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अमरोहा के मशहूर शायर जान एलिया की पूण्यतिथि पर विशेष

Shiv Kumar Mishra
8 Nov 2021 4:25 PM IST
अमरोहा के मशहूर शायर जान एलिया की पूण्यतिथि पर विशेष
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शारिक रब्बानी

उर्दु साहित्य की महान शखसियत और अमरोहा के मशहूर शायर जान एलिया का जन्म 14 दिसंबर 1931 को अमरोहा मे हुआ था।और उनके पिता अललामा शफीक हसन आलिया एक जाने माने शायर होने के साथ खगोल शासत्री भी थे और उनका कला व साहित्य से भी गहरा जुडाव था। जान एलिया मशहूर फिल्म निर्देशक कमाल अमरोही के चचेरे भाई भी है। बँटवारे के बाद उनके परिवार के कई लोग पाकिस्तान चले गये थे जि सके कारण बाद मे जान एलिया को भी मजबूरन पाकिस्तान जाना पडा लेकिन उन्हें अमरोहा से सदैव प्रेम रहा।

कहा जाता हे कि जान एलिया जब भी भारत आये तो अमरोहा जरूर गये और अमरोहा जाने पर रेलवे सटेशन पर ही गाडी से उतर कर सबसे पहले अमरोहा की मिट्टी उठा कर चूमते थे और फिर उसे माथे से लगाते थे। जान एलिया की शादी मशहूर पत्रकार व लेखिका जाहिदा हिना से हूई थी।जो एक प्रगतिशील व बेबाक लेखिका थी। जान एलिया की मृत्यु 8 नवम्बर 2002 को कराची पाकिस्तान मे हुई । प्रनतु जान एलिया अपनी साहित्यिक सेवाओं के लिए भारत और पाकिस्तान दोनों ही देशों मे समान रूप से लोकप्रिय है।और इनका शुमार विश्व विख्यात शायरो मे होता है। पारपंरिक विचारों और रूढिवादिता से उन्हें नफरत थी । आत्म ज्ञान की खोज ने उनके दिमाग मे एक ऐसा सथान प्रदान किया था जहाँ वह एक बैरागी के रूप मे रहते थे। यह भी कहा जाता है कि आठ साल की आयु मे जान एलिया को प्यार हो गया था और उन्होंने अपना पहला दोहा इसी आयु मे लिखा था।तथा जान एलिया जब भी अपने प्रिय को आता हुआ देखते थे तो वह अपना चेहरा दूसरी तरफ कर लेते थे।

जान एलिया ने नसर निगारी मे भी महारत हासिल कर रखी थी।उन्होंने इसलाम से पहले अरबों के इतिहास. विश्व धर्मों. तथा इसलामी इतिहास व मुस्लिम दर्शन पर भी लिखा है। जान एलिया की नसर निगारी तर्क सँगत विचार और सवतँत्र जाँच पर आधारित रही है और कटटरवादिता. रूढिवादिता व सामाजिक अन्याय के विरूद्व उन्होंने कलम चलाई है ।जान एलिया की शायरी उनके जीवन और उनके समक्ष घटित घटनाओं के अनुरूप है। व क्रोध.हताशा और मार्मिकता .आत्म विश्वास आदि उनकी शायरी मे नजर आती है । शायद. यानी. गुमान. गोया आदि जान एलिया के प्रमुख काव्य ग्रँथ है। और इनकी शायरी को अत्यधिक पढे जाने का गोरव प्राप्त है। पेश है जान एलिया की शायरी की कुछ पँकतियाँ.........

है मोहब्बत हयात की लजजत । . वर्ना कुछ लजजते हयात नही। कया इजाजत है एक बात कहू ..वो मगर खैर कोई बात नही।।

..2 ..शर्म .दहशत .झिझक. परेशानी। ..नाज से काम कयो नहीं लेती। आप.वो.जी मगर ये सब कया है । तुम मेरा नाम कयो नहीं लेती ।।

. ..3...तर्क ए तआललुकात कोई मसअला नहीं। . . ... . .ये तो वो रास्ता है कि बस चल पडे कोई। . . . .दीवार जानता था जिसे मै वो धूल थी। .. . . .. .अब मुझको एतिमाद की दावत न दे कोई।। . .. . .. . ..4....बेकरारी सी बेकरारी है। . वसल है और फिराक तारी है। . .जो गुजारी न जा सकी हमसे । . हमने वो जिँदगी गुजारी है।।

..5.... तुम हकीकत नहीं हो हसरत ह़ो। . .... .. ... ... .जो मिले खवाब मे वो दौलत हो।। . ... . . .. . . . .. तुम हो खुशबू के खवाब की खूशबू। . .. ... ..... .... और इतनी ही बे मुरव्वत हो। . .. .. .

शारिक रब्बानी ...... . .वरिष्ठ उर्दु साहित्यकार... .. .नानपारा. बहराईच. उत्तर प्रदेश

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