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किसान आंदोलन से बीजेपी में डर कहीं सरक न जाए जनाधार!
कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे किसान आंदोलन से भारतीय जनता पार्टी में बेचैनी दिख रही है. पार्टी के रणनीतिकारों को इस बात का अंदेशा है कि कहीं आंदोलन जाट बनाम अन्य ना हो जाए. यदि ऐसा हुआ तो पश्चिम उत्तर प्रदेश की जाट वाले मतदाताओं वाली 19 जिलों की 55 विधानसभा सीटें पार्टी के लिए चुनौती बन सकते हैं.
इसे देखते हुए पार्टी के प्रमुख रणनीतिकार और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 2 दिन पूर्व पश्चिमी यूपी समेत हरियाणा के 40 जाट नेताओं को एक साथ बुलाकर गहन मंत्रणा की. उन्होंने स्पष्ट कहा आप अभी घर पर न बैठे, सड़क पर जाएँ, खाप पंचायतों के बीच जाट मतदाताओं को जाकर भाजपा से छिटकने से रोकने का प्रयास करें. किसानों की आर्थिक हालात सुधारने के दावे के साथ लाए गए तीनों कृषि कानून को लेकर विपक्षी दल और किसान संगठन विरोध कर रहे हैं. किसान संगठन पिछले 3 महीने से अधिक समय से इस बिल को वापस करने की मांग को लेकर आंदोलन चला रहे हैं.
राजनीतिक हलकों में इस बात की चर्चा है जिस प्रकार से किसान नेता राकेश टिकैत ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन में जान फूंक दी है. उसमें पश्चिम के अधिकांश जिलों में किसान मतदाता खास करके जाट मतदाता जो अब तक भाजपा के साथ थे नाराज नजर आ रहे हैं. आंकड़े बताते हैं कि इन जिलों में 24 प्रतिशत तक जाट मतदाता होने की बात की जाती हैं. जो खुलकर बीजेपी के साथ था. जिससे लोकसभा और विधानसभा में बीजेपी ने परचम लहराया था.
यही कारण है पिछले विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आरएलडी भी अपनी खुद की राजनीतिक जमीन को तलाशने के लिए अब बिल के विरोध में खुलकर सामने आ गई है. पार्टी नेता अजीत सिंह और जयंत चौधरी अब लगातार किसान पंचायत में शामिल हो रहे हैं. इसे देखते हुए अब भाजपा के रणनीतिकारों को 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर बीजेपी के विरोध में माहौल बनता नजर आ रहा है. पश्चिमी यूपी के प्रमुख जाट नेताओं आकर बागपत के सांसद सतपाल सिंह, मुजफ्फरनगर के सांसद संजीव बालियान, गाजियाबाद के पूर्व मेयर आशु वर्मा, किसान मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष राजा वर्मा, नरेश सिरोही को भी अमित शाह ने इस मीटिंग में बुलाया. बताया गया कि इसमें अमित शाह ने एक-एक करके किसान आंदोलन और इससे पार्टी को होने वाले नुकसान के बारे में विस्तृत जानकारी की.
इसका असर जिला पंचायत चुनाव पर भी पड़ेगा
भाजपा से जुड़े प्रमुख नेता ने बताया अमित शाह द्वारा बुलाई गई मीटिंग में भी चर्चा हुई थी. किसान आंदोलन का असर इस बार जिला पंचायत चुनाव पर भी हो सकता है. जिस प्रकार यह आंदोलन अब गांव में फैल रहा है और आरएलडी कांग्रेस और सपा समेत अन्य राजनीतिक दल इस आंदोलन की आड़ में ग्रामीण क्षेत्र में बीजेपी के विरोध में माहौल बनाने के प्रयास में जुट गए हैं .इस पर पार्टी में अब तक कोई विशेष प्लान तैयार ने किया तो जिला पंचायत चुनाव में उतरने वाली पार्टी प्रत्याशियों को हार का खामियाजा उठाना पड़ सकता है. अगर पंचायत चुनाव में यूपी में बीजेपी की बड़ी हार होती है तो इसका असर विधानसभा चुनाव में भी पड़ना तय माना जाएगा. क्योंकि जो वोटर बीजेपी से जाएगा उसे दोबारा बीजेपी के साथ जोड़ना एक चुनौती बन जाएगा.