसान गिरफ्तार हुए।
28 जनवरी को गाजीपुर बॉर्डर पर भाकियू प्रवक्ता राकेश टिकैत के आंसू निकले जिसके बाद माहौल बदलता चला गया। आंदोलन का केंद्र बिंदु गाजीपुर बॉर्डर हो गया। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिलों में राकेश टिकैत, चौधरी अजीत सिंह, जयंत चौधरी ने तमाम किसान पंचायतें कीं।
29 जनवरी को टिकैत के आंसू निकलने पर मुजफ्फरनगर के जीआईसी ग्राउंड में पंचायत बुलाई गई। इसमें भाकियू समेत कई गैर भाजपाई दल भी शामिल हुए। इस पंचायत से आंदोलन को नई धार मिली।
22 जुलाई से 9 अगस्त तक दिल्ली में जंतर-मंतर पर किसान संसद चली। किसान रोजाना सिंघु बॉर्डर से बसों में आते, जंतर-मंतर पर बैठते और शाम को लौट जाते। मकसद था कि मानसून सत्र में आ रहे सांसद उनकी आवाज बनें।
26-27 अगस्त को सिंघु बॉर्डर पर अखिल भारतीय किसान-मजदूर सम्मेलन हुआ। इसमें सभी किसान संगठनों के अलावा ट्रेड यूनियन, स्टूडेंट लीडर आदि शामिल हुए। आगामी आंदोलनों का मसौदा यहां तैयार हुआ।
28 अगस्त को करनाल में सीएम मनोहर लाल खट्टर का विरोध कर रहे किसानों पर लाठीचार्ज हो गया। इसमें कई दर्जन किसान चोटिल हुए। एक किसान की मौत हो गई। चार दिन तक करनाल में मिनी सचिवालय के बाहर धरना चला।
5 सितंबर को मुजफ्फरनगर में संयुक्त किसान मोर्चा ने महापंचायत की। दावा किया कि इसमें 10 लाख से ज्यादा किसान आए। इस महापंचायत से सरकार के खिलाफ मिशन यूपी और मिशन उत्तराखंड की शुरुआत हुई है।
9 जुलाई को शामली से ट्रैक्टर रैली निकली, जो सिंघु बॉर्डर पहुंची। 24 जुलाई को बिजनौर से ट्रैक्टर रैली शुरू होकर गाजीपुर बॉर्डर पहुंची। इन रैलियों में करीब 10 से ज्यादा जिलों के किसान शामिल हुए।
27 सितंबर को संयुक्त किसान मोर्चा ने कृषि कानूनों के खिलाफ भारत बंद करने का ऐलान किया है। इसे लेकर देशभर में बैठक व पंचायतों का दौर जारी है।
11 दौर की वार्ता ऐसे रही बेनतीजा
14 अक्तूबर 2020 : किसानों की बैठक लेने आए केंद्रीय कृषि सचिव संजय अग्रवाल का बहिष्कार। किसान बोले- हम कृषि मंत्री से बात करने आए थे।
13 नवंबर : कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर व रेलमंत्री पीयूष गोयल ने किसानों संग बैठक की। बैठक बेनतीजा रही।
01 दिसंबर : सरकार ने विशेषज्ञों की कमेटी बनाकर बिल परखने का सुझाव दिया। किसानों ने इसे अस्वीकारा।
03 दिसंबर : सरकार ने भरोसा दिया कि एमएसपी जारी रहेगा, लेकिन किसान तीनों कानूनों को रद्द करने पर अड़े रहे।
05 दिसंबर : किसानों ने सरकार से कहा कि वह कृषि बिल रद्द करने पर अपना जवाब हां या ना में दें।
08 दिसंबर : गृहमंत्री अमित शाह ने किसानों संग बैठक की। सरकार द्वारा भेजे गए 22 पेज के प्रस्ताव को किसानों ने खारिज कर दिया।
30 दिसंबर : बिजली संशोधन अधिनियम-2020 को निरस्त करने और पराली के नाम पर एक करोड़ के जुर्माने का नियम निरस्त करने पर सरकार ने सहमति जताई।
04 जनवरी 2021 : 'ताली दोनों हाथ से बजती है'… कृषि मंत्री के इस बयान के साथ बैठक समाप्त हुई और 8 जनवरी को पुन: चर्चा करने का फैसला हुआ।
08 जनवरी : किसान बिल रद्द करने पर अड़े रहे। कृषि मंत्री ने बिल रद करने के अलावा कोई अन्य सुझाव मांगा।
15 जनवरी : कई घंटे तक सरकार और किसानों की बैठक चली, लेकिन बेनतीजा रही।
20 जनवरी : सरकार ने दो साल तक बिल निलंबित रखने और कानूनों पर विचार करने को संयुक्त समिति बनाने का प्रस्ताव रखा।
22 जनवरी : किसानों ने सरकार के संयुक्त समिति बनाने के प्रस्ताव को खारिज किया।
26 जनवरी : दिल्ली में लालकिले और ट्रैक्टर परेड में हिंसा होने के बाद से केंद्र सरकार ने किसानों से फिर कोई बातचीत नहीं की।
क्यों है विरोध?
20 और 22 सितंबर 2020 को संसद ने कृषि से जुड़े तीन विधेयक पारित किए। 27 सितंबर को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने इन विधेयकों को मंजूरी दी, जिसके बाद ये तीनों कानून बन गए। इन कानूनों के खिलाफ किसान पिछले साल नवंबर से दिल्ली के बॉर्डरों पर धरने पर बैठे हैं। सरकार कह रही है कि हम कानून में संशोधन कर सकते हैं। किसान चाहते हैं कि कानून रद्द हों।
ये हैं तीन कृषि कानून
कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन व सरलीकरण) कानून-2020
कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर कानून-2020
आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून-2020