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समय यानि काल ! आईपीएस अधिकारी ने बताया समय का महत्व और जरूरत
अजय कुमार पाण्डेय आईपीएस
माना कि जीवन में मनोरंजन बेहद ज़रूरी है। जीवन में अपने मन की, शौक़ की चीजों में समय लगाना किसे अच्छा नहीं लगता। परन्तु यह बात हमेशा ध्यान में रखनी चाहिए कि समय बर्वाद ना हो। संतुलन बना रहे।
समय का सदुपयोग एक ऐसा मंत्र है जिसको हर सफल व्यक्ति जानता होगा। जो लोग सफलता के लिए संघर्ष कर रहे हैं, उनको यह मंत्र अवश्य सीखना चाहिए।
परन्तु, आम तौर पर यह देखा जाता है कि लोग अय्याशी में, ऐशो-आराम में, किसी की निन्दा करने में, किसी से अपनी तुलना करके निराश होने में, किसी पर शंका करके उसके बारे में खोजबीन करने में, सोशल मीडिया ऐप्स पर, पॉर्न फोटोज़ एवं वीडियोज़ देखने में, बॉलीवुड हीरो-हीरोइन्स एवं सिंगर्स के बारे में जानकारी जुटाने में अपना बहुत सारा बेशक़ीमती वक़्त पूरी तरह से बर्वाद कर देते हैं।
जबकि समय ही सब कुछ है। इसे काल भी कहते हैं। वास्तव में समय का सदुपयोग करके ख़ुद को तराशिये । दूसरों में कमियाँ ढूँढना बंद कीजिए। मोबाइल फ़ोन पर, ह्वाट्सऐप पर, टेलीग्राम पर तथा ऐसे तमाम समय नाशक चीजों से बचें। काफ़ी समय बचेगा आपका। फिर, इस बचे हुए वक्त को अपने परिवार को, अपनी पढ़ाई को और अपने परिमार्जन के लिए खर्च करें; आप देखेंगे कि दिनोंदिन आप शाइन कर रहे हैं, आप ज़्यादा तेज़ी से सीख रहे हैं, आप जिस भी फ़ील्ड में हैं उसी में सफलता के नए आयाम और प्रतिमान स्थापित कर रहे हैं।
समय ही सब कुछ है, याद रखिए। समय बर्वाद करने वाले लोगों को सिर्फ़ एक ही चीज़ मिलती है, वह भी बहुत बहुत मिलती है। वह चीज़ है पछतावा। इसलिए, अब यह आप डिसाइड करो कि आप अपने जीवन में पछतावा चाहते हैं या परिपक्व होकर अपनी मंज़िल पा कर ख़ुश रहना चाहते हैं।
"समय सर्वोच्च सम्पदा है। इसका संरक्षण कर सम्मान, सफलता व संतुष्टि के स्वामी बनें।"
खुशियाँ…
कोई भी इतना अमीर नहीं होता कि वह अपना बीता हुआ वक्त खरीद सके, और कोई इतना गरीब भी नहीं होता कि वह अपने आने वाले समय को स्वयं न बदल सके।
जो घटनाएँ घट चुकी हैं, वह चाहे अच्छी हों या बुरी, लाखों लाख प्रयास करके भी उनको बदला नहीं जा सकता। कोई कितना ही पराक्रमी, बलवान अथवा धनवान क्यों न हो, गुज़रे वक़्त को तो कोई भी वापस नहीं ला सकता और न घटित हुई किसी घटना में कोई बदलाव ही लाया जा सकता है।
किन्तु जो अभी लिखा या कहा ही नहीं गया, उस पर तो हमारा नियंत्रण होना ही चाहिए। भविष्य को तो अभी सँभाला एवं सँवारा जा सकता है। कोई कितना भी निर्बल, निर्धन व असहाय क्यों न हो, उससे स्वयं उसका भविष्य लिखने व सँवारने का अधिकार तो कोई भी नहीं ले सकता। अब यह स्वयं उस पर ही निर्भर करता है कि वह अपने लिए किस तरह का भविष्य लिखना
चाहता है।
अगर हम चाहते हैं कि जीवन की यात्रा आरामदायक हो तो बाहरी दुनिया से की जाने वाली उम्मीदों को हमें लगातार कम करते जाना होगा…
लेखक पुलिस अधीक्षक हरदोई के पद पर तैनात है, प्रदेश में सोशल पुलिसिंग के प्रमुख अधिकारीयों में गिने जाते है.