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रिज़र्व बैंक की स्वायत्ता को कैसे खोखला किया गया, इसकी कहानी है सोमेश झा की रिपोर्ट में

Shiv Kumar Mishra
4 April 2022 2:05 PM IST
रिज़र्व बैंक की स्वायत्ता को कैसे खोखला किया गया, इसकी कहानी है सोमेश झा की रिपोर्ट में
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सोमेश झा की तीन कड़ियों में रिपोर्ट आने वाली है। पहली रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे 2014 में सरकार में आते ही मोदी सरकार ने रिज़र्व बैंक के फ़ैसलों में दखल देना शुरू कर दिया था। शुरू में रिज़र्व बैंक के दो गवर्नरों ने इसका विरोध किया लेकिन अंत में दोनों इस्तीफ़ा देकर पीछे हट गए। हमने इसका हिन्दी में पूरा तो नहीं लेकिन बहुत कुछ अनुवाद कर दिया है। बेहतर है आप अंग्रेज़ी में ही पढ़ें।

भारतीय रिज़र्व बैंक एक स्वायत्त संस्था है। इसे स्वायत्त इसलिए बनाया गया है ताकि सरकार अपने राजनीतिक हित साधने के लिए दखल न दे। कुछ लोगों के हित के लिए आम जनता के हितों की बलि न चढ़ाई जाए। द रिपोर्ट्स कलेक्टिव TRC के सदस्य सोमेश झा ने अपनी खोजी रिपोर्ट में दिखाया है कि कैसे 2014 के बाद से रिज़र्व बैंक पर सरकार का दबाव बढ़ने लगा था। सरकार चाहती थी कि रिज़र्व बैंक ब्याज दर घटाए, रिज़र्व बैंक तैयार नहीं था। तब सरकार ने रिज़र्व बैंक पर आरोप लगाया है कि विदेशी हितों को ध्यान में रखते हुए ब्याज दर में कमी नहीं की जा रही है और इसकी जांच होनी चाहिए। तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली का कहना था कि रिज़र्व बैंक ब्याज दर कम नहीं कर रहा है, उसके लिए प्राथमिकता है कि दाम न बढ़े। ब्याज दर कम करने से बिजनेस वर्ग को लाभ होगा, कर्ज़ सस्ता मिलता। लेकिन बाज़ार में पैसे का चलन बढ़ता और महंगाई बढ़ने लगती। महंगाई बढ़ने से जनता के हाथ में जो पैसे हैं वो गायब होने लगते, जैसा कि अभी भी हो रहा है।

द रिपोटर्स कलेक्टिव ने सूचना के अधिकार के तहत कई जानकारियां हासिल की हैं और उन कागज़ों को अपनी रिपोर्ट में दिखाया भी है। जिनके अध्ययन से पता चलता है कि सरकार किस तरह से रिज़र्व बैंक के कामकाज में हस्तक्षेप कर रही थी। 2015 में रघुराम राजन ने ब्याज दर में कटौती नहीं की थी। सरकार का बहुत दबाव था कि कर्ज़ सस्ता हो। बात यहां तक पहुंच गई थी कि वित्त सचिव ने फाइल पर ही लिख दिया कि रिज़र्व बैंक विकसित देशों की मदद कर रहा है। रघुराम राजन के बाद उर्जित पटेल को गर्वनर बनाया गया। उर्जित पटेल ने भी दबाव को रोकने की कोशिश की। बल्कि उन्होंने यहां तक लिख दिया कि सरकार को रिज़र्व बैंक को प्रभावित करने का काम छोड़ देना चाहिए। ताकि संसद और जनता की निगाह में नई मौद्रिक ढांचे की विश्वसनीयता बनी रही। अन्यथा सरकार रिज़र्व बैंक की स्वायत्तता का उल्लंघन कर कानून की भावना का ही अनादर करेगी। लेकिन असहमतियां इतनी बढ़ गईं कि निजी कारणों का हवाला देते हुए उर्जित पटेल ने 10 दिसंबर 2018 को इस्तीफा दे दिया। शक्तिकांत दास को गर्वनर बनाया गया।

कर्ज़ सस्ता करने से अल्पावधि में फायदा तो होता है लेकिन महंगाई इतनी बढ़ जाती है कि जनता की जेब ख़ाली हो जाती है। लोग और ग़रीब हो जाते हैं। अमीरों से ज्यादा गरीब लोगों को तरह तरह के टैक्स देने पड़ते हैं। रिज़र्व बैंक को स्वायत्त इसलिए रखा जाता है क्योंकि नेताओं में क्षमता से ज्यादा पैसा हासिल करने और खुल कर खर्च करने की आदत होती है। इसके लिए वे तरह तरह के प्रोजेक्ट बनाने लग जाते हैं। इस नीति का दूरगामी असर अच्छा नहीं माना जाता है। ब्याज दर को लेकर सरकार और केंद्रीय बैंक के बीच खींचतान चलती रहती है। 2014 में जब मोदी सरकार सत्ता में आई तब महंगाई बहुत अधिक थी।

नए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने घोषणा की कि महंगाई पर लगाम रखने के लिए सरकार एक मौद्रिक व्यवस्था बनाएगी। इसके पहले रिज़र्व बैंक यह काम अकेले करता था। वही ब्याज दर तय करता था। रिज़र्व बैंक के रघुराम राजन और मोद्रिक पोलिसी फ्रेमवर्क के बीच बकायदा लिखित समझौता हुआ कि महंगाई को घटाकर 6 प्रतिशत पर लाया जाएगा और इसे 2 से 6 प्रतिशत के बीच रखा जाएगा। अगर रिज़र्व बैंक ऐसा नहीं कर सकेगा तो सरकार को जवाब देने होंगे।

2014 में रघुराम राजन ने रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया। रेपो रेट को मतलब हुआ कि रिज़र्व बैंक तमाम बैंकों को क़र्ज़ देने के लिए नगद की सीमा में वृद्दि करता है कि इतना और पैसा है उनके पास, लोने देने के लिए। 2015 में रेपो-रेट को 8 प्रतिशत से घटा कर 7.25 प्रतिशत किया गया लेकिन उसके बाद बदलाव नहीं हुआ।

मोदी सरकार इससे संतुष्ट नहीं थी। अरुण जेटली और मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यण सार्वजनिक रूप से रिज़र्व बैंक की आलोचना करने लगे। 6 अगस्त 2015 को वित्त सचिव मेहरिषी ने फाइल पर लिखा कि रिज़र्व बैंक को रेपो-रेट को घटाकर 5.75 प्रतिशत पर लाना चाहिए। मेहरिषी ने तब रिज़र्व बैंक पर ही आरोप लगा दिया कि अमीर विदेशी बिजनेसमैन की मदद के लिए रेपो-रेट कम नहीं हो रहा है। भारतीय बिजनेसमैन और नागरिकों की उपेक्षा की जा रही है। अधिक ब्याज दर का लाभ केवल विकसित देशों के लोगों को मिल रहा है। हमने यूरोप, अमरीका और जापान के अमीरों को सब्सिडी दी है।

भारत की तुलना में विकसित देशों में ब्याज दर कम रखी जाती है। इस कारण विदेशी निवेशों में यह लालसा रहती है कि कुछ समय के लिए अपना पैसा भारतीय वित्तीय सिस्टम में लगा कर रखें और अधिक ब्याज दर से पैसा भी कमाते रहें। जब मेहरिषी ने यह सब लिखा तब वित्त मंत्री ने फाइल पर लिखा कि इस मुद्दे पर चर्चा होनी चाहिए। मौद्रिक नीति समिति(MPC) का गठन सितंबर 2016 में होता है तब तक राजन शिकागो यूनिवर्सिटी जा चुके थे । उनकी जगह उर्जित पटेल को गवर्नर बनाया जाता है। उसके कुछ महीने बाद नोटबंदी होती है। रिज़र्व बैंक पर आरोप लगता है कि सरकार के मूर्खता भरे इस आर्थिक कदम को रिज़र्व बैंक ने उठाने से नहीं रोका। राजन ने बाद में कहा था कि सरकार ने उनके कार्यकाल में नोटबंदी को लेकर चर्चा की थी मगर कोई राय नहीं मांगी गई थी। वित्त मंत्रालय का दबाव चलता रहा कि ब्याज दर तय करने में उसकी हां ज्यादा हो लेकिन पटेल इस दबाव को टालते रहे।

मौद्रिक नीति समिति का नियम है कि सरकार अपनी हार बात लिखित रुप में रखेगी और इसके सदस्यों को प्रभावित करने का प्रयास नहीं करेगी। लेकिन मई 2017 में वित्त मंत्रालय की तरफ से मौद्रिक नीति समिति के सदस्यों को चिट्ठी भेजी जाती है कि एक सिस्टम बनना चाहिए ताकि सरकार इसके सदस्यों से चर्चा करे और उनके सामने आर्थिक विकास और मुद्रा स्फीति को लेकर अपने नज़रिए को रख सके। इसके सदस्यों को मीटिंग के लिए बुलाया जाता है जबकि ऐसा नहीं किया जाना चाहिए था। लेकिन तीन दिन बाद वित्त मंत्रालय की तरफ से फाइल में नोटिंग की जाती है कि चर्चा अनौपचारिक होगी क्योंकि मामला संवेदनशील है।

अब आप देखिए कैसे कुछ दिन पहले एक सिस्टम बनाने की बात हो रही है और फिर बात हो रही है कि बातचीत अनौपचारिक होनी चाहिए। 22 मई 2017 को उर्जित पटेल वित्त मंत्री जेटली को लिखते हैं कि रिज़र्व बैंक इन बातों से हैरान और निराश है। पहला कि हमने इस बात को लेकर एक दूसरे से चर्टा नहीं की है जबकि हाल के दिनों में सरकार और रिजर्व बैंक के बीच कई बैठकें हुईं। रिज़र्व बैंक के सदस्यों और बाहर के सदस्यों के साथ अलग अलग बैठक करना रिज़र्व बैंक एक्ट की आत्मा के खिलाफ है। अगर जनता की निगाह में मौद्रिक नीतियों की साख बचा कर रखनी है तो इस तरह के पत्राचार से बचा जा सकता था।

उर्जित पटेल वित्त मंत्रालय की तरफ से जारी दो पत्रों की बात कर रहे हैं जिसमें मौद्रिक नीति समिति के सदस्यों से चर्चा की बात थी। उर्जित पटेल लिखते हैं कि इसे टाला जा सकता था। वे राष्ट्रहित का हवाला देते हैं। पटेल वित्त मंत्री जेटली को याद दिलाते हैं कि केंद्र सरकार मौद्रिक नीति समिति को केवल लिखित रुप में अपनी राय जता सकती है। इसके अलावा किसी भी रुप में इसके सदस्यों से बातचीत का प्रयास कानून का उल्लंघन करता है।

इस खबर को अल जज़ीरा ने छापा है। उसका कहना है कि वित्त मंत्रालय, रिज़र्व बैंक, राजीव मेहरिषी, रघुराम राजन, उर्जित पटेल से संपर्क किया गया। सवाल भेजा गया मगर किसी ने जवाब नहीं दिया। शक्तिकांत दांस उस समय आर्थिक मामलों के सचिव हुआ करते थे। उनका फाइल पर नोट है कि वित्त मंत्रालय और MPC के सदस्यों के बीच बातचीत को इस तरह से नहीं देखा जा सकता है कि रिज़र्व बैंक एक्ट का उल्लंघन हुआ है। पटेल के इस्तीफा देने के 24 घंटे बाद शक्तिकांत दास को रिज़र्व बैंक का गवर्नर बना दिया जाता है।

Shiv Kumar Mishra

Shiv Kumar Mishra

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