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Story of dacoit Phoolan Devi: डकैत फूलन देवी की असली कहानी उसकी माँ की जुबानी

Shiv Kumar Mishra
5 April 2022 11:05 AM IST
Story of dacoit Phoolan Devi: डकैत फूलन देवी की असली कहानी उसकी माँ की जुबानी
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Story of dacoit Phoolan Devi:फिल्मी लोगों द्वारा अपने फायदे के लिए तत्थों को तोड़ मरोड़ कर फिल्म बनाने का आम जनमानस पर कितना नकारात्मक असर होता है ये फूलन देवी की कहानी से पता चलता है। जानने के लिए पूरा थ्रेड पढ़ें-

प्रस्तुत लिंक मे फूलन देवी की माँ का इंटरव्यू है। इनके अनुसार फूलन देवी को डाकू बनाने के पीछे उसका परिवार, कुटुम्ब और उसकी जाती जिम्मेदार थी, दादी ठाकुरो (जो कि एक स्थानीय जाति है) ने उसकी मदद ही कि थी।

ये कोई नए तथ्य नही है, क्षेत्र का बच्चा बच्चा, स्थानीय पत्रकार सब ये बात जानते हैं। खुद फूलन देवी,उसके परिवार ने सैकडो बार ये कहानी बताई है। राष्ट्रीय मीडिया मे भी अधिकतर को असलीयत पता है। लेकिन किसी ने इस झूठ का पर्दाफाश करने की कोशिश नहीं की क्योकि नैरेटिव उनके मनमुताबिक है।

फूलन की मात्र 10-11 साल की उम्र मे उसके घर वालो ने शादी और गौना करा दिया था उम्र मे कही ज्यादा बड़े पुत्तीलाल के साथ। उसका पहला बलात्कार उसके पति ने किया उसके परिवार की रजामंदी से। फूलन की तबियत खराब होने के बाद 1-2 साल के अंदर ही पुत्तिलाल ने फूलन को छोड़कर दूसरी शादी कर ली।

कई साल फूलन अपने घर पर रही और खेती मे हाथ बँटाती रही। एक बार फूलन के सगे ताऊ के लड़के मइयादीन ने खेती के पारिवारिक झगड़े के कारण पुलिस से मिलभगत कर फूलन का संबंध डकैतो से बता कर उसे थाने मे बंद करवा दिया। थानेदार अहीर जाति का था। उसकी माँ के अनुसार फूलन साल भर बंद रही।

थानेदार जब फूलन को छोड़ने को तैयार हुआ तो उसने जमानती लाने को कहा। इसकी माँ के अनुसार बहुत फरियाद करने के बाद भी उसके गाँव का कोई मल्लाह जमानत देने को तैयार नही हुआ। तब बगल के गाँव नराहन के ठाकुरो ने उसकी जमानत कराई जिसमे ठाकुर फूल सिंह के पुत्र जयकरण सिंह प्रमुख थे।

इनके अनुसार फूलन के थाने से छूटते ही स्वजातीय डकैत विक्रम मल्लाह अपने गैंग के साथ आया और फूलन का उसके परिवार के सामने से अपहरण कर ले गया। उसके बाद फूलन विक्रम मल्लाह के गैंग मे उसकी रखैल बन कर रही, इस तरह फूलन का दूसरी बार बलात्कार विक्रम मल्लाह ने किया।

स्थानीय लोगो मे जो version चर्चित है उसके अनुसार फूलन चरित्रहीन लड़की थी जिसके पहले से गलत लोगो के साथ संबंध थे जिसका फ़ायदा उठाकर उसी के चचेरे भाई मैय्यादीन ने जमीन कब्जाने के लिए थाने मे बंद करवा दिया। फूलन मुकदमे लगने पर बहुत चर्चित हुई जिसके बाद विक्रम मल्लाह उसे उठा ले गया।

इस क्षेत्र मे शरीफ औरतो/लड़कियो को प्रताड़ित करना बहुत गलत माना जाता था चाहे डकैत हो या भृष्ट पुलिस। उच्चशृंखल लड़किया ही डकैतो मे शामिल होती थी। सच्चाई जो भी हो इतना पक्का है कि फूलन के डकैत बनने के जिम्मेवार उसके परिवारवाले या उसकी जाति के ही लोग थे,ठाकुर कहीं सीन में नहीं थे।

डकैतो के गैंग मे शामिल होकर फूलन ने कई वारदातो को अंजाम दिया। उस गैंग का सरदार उस वक्त बाबू गूजर था जिसके फूलन के साथ गैंग मे शामिल होने से पहले से संबंध होने बताए जाते हैं, इस बाबू गूजर ने फूलन का बलात्कार किया जिसकी प्रतिक्रिया मे विक्रम मल्लाह ने बाबू की हत्या कर दी।

इसके बाद गैंग मे गूजर बनाम मल्लाह हो गया और विक्रम मल्लाह ने अपनी गैंग बना ली। उस समय गैंग के असल सरगना लालाराम और श्रीराम जो मात्र इसी क्षेत्र मे मिलने वाली दादी ठाकुर नाम की जाति से थे वो जेल मे बंद थे, जेल से छूटने के बाद उन्होंने विक्रम मल्लाह की हत्या कर दी....

इसके बाद फूलन विक्रम मल्लाह के गैंग की सरगना बन गई लेकिन धीरे धीरे उसके पूरे गैंग का सफाया हो गया जिसके बाद वो मान सिंह डकैत के गिरोह मे शामिल हो गई जिसके साथ मिलकर उसने लालाराम गिरोह को चुनौती देना शुरू किया।

लालाराम गिरोह से बदला लेने के लिए उसने उस गिरोह के एक समर्थक गाँव बेहमई पर हमला किया। वहाँ जितने भी आदमी मिले उन्हे लाइन से खड़ा किया, फूलन एक trigger happy महिला थी जो दूसरो के कंधे पर चढ़कर ताकत के नशे मे इतनी चूर हो जाती थी कि उसे नतीजो का भी पता नही होता था।

उसने लाइन मे खड़े 20 लोगो को मार दिया जिनमे 17 लोग दादी ठाकुर जाति के थे जिनकी उस गाँव मे बहुलता थी, बाकि 3 मे एक मल्लाह जाति का, एक धानुक जाति का दलित और एक मुसलमान था। मरने वाले सभी बेहद पिछड़े गरीब गाँव और तबके के थे।

लेकिन घटनास्थल पर सबसे पहले पहुँचे शंभुनाथ शुक्ल जैसे पत्रकारो ने इसे ठाकुरो का नरसंहार कह प्रचारित किया।उस समय प्रदेश मे ठाकुर वीपी सिंह की सरकार थी जिस कारण मुलायम यादव ने फूलन को फांसी दिलाने के लिए धरना प्रदर्शन किया भले ही बाद मे इसी ने उसे परोल पर रिहा करवा सांसद बनवाया।

फूलन को पकड़ने के लिए यूपी मे अनेको एनकाउंटर हुए, उसका बहुत नाम हो गया। तभी एमपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने केंद्रीय नेतृत्व के सामने अपने नंबर बढ़ाने के लिए फूलन की सभी गैर वाजिब मांगे मान कर उसका आत्मसमर्पण करवाया और वो मान सिंह के साथ कई साल जेल मे एक कमरे मे रही।

लगभग एक दशक बाद बॉलीवुड वालो ने फूलन पर फिल्म बनाने की सोची। जिसमे फूलन को हीरोइन दिखाया जाना था तो जाहिर है उसके सभी कारनामो को justify करना जरूरी थी। इस कारण तथ्यो को तोड़ मरोड़ कर ऐसा पेश किया गया कि उसके गाँव के ठाकुर बहुत अत्याचार करते थे, बलात्कार करते थे।

इन अत्याचारी और बलात्कारी ठाकुरो का बदला लेने के लिए फूलन को डकैत बनना पड़ा और अपना बदला लेने के तौर पर उसने ठाकुरो को लाइन मे खड़ा कर मारा। जबकि उसके गाँव मे राजपूत जाति का एक व्यक्ति नही रहता। जिस पड़ोस के गाँव के ठाकुर जाति के लोगो ने उसकी मदद की उन्हे खलनायक दिखाया गया।

फिल्म के आने के बाद सारा नैरेटिव बदल गया।जिस मल्लाह जाति के लोगो ने उसे डकैत बनाया वो उसे देवी और वीरांगना बताकर ठाकुरो को गालिया देने लगे। जबकि उस तथाकथित वीरांगना ने न तो पुत्तीलाल, ना ही मैयादीन, न विक्रम मल्लाह, ना बाबू गूजर, किसी से भी खुद अपना बदला नही लिया।

आज देशभर मे मल्लाह जाति के लोग उसे वीरांगना और शहीद बताकर ठाकुरो से नफरत करते हैं, प्रोपगैंडा करते हैं. फूलन के गाँव के जिन मल्लाहो ने उसे डकैत बनाया,जिनमे कोई उसकी जमानत देने को तैयार नही था,उन्होंने वीरांगना लिख बड़ी मूर्ति लगाई हुई है और हर साल वहाँ ठाकुरो को गालियाँ देते हैं।

हद्द तो यह है कि 20 निर्दोष लोगो का नरसंहार करने वाली चरित्रहीन महिला को महिमामंडित करने के लिए तथ्यो को तोड़ मरोड़ के बनाई गई इस फिल्म से प्रभावित होकर अपनी राय बनाने वाले शेर सिंह राणा पर बन रही फिल्म पर कटाक्ष करते हैं कि अब अपराधियों को महिमामंडित कर फिल्म बनेगी।

बहमई कांड के बाद ही ठाकुरो के खिलाफ एक smear campaign शुरू कर दिया गया था।जहाँ इससे पहले फ़िल्मों मे ठाकुरो का किरदार हमेशा पॉजिटिव दिखाया जाता था वही इसके बाद ठाकुरो को अत्याचारी दिखाने वाली फ़िल्मों की बाढ़ आ गई जिसमे एक गाँव मे एक ही ठाकुर होता था जो पूरे गाँव पर अत्याचार करता।

ये सब वीपी सिंह,अर्जुन सिंह,एसके सिन्हा, चंद्रशेखर जैसे तथाकथित ठाकुर नेताओ के 80 के दशक मे एकाएक उभार की प्रतिक्रिया स्वरूप विरोधी वर्ग द्वारा किया गया था लेकिन इतने दशको ने इन तथाकथित ठाकुर नेताओ मे से किसी ने भी इस प्रोपगैंडा के विरुद्ध एक शब्द तक बोलना गवारा ना किया।

ठाकुरो के इस तरह चरित्रहनन का सबसे ज्यादा नुकसान ठाकुर नेताओ को ही है।कोई मात्र समाचारपत्र मे विज्ञापन देकर ही सच्चाई छपवा देता तो लोगो को इतना तो पता चलता कि दूसरा पहलू भी है लेकिन इतने दशको मे इनसे यह तक न हुआ और हमारे समाज के लोग इन निकम्मे नेताओ को सर पर चढ़ा रखते हैं।

इस फिल्म के बाद मीडिया से लेकर राजनीतिक लोगो ने तरह तरह की ठाकुर विरोधी थ्योरी गढ़ दी बिना सच्चाई जाने। एक झूठ के आधार पर दूसरा झूठ लिखा जा रहा है। फूलन को दलितो पिछड़ों वगैरह का इकॉन बनाया गया और ठाकुरो को villain बनाया गया,देश भर मे चिढ़ाया गया जिसके कारण फूलन की हत्या हुई।

फूलन की ही तरह उस जमाने मे एक कुसुमा नाइन नाम की डकैत थी जिसे विक्रम मल्लाह गैंग के माधो मल्लाह ने अगवा किया था। वो बाद मे राम आसरे तिवारी उर्फ फक्कड़ की प्रेमिका रही। अपना बदला लेने के लिए उसने कस्ता गाँव के 15 मल्लाहो को मारा बहमई कांड का बदला बोलकर।

लेकिन इस नरसंहार मे मरने वाले मल्लाह और मारने वाली एक बेहद अल्पसंख्यक जाति की कुसुमा नाइन थी। ना तो मीडिया, ना राजनीतिक लोग और ना ही बॉलीवुड वालो के लिए इस कहानी मे कुछ भी आकर्षक था। इसलिए यहाँ किसी अत्याचार की बात नही हुई और ना ही फिल्म बनी।

ना कुसुमा नाईन का आत्मसमर्पण करवाया गया,न उसे फांसी से इम्यूनिटी दी गई,ना उसे जमानत करवा कर सांसद और आइकॉन बनाया गया,ना करोड़पति बन पाई,दो दशक से ज्यादा बीहड़ मे गुजारने वाली कुसुमा अपने एकमात्र प्रेमी रामआसरे तिवारी के साथ फांसी की सजा पाकर पिछले दो दशक से जेल मे बंद है।

सोचिये कि एक गलत फिल्म में समाज में कितना विष घोला है।

Shiv Kumar Mishra

Shiv Kumar Mishra

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