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- वरिष्ठ पत्रकार राकेश...
वरिष्ठ पत्रकार राकेश पाठक ने साबरमती में आपबीती विस्तार से सुनाई , दो अक्टूबर को पुलिस ने आश्रम से क्यों लिया था हिरासत में!
● डॉ राकेश पाठक
● प्रार्थना सभा में जाने से रोकने को दो बार बेजा हिरासत में
० अकेले गांधीवादी कार्यकर्ता से किस बात का डर?
० खादी के कपड़े भी नहीं पहनने दिए
० आख़िर तक हिरासत की वज़ह नहीं बताई
वर्षों से ख़्वाहिश थी कि महात्मा गांधी की जयंती पर साबरमती के 'सत्याग्रह आश्रम' में प्रार्थना सभा में शामिल होऊं। वहां बैठ कर बापू से बतियाऊं, चरखा चलाऊं। जब सुना कि सरकार आश्रम का स्वरूप बदलने वाली है तो तय किया कि इसी दफ़ा दो अक्टूबर को आश्रम में रहूंगा।
फ़ेसबुक पर लिख चुका था कि दो अक्टूबर को बापू के सानिध्य में रहूंगा।
★ एक अक्टूबर को दिन में ढाई बजे अहमदाबाद पहुंचा। एक मित्र ने आश्रम के सामने ही होटल में कमरा बुक किया था।
उसी शाम होटल के कमरे से 'कर्मभूमि अहमदाबाद' और 'हस्ताक्षर वेब पत्रिका' के ऑनलाइन विमर्श में 'अभय गांधी,निर्भय गांधी' विषय पर विचार व्यक्त किये।
★ तड़के होटल में दबिश देकर ले गई पुलिस
दो अक्टूबर को सुबह 8.30 बजे आश्रम में प्रार्थना सभा में शामिल होना था। तड़के साढ़े छह बजे रूम सर्विस को चाय के लिये कॉल किया। बताया गया कि चाय सात,सवा सात के बाद मिल सकेगी। दस मिनट ही बीते थे कि दरवाजे पर दस्तक हुई। लगा कि वेटर चाय ले आया है। दरवाज़ा खोला तो वेटर था लेकिन उसके हाथ में चाय नहीं थी।
उसके पीछे आये चार पांच हट्टे कट्टे लोग धड़धड़ाते हुए कमरे में दाख़िल हो गए। सब सादा कपड़ों में थे। मुझे चारों तरफ़ से कवर कर लिया। उनमें से एक ने बिस्तर के पास रखे दोनों मोबाइल क़ब्जे में कर लिए। सच कहूं...सेकेंडों में हुई इस कार्यवाही से एक पल के लिये गोरखपुर के मनीष गुप्ता की याद आ गई।
अगले ही पल ख़ुद को संयत किया। पूछा कि आप लोग कौन हैं,क्या चाहते हैं?
टीम लीडर ने बताया कि अहमदाबाद पुलिस। कहने लगे कि आपको हमारे साथ पुलिस स्टेशन चलना पड़ेगा। हमने पूछा वारंट है? कहा कि नहीं है। ऊपर से आदेश है। क्यों लेकर जा रहे हैं इसकी कोई वज़ह नहीं बताई। मैंने बताया कि मैं पत्रकार हूँ, गांधी वादी कार्यकर्ता हूँ। झोले से निकाल कर क़िताब दिखाई।(फातिमा मीर की मोहन से महात्मा) लेकिन वे 'ऊपर' के हुक़्म से बंधे थे।
मैंने एक पल को गांधी को याद किया। याद आया कि 9 अगस्त 1942 को इसी तरह लगभग इसी वक्त पर बापू को गिरफ़्तार करने अंग्रेज पुलिस मुम्बई में उनके ठिकाने पर पहुंची थी।(हा हा हा..☺️) बस बापू को याद करके हौसला बनाये रखा।ज़रा भी नहीं घबराया। तैयार होने का समय मांगा।
★ खादी के कपड़े भी नहीं पहनने दिए...
मैं पांच सात मिनट में नित्य कर्म से निवर्त होकर तैयार होने लगा। पुलिस ने कुर्ता पजामा देख कर रोक दिया। कहा कि आप खादी नहीं पहन सकते। कहने लगे कि ऊपर से आदेश है। मजबूरी में पेंट शर्ट पहन कर चला। एक बार मैंने कहा कि मुझे फोन करने दीजिये लेकिन पुलिस ने मना कर दिया।
होटल की पार्किंग में प्रायवेट गाड़ी में बिठाया तो हमने पूछा कि आप सही में पुलिसवाले हैं या कोई और? तब सबने अपने आईडी दिखाए। उनका व्यवहार सहज ही था। हमने हंस कर कहा कि अब तो आपके चंगुल में हूँ कर भी क्या सकता हूँ? एक बारगी लगा कि कहीं आज अपने राम का 'लोयाकरण' तो नहीं होने वाला?
★थाने में खमण, ढोकला लेकिन वज़ह नहीं बताई..
मुझे राणीप पुलिस स्टेशन ले जाया गया। थाने की इमारत अच्छी खासी है लेकिन मुझे उसके सामने बनी दो कमरों की पुलिस चौकी में ले जाया गया। वहां चाय पानी मिला। बाद में खमण, ढोकला,खाण्डवी भी खिलाया गया। एक सब इंस्पेक्टर एस एस चौधरी, एक ए एस महेंद्र सिंह आई और एक कांस्टेबल संतोष दुनिया जहान की पूछताछ करते रहे। इन सबका व्यवहार बहुत अच्छा था।
आप यहां क्यों आये हैं,क्या करने वाले हैं, और कौन कौन साथ है ? हमें ऊपर से लीड मिली है कि आप आश्रम में कुछ सत्याग्रह करने आये हैं। आदि आदि।मेरी पूरी जन्म पत्री जान ली। मैं लगातार कहता रहा कि मैं सिर्फ़ आश्रम देखने और प्रार्थना सभा के लिये आया हूँ। वे हर घंटे अपने आला अधिकारियों को अपडेट देते रहे।
★ गिरफ़्तारी के लिये अड़ा तब छोड़ा...
घंटों बेवज़ह हिरासत में रखने का मैं लगातार विरोध करता रहा। आख़िर में मैंने कहा कि आप मेरी बाक़ायदा गिरफ़्तारी कीजिये,मजिस्ट्रेट के सामने पेश कीजिये।मुझे जेल भेज दीजिये। मैंने कहा कि मुझे अपने किसी स्थानीय मित्र से सम्पर्क करने दीजिये ताकि मैं वकील का इंतज़ाम कर सकूं।मैं लगातार गिरफ़्तारी की रट लगाए रहा। मेरे इस सत्याग्रह का असर हुआ।
आला अफ़सरों को बताया गया तब दोपहर 12 बजे के बाद मुझे छोड़ने का आदेश आया। पुलिस टीम ख़ुद अपने साथ होटल के कमरे के अंदर तक छोड़ने आई। अब मेरे मोबाइल भी वापस किये। सबने असुविधा के लिये सॉरी बोला और चले गए।
★आश्रम के भीतर से दुबारा हिरासत में...
इसके बाद मैं पैदल ही सत्याग्रह आश्रम पहुंचा। वहाँ बापू की कुटिया 'हृदय-निवास' पहुंचा ही था कि सादी वर्दी में कुछ जवानों ने घेर लिया। कहा कि पीएसआई(थाना प्रभारी) साहब बुला रहे हैं।सड़क पर आते ही फिर मुझे गाड़ी में बिठा दिया गया। जब तक पुलिस मेरे मोबाइल ज़ब्त कर पाती तब तक मैंने अहमदाबाद में मित्र और वरिष्ठ पत्रकार डॉ धीमन्त पुरोहित को कॉल करके बता दिया कि पुलिस मुझे दुबारा हिरासत में लेकर थाना राणिप ले जा रही है।
इसी एक पल में फ़ेसबुक पर अपनी हिरासत की सूचना पोस्ट कर दी। पोस्ट देख कर अगले एक मिनट में वरिष्ठ पत्रकार भाई पंकज चतुर्वेदी Pankaj Chaturvedi का कॉल आ गया। जल्दी से उन्हें पूरी बात बताई। उन्होंने बातचीत रिकॉर्ड करके फ़ेसबुक,ट्विटर पर पोस्ट की। उसके बाद पुलिस ने मेरे मोबाइल ले लिए।
(अगर ये एक मौका नहीं मिला होता तो मैं किसी भी तरह किसी को अपने बारे में सूचित नहीं कर पाता।)
सोशल मीडिया पर मेरी सूचना के बाद देश भर से मित्रों, शुभ चिंतकों ने मेरे हक़ में आवाज़ बुलंद की।
थाने लाकर दुबारा फिर उसी कमरे में बिठा दिया गया।
फिर वही राग अलापा गया कि 'ऊपर' से आदेश है। फ़ेसबुक से सूचना मिलने पर अहमदाबाद के फ़ेसबुक मित्र विकास सूद विकास सूद , नीलिमा शाह ,नरेंद्र पांडे थाने में आ गए।भिंड के मेरे मित्र नाथूराम शर्मा भी आ गए। पुलिस ने किसी को फोटो तक लेने नहीं दिया।
उसके बाद मुझे असिस्टेंट पुलिस कमिश्नर परमार (IPS)के कक्ष में ले जाया गया।
उनसे भी लंबी बातचीत हुई। मैं लगातार यही पूछता रहा कि मुझे बार बार हिरासत में क्यों लिया जा रहा है? वे साबरमती आश्रम के प्रस्तावित काया कल्प के बारे में विस्तार से बताते रहे। वहां डॉ धीमन्त पुरोहित Dhimant Purohit भी आ गए। वे लगातार गुजरात के गृह मंत्री और आला अफ़सरों के सम्पर्क में थे।
उधर भोपाल से साथी स्वदेश शर्मा Swadesh Sharma ने सांसद शक्तिसिंह गोहिल को मेरी बेजा हिरासत के बारे में बताया। वे भी सक्रिय हुये। आला अफसरों से बात की।
लुब्बो लुबाब यह समझ आया कि साबरमती आश्रम को बचाने के लिए मैंने जो पोस्ट लिखी थी और पीएम,पीएमओ को जो चिठ्ठी लिखी थी शायद उसके बाद से ही मेरे ऊपर नज़र रखी जा रही थी। इंटेलिजेंस एजेंसियों को आशंका थी कि मैं अकेला आदमी आश्रम में कोई सत्याग्रह करने वाला हूँ।
फिर भी कोई संतोष जनक कारण अंततः नहीं बताया गया। एसीपी ने असुविधा के लिये खेद जताया और रिहा करने का आदेश दिया। दूसरी बार हिरासत से छुटने के बाद मैं पुनः आश्रम गया। बापू को नमन किया। मुझे संतोष है कि पूरे प्रकरण में मैं एक पल के लिये भी बापू के सिद्धान्तों से विचलित नहीं हुआ।
■ आप सबका आभार:
देश भर के मित्रों और शुभ चिंतकों ने जिस तरह मेरी फ़िक्र की। मेरे लिये आवाज़ उठाई उससे अभिभूत हूँ। मुझ जैसे साधारण पत्रकार और गांधीवादी कार्यकर्ता पर आपका यह कर्ज़ हमेशा बना रहेगा। नत मस्तक हूँ।🙏🙏🙏
चित्र: 3 अक्टूबर को फिर आश्रम पहुंचा। बापू को प्रणाम किया।