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उपन्यास के क्षेत्र में शारिक रब्बानी - प्रत्यक्ष मिश्रा
उपन्यास गद्य लेखन की एक विधा है। हिन्दी और उर्दू भाषा में प्रेमचंद, अमृत लाल नागर, उपेंद्र नाथ अश्क, हजारी प्रसाद द्बिवेदी, मिर्जा हादी रूसवा, इस्मत चुगताईं, कृष्ण चन्द्र, सज्जाद जहीर आदि अनेक लेखकों ने उपन्यास की रचना की है।
वर्तमान समय में भारत और नेपाल दोनो देशों में लोकप्रिय वरिष्ठ उर्दू साहित्यकार शारिक रब्बानी लिखित उपन्यास गरदिशे-ए-अय्याम एक चर्चित उपन्यास है, शारिक लिखित गरदिशे-ए-अय्याम उपन्यास का मराठी भाषा मेें अनुवादित संंस्करण, जिसे महाराष्ट्र की वरिष्ठ लेखिका सय्यदा नौशाद बेगम ने भाषातंरित किया है, मराठी संस्करण के रूप में "चक्रव्यूह" के रूप में प्रकाशित हुआ है।
यह उपन्यास काव्या पब्लिकेशन देहली व भोपाल ने प्रकाशित किया है। गरदिशे-ए-अय्याम का हिन्दी भाषा में अनुवादित संस्करण "कालचक्र" के नाम से लखनऊ के वरिष्ठ साहित्यकार डाॅ सईद अहमद सन्देलवी ने भाषातंरित किया है। साथ ही
इस उपन्यास में लेखक ने राजाओं, नवाबों, जागीरदारों की अय्याशियो और बदकारियो सहित तमाम गतिविधियों का उल्लेख किया है। जिन्हें उनके दरबारियों, मुसाहिबीन, व जी हुजूरियो ने अपने निजी लाभ के लिए नित-नए शौक में उलझा रखा था।
...ताश-शतरंज, कबूतर बाजी, तीतर बाजी, पतंग बाजी से लेकर शराब व नग्मा बाजारे हुस्न तक ही महदूद नहीं था बल्कि बहुत से राजा व नवाब अन्य देशों मे जाकर भी दौलत बरबाद करते थे और अय्याशियो के अड्डे उनके दम से जिँदा थे । फिर इनके हाशिया बरदार इनकी तारीफों के पुल बाँधकर इनको तबाही के कगार में ढ़केल कर अपना उल्लू सीधा करते थे। और राजशाही व नवाबी समाप्त होने पर कल के ये नवाब मुफलिस और बदहाल होकर बेईमानी और फरेबकारी करने लगे लेकिन जिन्होंने बदले हुए हालात में खुद को बदल लिया और शिक्षा ग्रहण करके नौकरी या कोई व्यापार आदि कर लिया और मेहनत करने से नहीं भागे वह खुशहाल रहे।