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हिमालय पार का क्षेत्र दुनिया भर के लिये संभावनाओं से भरपूर
पीआईबी, नई दिल्ली :भारतीय खगोलीय वेधशाला (आईएओ) लद्दाख में लेह के निकट हान्ले में स्थित है और दुनिया भर में संभावनाओं से भरपूर वेधशाला स्थल बन रही है। हाल के एक अध्ययन में यह कहा गया है। ऐसा इसलिये है कि यहां की रातें बहुत साफ होती हैं, प्रकाश से उत्पन्न होने वाला प्रदूषण नाममात्र को है, हवा में तरल बूंदें मौजूद हैं, अत्यंत शुष्क परिस्थितियां हैं और मानसून से किसी प्रकार की बाधा नहीं है। इस इलाके की यही खूबियां हैं।
खगोल-विज्ञानी लगातार दुनिया में ऐसे आदर्श स्थान की तलाश में थे, जहां वे अपनी अगली विशाल दूरबीन लगा सकें, जो कई वर्षों के जमा किये हुये स्थानीय मौसमी आंकड़ों के आधार पर लगाई जाये। भावी वेधशालाओं के लिये ऐसे अध्ययन बहुत अहम होते हैं। इसके लिये यह भी जानकारी मिल जाती है कि समय के साथ उनमें क्या बदलाव आ सकते हैं।
भारत के अनुसंधानकर्ताओं और उनके सहयोगियों ने आठ ऊंचे स्थान पर स्थित वेधशालाओं के ऊपर रात के समय बादलों के जमघट का विस्तार से अध्ययन किया। इन वेधशालाओं में तीन भारत की वेधशालायें भी थीं। अनुसंधानकर्ताओं ने पुनर्विश्लेषित आंकड़ों का इस्तेमाल किया और 41 वर्षों के दौरान किये जाने वाले मुआयनों से उनका मिलान किया। इसमें उपग्रह से जुटाये गये 21 वर्ष के आंकड़ों को भी शामिल किया गया था। इस अध्ययन में रातों को किये जाने वाले मुआयने की गुणवत्ता को वर्गीकृत किया गया, जिसके लिये विभिन्न खगोलीय उपकरणों का इस्तेमाल हुआ था। इनमें फोटोमेट्री और स्पेक्ट्रोस्कोपी जैसे उपकरण शामिल थे। यह अध्ययन रोज किया गया।
हान्ले और मेराक (लद्दाख) स्थित भारतीय खगोलीय वेधशाला, देवस्थल (नैनीताल) की वेधशाला, चीन के तिब्बत स्वायत्तशासी क्षेत्र की अली वेधशाला, दक्षिण अफ्रीका की लार्ज टेलिस्कोप, टोक्यो यूनिवर्सटी, अटाकामा ऑबजर्वेटरी, चिली, पैरानल और मेक्सिको की नेशनल एस्ट्रॉनोमिकल ऑबजर्वेटरी में इन आंकड़ों का मूल्यांकन किया गया। दल ने निष्कर्ष निकाला कि हान्ले स्थल, जो चिली के अटाकामा रेगिस्तान जितना ही शुष्क है और देवस्थल से कहीं जाता सूखा है तथा वहां वर्ष में 270 रातें बहुत साफ होती है, वही स्थान इंफ्रारेड और सब-एमएम ऑप्टिकल एस्ट्रोनॉमी के लिये सर्वथा उचित है। इसका कारण यह है कि यहां वाष्प में इलेक्ट्रोमैगनेटिक संकेत जल्दी घुल जाते हैं और उनकी शक्ति भी कम हो जाती है।