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किसान आंदोलन की विशेष खबर: डॉ राजाराम त्रिपाठी ने दक्षिण भारत का किया तूफानी दौरा, जैसे ही बताई ये बात किसानों में मची खलबली!
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डॉ राजाराम त्रिपाठी ने दक्षिण भारत का किया तूफानी दौरा, एक हफ्ते में कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश में कई किसान समूहों से मिले
दक्षिण भारत में भी भड़क रहा है किसानों का असंतोष तथा आक्रोश, सरकार तत्काल कानून वापस लेकर न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बाध्यकारी क़ानून बनाए : डॉ त्रिपाठी
डॉ राजाराम त्रिपाठी ने ही सबसे पहले, देश को बताई थी इन कानूनों की खामियां , और इनका किया था विरोध,
वर्तमान किसान आंदोलन को दबाने ,तोड़ने के लिए सरकार हर संभव हथकंडे अपना रही है। इसके लिए वह लोकतांत्रिक मूल्यों तथा परंपराओं को भी ध्वस्त करते जा रही है। बड़े दुर्भाग्य का विषय है कि लोकतंत्र का चौथा स्तंभ मीडिया, जिसे कि सरकार के हर गलत निर्णय, ग़लत कदम के लिए, सरकार को कटघरे में खड़ा करना चाहिए, उससे सवाल पूछने चाहिए तथा अगर कोई सरकार जुल्म करती है, तो मीडिया को मजलूम तथा अन्याय के शिकार पक्ष के साथ खड़ा होना चाहिए। जबकि आज हालात बिल्कुल उल्टे हैं, अपराधों को छोड़कर ज्यादातर मीडिया सरकार के वकील की भूमिका में हैं । यह कहना गलत होगा कि आज आपातकाल से भी बदतर हालात हैं। वैसे तो इस आंदोलन को बदनाम करने के लिए कई तरह की साजिशें रची गई, तथा कई अनर्गल निराधार आरोप भी लगाए गए। पर अपवादों को अगर छोड़ दें तो , सच्चाई बहुसंख्य किसानों के साथ खड़ी है यह पूरा देश देख भी रहा है और समझ भी रहा है।
इस आंदोलन को बार-बार पंजाब हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश के कुछ क्षेत्रों का आंदोलन बता कर पूरे देश के किसानों की मांग को खारिज करने की कोशिश की जा रही है, जबकि हकीकत यह है कि इन अन्यायकारी कानूनों को लेकर पूरे देश के किसान आंदोलनरत हैं।
अखिल भारतीय किसान महासंघ के राष्ट्रीय संयोजक डॉ राजाराम त्रिपाठी जिन्होंने की इन कानूनों के अध्यादेश के रूप में आते ही सर्वप्रथम 7 जून 2020 को ही इन कानूनों की खामियों को उजागर करते हुए इन कानूनों का, न केवल प्रबल विरोध किया बल्कि अन्य समस्त किसान संगठनों को बैठक बुलाकर उन्हें इन कानूनों की खामियों के बारे में भी समझाया। दरअसल इस आंदोलन का बीज डां राजाराम त्रिपाठी ने ही बोया था, इसके लिए उन्हें भारतीय किसान यूनियन असली के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री हरपाल सिंह ने अभिनंदन पत्र देकर सम्मानित भी किया। इस आंदोलन को लेकर सवाल तथाकथित राष्ट्रीय मीडिया द्वारा उठाए जाते हैं कि अगर यह कानून इतने ही अन्याय कारी है तो दक्षिण भारत में उनके खिलाफ आंदोलन क्यों नहीं है। जबकि हकीकत तो यह है कि दक्षिण भारत में भी किसान जगह-जगह पर आंदोलनरत है किंतु दरबारी राष्ट्रीय मीडिया उन्हें ना तो दिखा रहा है ना उसकी खबरें आ रही है।
इसे उजागर करने के लिए आईफा के राष्ट्रीय संयोजक डॉ राजाराम त्रिपाठी ने 12 फरवरी से 17 फरवरी तक1 हफ्ते की दक्षिण भारत की तूफानी यात्रा की। एशिया यात्रा के दरमियान वह जगह-जगह किसानों से मिले तथा उनसे इन कानूनों को लेकर चर्चा की सभी जगह किसान एकमत होकर इन कानूनों के खिलाफ अपने अपने स्थानीय संगठनों के झंडे तले लामबंद खड़े मिले। इस दरमियान कर्नाटक तमिलनाडु तथा आंध्र प्रदेश के किसानों से जगह जगह पर बैठकें की गई। साथ में आंध्र प्रदेश तथा कर्नाटक के आइफा संयोजक विनय ओझा भी मौजूद थे। डॉक्टर त्रिपाठी ने सरकार कहा कि सरकार किसी मुगालते में न रहें इन तीनों कृषि कानूनों के विरोध को लेकर पूरे देश के किसान एकमत हैं तथा एक साथ खड़े हैं।
इन तीनों प्रदेशों में भी किसान जबरदस्त आंदोलन कर रहे हैं। कल 17 फरवरी को बेंगलुरु में राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे की ओर जाने वाली प्रमुख सड़क के टोल नाके पर किसानों ने जबरदस्त प्रदर्शन करते हुए रास्ता जाम कर दिया था, जिसके कारण बेंगलुरु से दिल्ली आ रहे अखिल भारतीय किसान महासंघ के राष्ट्रीय संयोजक डॉ राजाराम त्रिपाठी की फ्लाइट भी छूट गई। उल्लेखनीय है कि डॉ राजाराम त्रिपाठी, चौधरी हरपाल सिंह के नेतृत्व में भारतीय किसान यूनियन असली के द्वारा उत्तर प्रदेश में के बिलारी में आयोजित महापंचायत में शामिल होने जा रहे थे। किंतु इन प्रदर्शनों के कारण लगे जाम के कारण अंततः उनकी फ्लाइट छूट गई और वह इस कार्यक्रम में शामिल नहीं हो सके। अबे दक्षिण भारत की डोरी से लौटते हुए डॉ राजाराम त्रिपाठी ने कहा कि इन कानूनों को लेकर दक्षिण भारत के किसानों में भी जबरदस्त असंतोष तथा कोर्स है सरकार को जन भावना का सम्मान करते हुए उन कानूनों को वापस ले लेना चाहिए प्रधान न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी बाध्यता हेतु तत्काल कानून बनाना चाहिए।