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कांग्रेसियों ने ही किस तरह नाव डुबोई इसके दो उदाहरण!
शकील अख्तर
कांग्रेसियों ने ही किस तरह नाव डुबोई इसके दो उदाहरण है। इन उदाहरणों से कांग्रेस को सीख लेनी चाहिए। जगन रेड्डी पुराने घाव भूले नहीं है। पिता YSR की हवाई दुर्घटना में हुई मौत के बाद दिल्ली में उन्हें और उनकी मां को कांग्रेस के नेताओं ने बहुत जलील करवाया था। विधायक उनके साथ थे जनता भी जो अब साबित भी हो गया। मगर एक ऐसे शख्स को CM बना दिया गया था जिसका नाम भी अब किसी को याद नहीं।
1-एक YSR की दुखद दुर्घटना के बाद उनकी पत्नी और बेटे जगन का अपमान।
2-असम में सेकंड लाइन नेतृत्व को लगातार 15 साल तक दबाए रख कर गगोई को CM बनाए रखना।
अन्याय तो जगन हिमंता सरमा दोनों के साथ हुआ। और दोनों बदले की मानसिकता में हैं। जिनसे कांग्रेस की समाप्त करने की बीजेपी ने तैयारी की। क्योंकि इन दोनों को तो तैयार कांग्रेस ने किया था और उन्हे राजनीत करनी आती थी किन्तु यहाँ तो इसके विपरीत हुआ जो एसी रूम से नहीं निकलते थे वही इन युवाओं को काम नहीं करने दे रहे थे और देखते हो देखते सेकेंड लाइन के नेता बीजेपी की ओर दौड़ पड़े बस फिर क्या था बीजेपी के पुराने रथ में नए पहियों ने पूरी ताकत से चलना शुरू किया और रफ्तार बढ़ गई।
उधर कांग्रेस के पुराने पहिये चरमराकर तेज आवाज के साथ चल रहे थे और नए पहियों का सामना करने में नाकाम नजर आए। इतना हिन नहीं और इससे आगे जब YSR की आकस्मिक मृत्यु के बाद कडप्पा में उपचुनाव था। हम कवर करने गए। शायद नजदीक का एयरपोर्ट चेन्नई था या कोई और तो वहां से टैक्सी में जब जा रहे थे तो इतनी जगह चेकिंग, बेग खोल कर देख रहे थे। पैसे पूछ रहे थे कितना केश है। हैरान हो गए। हमने कश्मीर,पंजाब, असम सारे डिस्टर्ब एरिया कवर किए हैं चेकिंग और सुरक्षा भी बहुत ऊंचे स्तरों पर देखी। मगर यहां AP में इस तरह देखकर आश्चर्य हुआ। सिक्योरिटी से पूछा क्या हो गया है। एक ने जवाब दिया कि एक लड़का (जगन) पागल हो गया है और उसने मैडम (सोनिया गांधी) को चैलेंज कर दिया है। यह स्थिति बना दी थी कांग्रेसियों ने।
अब दाढ़ी बनाने को तो कोई नहीं कह रहा! बल्कि लोग बलिहारी जा रहे हैं।
मगर निर्वाचित कांग्रेस अध्यक्ष खरगे के पद ग्रहण कार्यक्रम के लिए दिल्ली आने पर सोनिया जी और प्रियंका को उन्हें पकड़कर दाढ़ी ट्रिम जरुर करवा देना चाहिए। राहुल में वैरागी में बनने की पूरी संभावना है। देश में ऐसे सन्यासियों को पसंद करने की पुरानी परंपरा है। मगर जनता को अभी आध्यात्मिक नहीं राजनीतिक नेतृत्व चाहिए। उसकी रोजमर्रा की जिंदगी दूभर बनी हुई है। और केवल एक राहुल हैं उसकी आवाज उठा रहे हैं। हालांकि वे यात्रा को तपस्या कह रहे हैं। हां है। जनता के लिए किया जाने वाला कठिन तप।
भारतीयता के हामी उनका धोती पहनना नहीं देख रहे हिंदी में कमियां बता रहे हैं। 2014 के शपथ ग्रहण के समय हम टीवी पर लाइव थे। कहा था (उन दिनों कहा जा सकता था अब तो वह भी नहीं) की हिंदी में शपथ लेने वालों में सुषमा स्वराज को छोड़कर सबका उच्चारण अशुद्ध है। हिंदी को मुद्दा बनाने वाले हिंदी क्षेत्र को भी अच्छी तरह नहीं जानते हैं। गैर हिंदी इलाकों की तो छोड़िए। हिंदी कई बोलियों से बनी है। आज जो हिंदी हम बोल रहे हैं वह खड़ी भाषा है। और यह भी अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग तरह उच्चारित की जाती है। हम हिंदी वालों में एकरूपता नहीं है। खरगे का मजाक बना रहे हैं!