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फंस गया पेंच संसदीय सचिवों की नियुक्तियों पर विधायको में फैल रहा है जबरदस्त आक्रोश
मुख्यमंत्री के सलाहकारों की गैर कानूनी नियुक्ति के सम्बंध में जब मैंने पोस्ट डालकर यह लिखा कि ये नियुक्तियां पूरी तरह गैरकानूनी और नैतिकता के दायरे से बाहर है । ऐसे सलाहकारों को न मंत्री पद का दर्जा दिया जा सकता है और न ही कोई राजकीय सुविधा । अगर राज्य सरकार ऐसा करती है तो नियुक्त सभी सलाहकार अयोग्य घोषित हो सकते है ।
मेरी इस पोस्ट पर अनेक लोगो ने टिप्पणी की । अधिकांश लोगों की यह मान्यता थी कि राज्य सरकार कुछ भी निर्णय ले सकती है । लेकिन मेरी बात पूर्णतया सच साबित हुई । मुख्यमंत्री ने कल प्रेस कॉन्फ्रेंस में स्पस्ट रूप से सफाई दी कि किसी भी सलाहकार और संसदीय सचिव को मंत्री पद का दर्जा नही दिया जा रहा है और न ही सलाहकारों की नियुक्ति के कोई आदेश जारी किए गए है ।
अब सवाल यही उठता है कि जो व्यक्ति कई बार केंद्र में मंत्री, तीन बार पीसीसी चीफ और इतनी ही बार मुख्यमंत्री बन चुका हो, क्या उसे ऐसे सलाहकारों की आवश्यकता पड़ गई है जो राजनीति में अभी पूरी तरह परिपक्व भी नही हुए है । मुख्यमंत्री की सफाई है कि मै किसी को भी अपना सलाहकार नियुक्त कर सकता हूँ ।
निश्चित रूप से यह अधिकार मुख्यमंत्री को है । लेकिन ऐसे सलाहकारों को कानूनन न तो मंत्री पद का दर्जा दिया जा सकता है और न ही कोई अतिरिक्त सुविधा । यदि किसी सलाहकार को कमरा, वाहन, नौकर, सुरक्षा और सहायक आदि की सुविधा पिछले रास्ते से दी जाती है तो यह नैतिकता के दायर से बाहर होगी । मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पक्के नैतिकवाद के परिचायक है ।
अब बात कर लेते है संसदीय सचिवों की नियुक्तियो के बारे में । ध्यान होगा कि दिल्ली में संसदीय सचिव नियुक्त करने पर राष्ट्रपति ने 20 विधायको को अयोग्य घोषित किया था । न्यायालय ने निर्वाचन आयोग से संसदीय सचिवों की नियुक्तियों के बारें में राय मांगी थी । आयोग का कहना था कि ये नियुक्तियां लाभ का पद है ।
निर्वाचन आयोग के निर्णय के पश्चात राष्ट्रपति ने विधायक प्रवीण कुमार, शरद कुमार, आदर्श शास्त्री, मदन लाल, शिव चरण गोयल, संजीव, सरिता सिंह, नरेश यादव, राजेश गुप्ता, राजेश ऋषि, अनिल कुमार वाजपेयी, सोम दत्त, अवतार सिंह, विजेंदर गर्ग विजय, जरनैल सिंह, कैलाश गहलोत, अलका लांबा, मनोज कुमार, नितिन त्यागी और सुखवीर सिंह को अयोग्य घोषित कर दिया ।
मणिपुर का मामला भी संसदीय सचिवों की गैर कानूनी नियुक्ति से जुड़ा हुआ है । सुप्रीम कोर्ट को आश्वस्त किया गया कि 'लाभ के पद' प्रकरण में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के 12 विधायकों को अयोग्य घोषित करने के मामले में निर्वाचन आयोग की राय पर मणिपुर के राज्यपाल शीघ्र ही कोई निर्णय लेंगे ।
न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति बी वी नागरात्न की पीठ को सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने यह आश्वासन दिया । इससे पहले पीठ ने सॉलिसीटर जनरल से राज्यपाल के निर्णय के बारे में प्रश्न किया था।
न्यायालय ने कहाकि अनुच्छेद 192 के अनुसार राज्यपाल को निर्णय मानना होगा। बीते 11 माह में कुछ नहीं हुआ। हम कोई आदेश पारित नहीं करना चाहते । इस पर सॉलिसीटर जनरल ने कहा,'' मैं आपको आश्वासन देता हूं कि हम निश्चित रूप से प्रभावी कार्रवाई करेंगे । लिहाजा न्यायालय को कोई निर्देश पारित करने की जरूरत नहीं होगी।''
गौरतलब है कि मणिपुर से भाजपा के 12 विधायक कथित तौर पर 2018 के ''लाभ के पद'' मामले में अयोग्य ठहराए जाने के मामले का सामना कर रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार चुनाव आयोग ने विधायकों को नियमों का उल्लंघनकर्ता नहीं माना था क्योंकि वे राज्य में दो कानूनों द्वारा प्रदत्त छूट के तहत संसदीय सचिव के पद पर आसीन थे।
इन कानूनों को बाद में उच्च न्यायालय ने निरस्त कर दिया था। न्यायालय द्वारा इन कानून को निरस्त किये जाने के बाद मणिपुर कांग्रेस ने राज्यपाल नजमा हेप्तुल्ला के समक्ष याचिका दायर कर भाजपा के 12 विधायकों को अयोग्य घोषित करने का अनुरोध किया था। राज्यपाल ने इस मामले में पिछले साल अक्टूबर में निर्वाचन आयोग से राय मांग थी। बताते हैं कि आयोग ने इस साल जनवरी में राज्यपाल को एक पत्र लिखकर उन्हें अपनी राय से अवगत कराया था कि संसदीय सचिव की नियुक्ति लाभ का पद है ।
इन परिस्थितियों में राजस्थान में संसदीय सचिव कानूनन नियुक्त होंगे, इसकी संभावना कम नजर आती है । बसपा और निर्दलीय विधायको को एडजस्ट करने के चक्कर मे सलाहकार और संसदीय सचिव नियुक्त करने की घोषणा तो करदी गई है । लेकिन इन नियुक्तियों पर पेंच फंसा हुआ है । उधर राज्यपाल ने जवाब मांगकर सरकार की नींद उड़ा रखी है ।