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प्रशांत किशोर की पद यात्रा का मक़सद धीरे-धीरे साफ़ हुआ साफ, राजद नेता शिवानंद तिवारी ने किया खुलासा
प्रशांत किशोर की पद यात्रा का मक़सद धीरे-धीरे साफ़ होता जा रहा है. बिहार की दोनों ख़ेमों की राजनीति से अलग एक नई राजनीति की शुरुआत के मक़सद से शुरू की गई यह पद यात्रा नीतीश विरोध की राजनीति में बदलती जा रही है.
प्रशांत जी से मैं दो मर्तबा मिला हूँ. उन्हीं की पहल पर. यह उन दिनों की बात है जब वे नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री बनाने का अभियान चला रहे थे. प्रधानमंत्री बनाने का उनका फ़ॉर्मूला अजीबोग़रीब था. उनका कहना था कि राजद और जदयू को मिल जाना चाहिए. दोनों मिल जाएँगे तो बिहार और झारखंड के चौवन लोकसभा सीटों में से कम से कम अड़तालीस-पचास सीट तक जीत सकते हैं. उनके अनुसार अगले लोकसभा चुनाव के बाद पहले, दूसरे स्थान पर आने वाली पार्टी की सरकार नहीं बनेगी. तीसरे स्थान पर हमारी पार्टी रहेगी और इसकी सरकार बनने की संभावना प्रबल है.
ऐसा क्यों होगा, यह उन्होंने स्पष्ट नहीं किया और न मैंने पूछा. उन्होंने इशारों में यह भी बताया था कि हमारी सरकार बन जाएगी और नीतीश जी प्रधानमंत्री बन जाएँगे तो लालू जी का मामला भी रफा दफ़ा हो जाएगा.
प्रशांत जी से मुलाक़ात के पहले उनकी एक छवि मेरे मन में बनी हुई थी. वह एक कुशल और सफल चुनावी प्रबंधक की छवि थी. पहली मुलाक़ात में ही प्रशांत जी की वह पुरानी छवि मेरे चित्त से उतर गई. बिलकुल काल्पनिक कहानी की तरह मुझे उन्होंने अपनी योजना समझाई. जब मैंने उनसे कहा कि जदयू जब तक भाजपा के साथ है, उनसे मिल जाने का अर्थ होगा कि राजद भी भाजपा के साथ हो जाए ! यह तो नामुमकिन है. प्रस्ताव पर राजद में विचार किया जाए, यह कह कर उन्होंने उस बातचीत का समापन किया था. प्रशांत मुझसे मिलने आ रहे हैं, इसकी जानकारी मैंने लालू जी को दे दी थी. उन्होंने बताया था कि प्रशांत उनसे भी इस प्रस्ताव के साथ मिल चुके हैं. लालू जी ने भी प्रशांत को यही कहा था कि यह सब उसी हालत में संभव है जब नीतीश भाजपा गठबंधन से बाहर आ जाएँ.
इन सबके अलावा मुझे लगता रहा कि प्रशांत गाँधी से बहुत प्रभावित हैं. कई मर्तबा उनके मुँह से गाँधी का नाम सुना है. गाँधी का नाम प्रशांत कुछ इस अंदाज़ में लेते हैं जैसे गाँधी को वे अपना आदर्श मानते हों. हालाँकि कभी-कभी मुझे आश्चर्य भी होता था कि जो आदमी गाँधी को अपना आदर्श मानता है वह देश में आज जिस निर्लज्जता के साथ सांप्रदायिकता को ही राजनीति का मूलाधार बनया जा रहा है, उस पर मौन कैसे है !
जब मैंने प्रशांत की पद यात्रा का कार्यक्रम देखा तो फिर एक उम्मीद पैदा हुई. वह कठिन संकल्प की घोषणा थी. यह गाँधी का रास्ता है. सचमुच प्रशांत कुछ बड़ा करने जा रहे हैं. लेकिन कार्यक्रम की शुरुआत ने ही बहुत निराश किया. बिहार के सभी अख़बारों में पूरे पेज का विज्ञापन! यह तो कल्पनातीत था. बिहार की किसी भी राजनीतिक पार्टी ने प्रचार का ऐसा वल्गर प्रदर्शन कभी नहीं किया. यह देखने के बाद मुझे एहसास हुआ कि गाँधी का नाम तो शायद प्रशांत के लिए अपने असली चेहरे को छुपाने का एक ढोंग है.
गाँधी ने कहा था कि उनका जीवन ही संदेश है. मितव्ययिता गाँधी के जीवन का सबसे बड़ा संदेश है. एक एक पाई दांत से दबा कर खर्च करते थे. यह उनकी आर्थिक नीति भी थी. गरीब समाज की तरक़्क़ी के लिए एक एक पैसे का सदुपयोग हो. साधन की बर्बादी उनके लिए पाप के समान था. चंपारण आने के पहले उन्होंने शायद पटना का नाम भी नहीं सुना था. अकेले आये. राजकुमार शुक्ल के साथ. अपने साथ बारात लेकर नहीं आए थे. लेकिन प्रशांत जी की पद यात्रा की तैयारी महीना डेढ़ महीना पहले से उनकी टीम के लोग कर रहे थे. प्रायः सभी बाहर से चंपारण आये थे. पद यात्रा से जो खबर निकल कर आ रही है उससे ऐसा लगता है कि इस यात्रा का एक मात्र मक़सद नीतीश कुमार का विरोध हैं. नीतीश कुमार देश के अंदर जो सांप्रदायिक विभाजनकारी राजनीति हो रही है उसका विरोध कर रहे हैं और प्रशांत नीतीश कुमार का विरोध कर रहे हैं. अर्थात प्रशांत की पद यात्रा गाँधी वाली पद यात्रा नहीं है. बल्कि गाँधी की आड़ लेकर वे उनलोगों की मदद कर रहे हैं जो नफ़रत की राजनीति कर रहे हैं. गाँधी की हत्या के बाद पटेल ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ वालों से कहा था कि आपने समाज में जो नफ़रत फैलाया है, गाँधी की हत्या उसी का परिणाम है. प्रशांत की पद यात्रा उसी नफ़रत की राजनीति के समर्थन में दिखाई दे रही है. शिवानन्द
अपनी यह टिप्पणी प्रशांत जी को भी उनके व्हाट्सऐप पर भी भेज रहा हूँ. शिवानन्द