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Supreme Court Decision On Bulldozer: कोई आरोपी है सिर्फ इस बात पर घर नहीं गिरा सकते, सुप्रीम कोर्ट का बुलडोजर ऐक्शन पर बड़ा प्रहार

Special Coverage Desk Editor
13 Nov 2024 4:32 PM IST
Supreme Court Decision On Bulldozer: कोई आरोपी है सिर्फ इस बात पर घर नहीं गिरा सकते, सुप्रीम कोर्ट का बुलडोजर ऐक्शन पर बड़ा प्रहार
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Supreme Court Decision On Bulldozer: बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला किया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकारी शक्ति का दुरुपयोग नहीं किया जा सकता है.

Supreme Court Decision On Bulldozer: बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला किया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकारी शक्ति का दुरुपयोग नहीं किया जा सकता है. जस्टिस बी आर गवई ने कवि प्रदीप की एक कविता का जिक्र करते है हुए कहा कि घर सपना होता है. यह कभी भी नहीं टूटना चाहिए. उन्होंने कहा कि अपराध की सजा घर तोड़ना नहीं होता. अपराध का आरोप या फिर दोषी होना घर तोड़ने का आधार कभी भी नहीं हो सकता.

सुनवाई के दौरान, जज ने कहा कि हमने सभी दलीलों को सुना है. लोकतांत्रिक सिद्धांतों पर हमने विचार किया है. न्याय के सिद्धांतों पर भी विचार रिया है. उन्होेंने कहा कि सरकार की जिम्मेदारी है कि कानून का शासन बना रहे. लेकिन साथ में नागरिक अधिकारों की रक्षा संवैधानिक लोकतंत्र में आवश्यक है.

अपराधियों को भी संविधान ने दिए अधिकार

न्यायाधीश ने आगे कहा कि लोगों को एहसास होने चाहिए कि उनके अधिकार ऐसे ही नहीं छीने जा सकते हैं. सरकार की शक्ति का दुरुपयोग नहीं किया जा सकता है. हमने विचार किया है कि क्या हम गाइडलाइंस जारी करें. बिना किसी केस के मकान गिराकर सजा नहीं सुनाई जा सकती है. हमारा निष्कर्ष है कि अगर प्रशासन मनमाने तरीके से घर गिराता है तो अधिकारियों को जवाबदेह बनाना होगा. संविधान अपराधियों को भी अधिकार देता है. बिना किसी केस के किसी को दोषी नहीं माना जा सकता है.

प्रशासन जज नहीं बन सकता है

सुनवाई के दौरान, न्यायाधीश ने कहा कि लोगों को मुआवजा मिले, यह एक तरीका हो सकता है. इसके साथ अवैध कार्रवाई करने वाले अधिकारियों को भी दंडित किया जाए. न्याय के सिद्धांतों का पालन आवश्यक है. पक्ष रखने का हर किसी को मौका मिलना चाहिए. ऐसे ही किसी का घर नहीं गिरा सकते. जज प्रशासन नहीं बन सकता. किसी को दोषी बताकर घर नहीं गिराया जा सकता. अपराध होने पर कोर्ट सजा देता है. निचली अदालत से मिली फांसी भी तभी लागू हो सकती है, जब हाईकोर्ट उसकी पुष्टि कर दे. अनुच्छेद 21 (जीवन के अधिकार) के अनुसार, सर पर छत होना भी एक अधिकार है.

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