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शरद यादव की पार्टी एलजेडी का 20 मार्च को जानें कौन सी पार्टी में होगा विलय
बिहार की राजनीति में एक और बदलाव दिख सकता है। पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव (Ex Union Minister Sharad Yadav) की पार्टी लोकतांत्रिक जनता दल (LJD) का विलय राष्ट्रीय जनता दल (RJD) में होगा। यह जानकारी बुधवार शरद यादव ने खुद पत्र जारी कर दी है।
उन्होंने बताया है कि दिल्ली स्थित उनके सात तुगलक रोड आवास पर 20 मार्च को इसके लिए कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा। उन्होंने कहा है कि देश की मौजूदा राजनीतिक स्थिति को देखते हुए बिखरे हुए जनता परिवार को साथ लाने के लिए ऐसा करना जरूरी हो गया है।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जद (यू) से अलग होने के बाद अपनी अलग शुरुआत के बाद से कभी भी शरद यादव की पार्टी अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं करा सकी। तीन दशकों से अधिक समय के बाद वह अब दोबारा लालू प्रसाद के साथ आ रहे हैं और यह ऐसे वक्त पर हो रहा है जब दोनों नेता अपने राजनीतिक करियर के अंतिम छोर पर दिख रहे हैं।
राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने 1997 में जनता दल छोड़ दिया था और इसके नेतृत्व के साथ अपने मतभेदों के कारण अपनी पार्टी बनाई थी क्योंकि चारा घोटाले के खिलाफ जांच में तेजी आई थी, जिसमें वह मुख्य आरोपी थे। शरद यादव को तब जनता दल के भीतर उनके प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखा गया था और बाद में वह नीतीश कुमार के साथ 2005 में बिहार में राजद के 15 साल के शासन को समाप्त करने के अभियान में शामिल हो गए थे।
शरद यादव (74) ने एक बयान में कहा कि यह कदम (विलय) देश में मौजूदा राजनीतिक स्थिति को देखते हुए बिखरे हुआ जनता परिवार को एक साथ लाने के लिए मेरे नियमित प्रयासों की एक पहल है। उन्होंने दावा किया कि भाजपा सरकार विफल रही है और लोग एक मजबूत विपक्ष की तलाश कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि 1989 में अकेले जनता दल के पास लोकसभा में 143 सीटें थीं। सामाजिक न्याय के एजेंडे ने इन वर्षों में पार्टी के विघटन के साथ अपनी गति खो दी है और इसे पुनर्जीवित करने की जरूरत है। शरद यादव की बेटी ने बिहार में 2020 का विधानसभा चुनाव राजद के टिकट पर लड़ा था, लेकिन हार गईं।
लालू के साथ लड़ी वंचितों की लड़ाई
यादव ने अपने बयान में यह भी कहा है कि लालू प्रसाद और उन्होंने अपनी राजनीतिक यात्रा के दौरान वंचितों के जो लड़ाई लड़ी उसके फल खाने की गति बहुत धीमी हो गई है। यूं कहें जनता दल परिवार बिखरने के बाद न केवल वंचित समाज को दुख सहने पड़े बल्कि समाज का हर वर्ग इस समय दुखी और परेशान है। अगर देश में वर्तमान शासन की बात करें तो उनकी पार्टी का उदय धीरे-धीरे और लगातार इस तथ्य के मद्देनजर भी देखा जाता है कि जनता परिवार लगातार बिखरा हुआ है। इसलिए लोगों की उस तरह की सेवा नहीं कर सका, जैसी एकजुट होकर कर सकता था। सभी मोर्चे पर विफलता के बावजूद वर्तमान शासन की चार राज्यों में जीत हुई है। एक और पार्टी उभरी है जिसने तत्कालीन जनता दल और कांग्रेस का वोट शेयर हथिया लिया है। लेकिन भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में मजबूत सरकार के साथ मजबूत विपक्ष का होना भी जरूरी है। आज जनता भले खुश नहीं है लेकिन उनके पास विकल्प भी नहीं है। क्योंकि हम सब बिखरे हुए हैं। इसका फायदा सत्ताधारी दल को हो रहा है।