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- उद्धव ठाकरे ने दिखाई...
शकील अख्तर
जो हिम्मत बड़े बड़े मुख्यमंत्री नहीं दिखा पाए वह सबसे जूनियर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने दिखा दी। अर्णव गोस्वामी किसी मुख्यमंत्री यहां तक की वरिष्ठ केन्द्रीय मंत्रियों को भी कुछ नहीं समझता था। इसी तरह किसी पत्रकार, मीडिया मालिक को भी कुछ नहीं। यहां तक कि न्यायपालिका को भी कुछ नहीं, कहता था जज खरीद लो! और इन सबसे खतरनाक और शर्मनाक बात यह कि वह पुलवामा में 40 भारतीय सुरक्षाकर्मियों की शहादत पर खुशियां मना रहा था!
किसी की कोई चिन्ता नहीं, दर्द नहीं। सबके लिए अपमानजनक टिप्पणियां, उपहास, अवहेलना का भाव! सबको देशभक्ति के सर्टिफिकेट बांटना और खुद सुरक्षाकर्मियों की शहादत में लाभ देखना!
पत्रकारिता में ऐसा पाखंडी, अहंकारी, बदजुबान व्यक्ति पहले कभी नहीं देखा गया था। भाजपा के उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी के अलावा, किसी की एक नहीं सुनने वाली ममता बनर्जी, कांग्रेस के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्द्र सिंह जो राहुल गांधी तक की नहीं सुनते थे से लेकर अशोक गहलोत जैसे कांग्रेस के सबसे वरिष्ठ मुख्यमंत्री और भी बहुत सारे मुख्यमंत्रियों का अर्णव रोज पुलिसिया अंदाज में इंट्रोगेशन करता था। इसी ठसक में उसने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और उनके बेटे आदित्य ठाकरे को भी निपटाने की सुपारी ले ली थी।
लेकिन उद्दव ने बाजी पलट दी। चुप रहते हुए पूरी तरह कानूनी तरीके से। भारतीय पत्रकरिता के सबसे बड़े घोटाले टीआरपी रेटिंग के आरोप पत्र में वे लिखित सबूत पेश करके जिसने इन दिनों मीडिया की चूलें हिला रखी हैं।
रिपब्लिकन टीवी के अर्नव गोस्वामी और टीआरपी का निर्धारण करने वाली संस्था बार्क के चीफ पार्थों के बीच होने वाली दलाली की व्हट्सएप चेट लीक होने के साथ ही मीडिया में भूकंप आ गया। हालांकि अभी कोई बोलने को तैयार नहीं है मगर मीडिया के सारे दिग्गज इस समय हिले हुए हैं। जिस टीआरपी की दम पर पूरा टीवी बिजनेस खड़ा था उसे अर्नव कैसे मैनेज करता था और उन लोगों के बारे में क्या क्या बोलता था यह देखकर मीडिया महारथी भयानक रूप से स्तब्ध हैं। मीडीया में एक दूसरे की टांग खिंचाई, आलोचना, प्रतिस्पर्धा चलती रहती है। मगर अर्णव ने सारी हदें पार कर दी थीं। समीर जैन, अरुण पुरी की कई मुद्दों पर आलोचना हो सकती है, होती भी रही है। इसी तरह रजत शर्मा की भी। मगर जिस तरह अर्णव ने सब सीनियर लोगों का व्यक्तिगत अपमान किया है वैसा इससे पहले कभी नहीं देखा गया। इसी तरह राजदीप सरदेसाई, सागरिका घोष और नविका कुमार पर भी वह निर्णयात्मक टिप्पणियां कर रहा है। सिवाय अपने वह किसी को कुछ नहीं समझ रहा। ऐसे अहंकारी को उद्धव ठाकरे ने जब दो आत्महत्याओं के गंभीर फौजदारी मामले में गिरफ्तार किया तो कई क्षेत्रों से उसे मदद मिली। सुप्रीम कोर्ट से फौरन जमानत भी मिल गई।
लेकिन अब टीआरपी जालसाजी के मामले में उसे शायद ही किसी की सहानुभूति मिले। उसने जिस तरह पूरे सिस्टम को अपने हाथों में लेने का दावा किया है, उसके बाद राजनीति, न्यायपालिका और मीडिया किसी भी क्षेत्र से उसे मदद मिलना संभव नहीं है। और यह होना भी चाहिए। लोकतंत्र में, सभ्य समाज में, इंडस्ट्री में हर जगह कोई न कोई सीमा होती है। लेकिन अर्णव ने अपने व्यक्तिगत प्रचार के लिए, टीआरपी के लिए सब मर्यादाएं तोड़ दी थीं। इससे आगे वह कितना खतरनाक हो सकता है यह बताना मुश्किल है। फिर भी क्लेसिकल साहित्य के जरिए इसे कुछ समझा जा सकता है। बड़े लेखक कई बार भविष्य की महागाथा लिखकर चेता देते हैं।
पिछले साल सितम्बर के आखिरी दिनों में जब इतने तथ्य सामने नहीं आए थे हमने इरविंग वालेस के अंग्रेजी उपन्यास " द आलमाइटी " का जिक्र करते हुए कई ट्विट किए थे कि अर्णव उस उपन्यास के अखबार मालिक की तरह अपना प्रसार बढ़ाने के लिए कुछ भी करने को तैयार है। ये व्ह्टसएप चेट सार्वजनिक हो जाने के बाद अब कई लोगों को वह उपन्यास याद आ गया। अमेरिकन लेखक इरविंग वालेस का यह उपन्यास 1982 में उस समय़ प्रकाशित हुआ था जब अखबारों में नई प्रिटिंग टेक्नालाजी आ रही थी। अखबारों की प्रसार संख्या कई गुना बढ़ रही थी और अखबारों के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा शुरू हो रही थी।
उपन्यास का मुख्य चरित्र अख़बार मालिक है। पावर के लिए, सर्कुलेशन बढ़ाने के लिए कुछ भी करने को तैयार। न्यूज हेडलाइन बनना चाहिए, वर्ल्ड इवेंट होना चाहिए! उसके लिए अपराधों में शामिल भी हुआ जा सकता है। बड़े अपराध भी करवाए जा सकते हैं। हर बड़े क्राइम की खबर उसके अख़बार में ब्रेक होती थी। कई बार तो वारदात होने के तत्काल बाद, बहुत बारीक डिटेलों के साथ। आगे की कहानी पढ़ना हो तो उपन्यास में पढ़िए (The Almighty by Irving Wallace) मजा आएगा। लेकिन यहां बस इतना ही कि आखिर में उसका भी पर्दाफाश होता है। और अख़बार में छपने वाली हर बड़ी वारदात, खुद अख़बार ने करवाई होती है!
मीडिया की तरफ से मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को धन्यवाद दिया जाना चाहिए कि उन्होंने समय रहते अर्णव पर कार्रवाई करके पत्रकारिता को और कलंकित होने से बचा लिया। हालांकि और मामलों के साथ पुलवामा और बालाकोट के वाकये ज्यादा गंभीर और देश की सुरक्षा से जुड़े हुए हैं। जिनकी जांच केन्द्र सरकार को अलग से करवाना चाहिए। यह बहुत गंभीर बात है कि बालाकोट की एयर स्ट्राइक से पहले अर्णव को इसकी खबर थी। और वह इस संवेदनशील जानकारी को आगे पास आन कर रहा था। इसी तरह पुलवामा में हमारे जवानों के मारे जाने पर उसका खुश होना बहुत शर्मनाक और गंभीर मामला है। हर किसी को अरबन नक्सल, टुकड़े- टुकड़े गेंग, देशद्रोही कहने वाला अर्णव खुद कौन है इसका पता
लगाने के लिए उपयुक्त जांच एजेसियों को मामला सौंपा जाना चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी को देखना चाहिए कि वह किस तरह उनका और दूसरे वरिष्ठ मंत्रियों का नाम इस्तेमाल कर रहा है। अर्णव को बचाने का मतलब उसकी उन बातों को सही साबित करना होगा, जिसमें वह नीतियां बदलवाने से लेकर सरकार से काम करवाने के वादे और दावे कर रहा है। केन्द्र सरकार को अपनी साख बनाए रखने के लिए अर्णव के खिलाफ कार्रवाई करना चाहिए।
ऐसे ही मीडिया को भी अपनी जो थोड़ी बहुत विश्वसनीयता बची है, वह भी खत्म न हो जाए उसके लिए सामने आना होगा। अर्णव ने जिन जिन मीडिया वालों के खिलाफ अनाप शनाप बोला है वे अगर जवाब नहीं देंगे तो आम जनता में क्या मैसेज जाएगा? यही कि अर्णव सही है! मीडीया मालिकों और पत्रकारों, एंकरों को समझना चाहिए कि अब अर्णव गोस्वामी के साथ कोई नहीं खड़ा होगा। उसने अपने विनाश की कहानी व्हट्सएप पर लिख दी।
अब थोड़ी सी पत्रकारिता की इज्जत को बचाना है। यह काम पत्रकारों और कुछ उन बचे हुए मीडिया के मालिकों को करना होगा, जिनकी पहचान केवल अपने अखबारों, पत्रिका और चैनल से है। बाकी तो आज मीडिया के बड़े हिस्से के मालिक अंबानी हो गए हैं, जिन्हें मीडिया से नाम और सम्मान नहीं कमाना। मगर समीर जैन और अरुण पुरी का नाम तो मीडिया से ही है। रजत शर्मा का भी। इन्हें कम से कम अपने स्वाभिमान की रक्षा तो करना चाहिए!