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Sex Story: सेक्स को एक्सरसाइज़ कहने वाली औरतें क्यों एक माँ नहीं बन पाती हैं
कल की ही बात का विस्तार और फिर यह अध्याय सदा के लिए समाप्त, क्योंकि मेरे लिए माँ बनना मात्र स्वयं की सम्पूर्णता के लिए आवश्यक था. सम्पूर्णता की चाह लिए मातृत्व होगा तो वह आपके जीवन में विस्तार करेगा. वह विस्तार अद्भुत होगा, वह विस्तार इसलिए अद्भुत होगा क्योंकि जो आपके बगल में लेटा हुआ है, वह आपके प्रेम का परिणाम है. आपकी देह और आत्मा के समर्पण से प्राप्त आपका अंश है, आपका अस्तित्व है. वह कोई और है ही नहीं!
प्रेम और विवाह कभी कभी विपरीत हो जाते हैं. न,न, यह न सोचिये कि मैं विवाह के विरुद्ध हूँ. हमारे तो धर्म का आधार ही विवाह है. हमारे सभी देव विवाहित हैं, एवं लगभग सभी का प्रेम विवाह है, तो मैं विवाह के विरुद्ध कभी नहीं!
मैं शर्तों और पर्चियों के आधार पर तय होने वाले विवाह के विरुद्ध हूँ. सत्यवती ने प्रेम किया ऋषि पाराशर से तथा इस निश्छल सम्भोग (क्योंकि ऋषि पाराशर और सत्यवती आत्मा के साथ देह को जोड़ते हुए एकाकार हुए थे, एक हुए थे) से जो संतान उत्पन्न हुई. वह दिव्य थी. सत्यवती तो उसे छोड़कर चली आई थीं, एवं पिता ने उन्हें शिक्षा प्रदान की. माता के बिना ही वह इतने विद्वान हुए कि उन्हें भगवान वेदव्यास कहा जाता है.
परन्तु उनके हृदय में अपनी माँ के प्रति कटुता नहीं थी, उन्होंने अपनी माँ को ताना नहीं मारा कि "मेरे अकेले पिता ने मेरा पालन पोषण किया, मैं आपका आदर क्यों करूं?"
ऐसा इसलिए नहीं हुआ क्योंकि जो ऋषि पाराशर एवं सत्यवती के मध्य सम्बन्ध थे, वह उपभोग के नहीं थे, हाँ, सत्यवती कहती हैं कि उन्होंने अपनी देह से मत्स्यगंध से मुक्ति पाने के वचन पर ऋषि के साथ सम्बन्ध बनाने के लिए स्वीकृति भरी थी. परन्तु ऋषि? ऋषि के लिए तो जैसे स्वयं को प्राप्त करने के लिए थे. वह आत्मिक विकास के लिए थे. तभी ऋषि निर्मल थे. ऋषि ने स्वयं को जिया था, सम्भोग आपको सम्पूर्ण होना सिखाता है. जब आप सम्पूर्ण होकर संतान उत्पन्न करती हैं तो न ही एकल पिता होता और न ही एकल माँ! दोनों अकेले अकेले होकर पूर्ण होते हैं. तभी शिशु को वह शिक्षा (एजुकेशन नहीं) दे पाते हैं. शिशु को एकल पिता . इतना योग्य बना देता है कि वह विश्व के इस सबसे महाविनाशक युद्ध की कथा को आने वाली पीढ़ी के लिए सौंप जाते हैं, एवं वह भी संस्कृत में!
यह जो पूर्णता का अनुभव है, स्वयं को सम्पूर्ण न कर पाने का पछतावा, यह आपके उस रोने से झलकता है कि "बच्चों का पालनपोषण बहुत महंगा हो गया है."
जबकि लाइफ स्किल्स में कथित महंगे बच्चे जानवरों से भी गए गुजरे होते हैं. उनमें बेसिक लाइफ स्किल्स नहीं होती हैं.
जब पिता ने आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए किसी और का अधिकार छीनते हुए सत्यवती का विवाह शांतनु से किया, तो संतान इसीलिए निर्वीर्य हुईं क्योंकि वह सम्बन्ध कभी निर्बाध एवं दोषमुक्त नहीं हो पाए. अंतस में कहीं न कहीं देवव्रत के साथ किया गया अन्याय कचोटता होगा और संताने कैसी हुईं हम सभी महाभारत में देखते हैं. हमारे समस्त प्रश्नों के उत्तर उस ग्रन्थ में है, जिसे हमें घर में रखने से मना किया जाता है.
महर्षि वेदव्यास के सम्मुख नियोग के लिए जब विचित्रवीर्य की रानियों को लाया गया तो एक ने आँखें मूँद लीं, एक ने आँखें खोलीं परन्तु घबरा गईं, तो उनकी संतान कैसी हुई?
और जब सम्भोग अर्थात स्वयं के अस्तित्व को समर्पित करने के उद्देश्य से सम्बन्ध बने तो उनसे विदुर जैसे व्यक्ति का जन्म हुआ, जो इन दोनों राजपुत्रों से कहीं समझदार थे, मर्मज्ञ थे. यही उदाहरण आपके सम्मुख सम्बन्धों के विज्ञान को स्पष्ट कर देता है. विदुर की माँ अपने सम्बन्धों के प्रति लज्जित या घबराई हुई नहीं थीं, बल्कि वह तो सर्वोच्च समर्पण एवं ऋषि के माध्यम से स्वयं को पाने के लिए गयी थीं.
अपने जीवन के पुरुष के साथ आप जिस भाव के साथ सम्बन्धों में प्रवेश करेंगी आपकी सन्तान उसी की प्रतिकृति होगी. जैसे जो व्यक्ति शराब पीकर अपनी पत्नी को मारता पीटता है और वह भय के क्षणों को स्वयं में समाकर सन्तान को जन्म देगी तो वह उसी भय और घृणा की प्रतिकृति होगी, जिससे वह हर क्षण प्रतिशोध लेगी.
तो सिंगल मदर की परेशानियां इसी घृणा और प्रतिशोध का ही दूसरा नाम है. क्योंकि आपने अपने जीवन के पुरुष से प्यार नहीं किया, सम्भोग नहीं किया और उसका प्रतिशोध अपने उस बच्चे से निकाल रही हैं. नहीं तो यदि उस सम्बन्ध ने आपको एक क्षण के लिए भी संतुष्ट किया होता तो आज आप सिंगल मदर का रोना नहीं रोएंगी. आप चूंकि अपने हृदय में उस पुरुष, उस क्षण से घृणा करती हैं, इसलिए आप अपनी सन्तान को बार बार सिंगल मदर का ताना देती हैं. तभी शराबी पिता से उत्पन्न बच्चे अपनी माँ की घृणा का भी शिकार होते हैं. स्त्री अपनी देह पर पड़े हुए दागों को भूल नहीं पाती है, और जब आप दाग नहीं भुला पाती हैं, तो वह दाग अपने बच्चों को हस्तांतरित करती रहती हैं. यदि ऐसे संबंधों से गर्भ ठहर गया भी है तो भगवान के लिए उसे हटा दीजिए, बिना किसी अपराधबोध के, क्योंकि आप उस सन्तान से प्रेम नहीं कर पाएंगी. उसे हमेशा सिंगल मदर का ताना देती रहेंगी.
जबाला ने कभी सिंगल मदर होने का रोना नहीं रोया, जबकि वह तो हर अर्थ में एकल थीं, परन्तु वह पूर्ण थीं आत्मा से! जो सम्बन्ध बनाए, जिसके साथ बनाए अपराधमुक्त होकर बनाए तभी अपने पुत्र से कहा कि जो भी पूछे कहना जबाला पुत्र हूँ. तभी सत्यकाम गुरु के सम्मुख सम्पूर्ण समर्पण के साथ समर्पित हो सके, अपनी माँ एवं अपने पिता के प्रति कटुता से मुक्त रह सके. जब आप अपनी सम्पूर्णता के प्रति समर्पित होते हैं, तो आपके हृदय में यह भाव आ ही नहीं सकते कि मैं सिंगल मदर हूँ, या सिंगल फादर हूँ!
मैं सम्पूर्ण हूँ, जिस दिन यह भाव आपके हृदय में आएगा, आपके हृदय से समस्त शिकायतें, दुविधाएं एवं शंकाएं हट जाएँगी. परन्तु इसके लिए आपको विश्वास करना होगा कि आपका इतिहास किसी हड़प्पा से आरम्भ न होकर आदि शक्ति-शिव के साथ जुड़ा है. आपका इतिहास राम-सीता का इतिहास है और आपका इतिहास रुक्मिणी-कृष्ण का इतिहास है. जब आपका हृदय इसे आत्मसात कर लेगा, और प्रेम और देह की सम्पूर्णता को प्राप्त कर लेगा, सारे रोने समाप्त हो जाएंगे.
और अंतिम बात, जीवन में चाहे एक ही बार ऐसा पुरुष आए जो आपकी आत्मा तक को सम्पूर्ण करे, यदि आपने ऐसे पुरुष को एक बार भी जी लिया तो विश्वास मानिए, आपके जीवन की समस्त कटुताएं समाप्त हो जाएँगी, आप निर्मल हो जाएँगी. जैसे योग "एक्सरसाइज" नहीं हैं, वैसे ही सेक्स "एक्सरसाइज" नहीं हैं. इसे समझना ही होगा, यह दोनों पवित्र हैं. इन्हें जिस भाव के साथ आप करेंगी उसी भाव का परिणाम पाएंगी. जितना अंतर भगवान को अर्पित की गयी थाली में और पच्चीस रूपए के बर्गर में होता है, उतना ही अंतर सम्पूर्ण भाव से समर्पण और उपभोग में होता है.
सिंगल मदर का रोना केवल और केवल आपकी अधूरी यौनेच्छा का प्रतिकथन है, एवं साथ ही बार बार बच्चों की महंगाई का रोना भी आपकी अधूरी यौनेच्छा का ही परिणाम हैं. आप अपने हृदय पर हाथ रखकर देखिएगा और प्रश्न कीजिएगा कि कितने लोगों के बच्चे सम्पूर्णता का परिणाम है? दोनों ही ओर से? और कितनी बार आपने बच्चों की महंगाई का रोना नहीं रोया है? ठहर कर पूछियेगा अवश्य!
ॐ नम: परम शिवाय