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नहीं बन पाए टीपू इन तीन बड़े कारणों से यूपी के सुलतान
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने एक बढ़िया चुनाव लड़ा इसमें कोई शक नहीं है. लेकिन अगर इन तीन बातों पर भी काम करते तो शायद यादव बेल्ट समेत कई जगह पर बड़ी तादात में सीटें जीतते. लेकिन कुछ मिडिया के साथियों ने मिसगाइड जरूर किया.
इन तीन बातों में प्रमुखतः
1- यूपी में अपराध पर किये गए सवाल पर काउंटर अटैक ने करना. बुलडोजर की चर्चा ज्यादा करना
2- सपा का जिले स्तर के संगठन का ओवर कॉन्फिडेंस लेकिन वोट को नहीं निकाल पाना
3- मीडिया पर लगातार हमला बोलना उनके लिए सबसे बड़ा घातक बना
1- यूपी में अपराध पर किये गए सवाल पर काउंटर अटैक ने करना. वहीं बुलडोजर की चर्चा ज्यादा करना
उत्तर प्रदेश में अपराध एक बड़ी समस्या है. जब २००७ में मायावती ने नारा दिया चढ़ गुंडन के छाती पर मुहर लगाओ हाथी पर , जनता ने उन्हें पूर्ण बहुमत की सरकार दी. उसके बाद मायावती सरकार के खिलाफ अखिलेश यादव का सटीक विरोध और अपराध हरिजन एक्ट और उनकी तानाशाही का विरोध किया नतीजा अखिलेश यादव के नेतृत्व और मुलायम सिंह की देखरेख में पूर्ण बहुमत की सरकार बनी उस सरकार में शिवपाल यादव का भी बड़ा सहयोग था.
अब २०१७ में बीजेपी ने गुंडई के बल पर अखिलेश सरकार की धज्जियां उड़ाना शुरू की जिसका परिणाम बीजेपी ने पूर्ण बहुमत की बड़ी संख्या बल के साथ यूपी की सरकार पर कब्जा किया. अखिलेश को परिवार की लड़ाई ने बेहद कमजोर कर दिया.
अब २०२२ में जब अखिलेश के साथ एक बड़ा वर्ग जुड़ना शुरू हुआ तो मिडिया के एक वर्ग ने उन्हें सीएम मानकर एजेंडा चला दिया जिसका फायदा बीजेपी ने उठाकर फिर से उनकी दंगाई सरकार को निषाना बना दिया . जिसका काउंटर अटैक अखिलेश नहीं दे पाए जिसमें उनकी पार्टी के उमीदवार कैराना विधानसभा से उनका गर्मी निकाल देने वाले वीडियो ने बड़ा नुक्सान पहुंचाया . जिससे बीजेपी उनकी पुरानी छवि को प्रस्तुत करके मुहर लगाती रही.
उनके समर्थन में आई जनता अब उनके बारे में पुनरविचार करने लगी और देखते ही देखते बीजेपी का मंसूबा कामयाब होता नजर आने लगा. उधर अखिलेश भी मुखर होने लगे थे. उनकी भाषा शैली अब विरोध कम सीएम योगी पर हमलावर नजर आने लगी थी. उसी समय प्रथम चरण से पहले मायावती ने बीजेपी की वकालत करके उनको बड़ा झटका दे दिया था. जिससे दबा कुचला वर्ग जिससे अखिलेश सरकार के दौरान हप्ता वसूली की गई थी वो सब अब डर चूका था और यकायक बीजेपी की तरफ मूव कर गया.
चूँकि उस समय अगर अखिलेश यादव इस का काउंटर करते हुए कहते की में भी दो बेटियों का बाप हूँ अगर कीसी बहन बेटियों के खिलाफ आँख उठाई तो उनको किसी कीमत पर बख्सा नहीं जाएगा और जो भी लोग इस लालच में हमें वोट कर रहे हों की हम गुंडई करेंगे तो वो हमें वोट न करें कानून उन सबके खिलाफ काम करेगा.
अखिलश यादव से जनता यह सुनना चाहती थी लेकिन एक भी भाषण में मिडिया ने यह नहीं दिखाया और उनके खिलाफ मिडिया ने एक बड़ा माहौल बना दिया की अगर अखिलश यादव की सरकार आई तो वही हश्र होगा जो पिछली सरकार में हुआ जिससे बीजेपी का बुलडोजर हावी हो गया, इसका उदाहरण नॉएडा गाजियाबाद जैसे शहरों में बीजेपी की बड़ी जीत प्रत्यक्ष उदाहरण है. चूँकि इन इलाकों में बड़ी तादात में रेडी पटरी रिक्शा चालकों से वसूली की गई.
अब लोगों को सिवाय बुलडोजर बाबा के अलावा कोई दिख नहीं रहा था. उधर बेरोजगार , संविदा कर्मी पेंशन कर्मी सभी पूरी ताकत से जुटे हुए थे बीजेपी भी बुरी तरह हलकान थी उसे अपनी जीत का भी भरोसा नहीं था. लेकिन राशन , शासन और प्रशासन ने उनकी वापसी तय कर दी. किसान आंदोलन बिल वापसी के बाद समाप्त हो चूका था तो उसका असर उस तरह नहीं दिखा हालांकि जाट बाहुल्य जिले मुज्जफरनगर , शामली , सहारनपुर समेत कई जिलों में उन्होंने बीजेपी को बड़ा झटका दिया.
2- सपा का जिले स्तर के संगठन का ओवर कॉन्फिडेंस लेकिन वोट को नहीं निकाल पाना
समाजवादी पार्टी का संगठन बीजेपी के संगठन के मुकाबले काफी कमजोर था , उनका भारी भरकम बूथ मैनिजमंट काफी हद तक अपने वोटर को सम्भलता रहा और बार राशन शासन और बुलडोजर बाबा की बात करता रहा जबकि सपा के नेता जीत से ओतप्रोत होकर मस्त थे. इसका परिणाम भी सपा के लिए ठीक नहीं था.
करोड़ों लोगों के संगठन लाखों लॉन्गों के संघठन पर भारी पड़ा अकेले अखिलेश यादव ने पूरी बीजेपी को गली गली घुमा दिया ये उनकी पहली छाप थी उसी चाहत को उनके कार्यकर्ता जनता तक वोट पड़ने तक बरकरार नहीं रख पाए. ये भी यर्क बड़ी कमी दिखी हालांकि अखिलेश ने एक बड़ा चुनाव में अपना कद साबित भी किया यादव बाहुल्य बैल्ट में उनके चाचा शिवपाल यादव का खड़े हुए का फोटो भी बीजेपी ने यादव के घर घर तक पहुंचाकर एक संदेश दिया वहीं एटा कासगंज और फर्रुखाबाद में अपनी एक दबंगई की छवि बना चुके दो भाइयों को टिकिट देकर भी चार जिलों में एक नुकसान उठाया चूँकि पिछली सरकार में उनके कारनामे आज भी जनता के दिल से निकले नहीं है. ठीक इसी तरह अन्य कई जिलों में इसका खामियाजा उठाना पड़ा .
3- मीडिया पर लगातार हमला बोलना उनके लिए सबसे बड़ा घातक बना
अखिलेश यादव पर मीडिया ने भी लगातार बेतुके सवाल किये जिससे उनको भी नाराज होना लाजिमी था जिससे मीडिया जनता को उनकी नकारात्मक छवि प्रस्तुत करके उनकी पिछली कहानियों को दोहराती रही जिसका बड़ा नुकसान उनको बड़े वोट बैंक से हाथ धोकर देना पड़ा. अखिलेश जहां अपने वोटर को समझाकर तैयार करते थे तब तक मीडिया से उलझकर वो अपनी अच्छी बातों को गलत साबित कर देते थे. और मीडिया उनकी गलत बातों को बड़ा चढ़ा कर आगे बढ़ाता रहा.
अब चूँकि चुनाव हो चूका है तो एक समीक्षा लिखना जरूर था मैंने जो जमींन पर देखा उसके मुताबिक़ अखिलेश यादव को मोदी के खिलाफ रही मीडिया ने भी बड़ा नुकसान दिया जो गिनी चुनी जगह पर जाकर उनके समर्थन में वीडियो वायरल करके उनको गलत संदेश देते रहे जबकि हकीकत उनको भी मालूम थी. यह चुनाव शिक्षा स्वास्थ्य रोजगार पर आकर फिर से राशन शासन और सुरक्षा पर मोड़ दिया गया जिसका श्रेय मीडिया को जाता है
वहीं अखिलेश यादव अपनी यादव बाहुल्य सीटों पर भी अपना एकाधिकार नहीं रख पाए , यादव बाहुल्य 59 सीटों में से 45 सीटें भाजपा ने जीतकर यह साबित कर दिया है .