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पटना के पीएमसीएच के ओपरेशन थियेटर का दृश्य, जिसमें गांधी जी 1947 में मुंह पर मास्क लगाये हुए है
पुष्य मित्र
यह बड़ा दुर्लभ चित्र है। इस चित्र में बाईं तरफ कोने में बापू बैठे हैं। मुंह पर मास्क लगाये। सामने कई डॉक्टर नजर आ रहे हैं। यह पटना के पीएमसीएच के ओपरेशन थियेटर का दृश्य है। तारीख 15 मई 1947, रात के 8 से 9 बजे के बीच। गांधी की पोती मनु का एपेंडिक्स का ओपरेशन चल रहा है।
यह चित्र इसलिये भी दुर्लभ है क्योंकि गांधी इलाज के लिये एलोपेथी पर बिल्कुल भरोसा नहीं करते थे। वे अपना इलाज प्राकृतिक चिकित्सा से ही करते थे और दूसरों को भी इस बारे में सलाह देते थे। मगर जब मनु गांधी का दर्द बरदास्त से बाहर हो गया तो उन्होने एलोपेथी की सर्जरी के आगे आत्मसमर्पण कर दिया।
यह उस दौर की बात है जब बिहार के साम्प्रदायिक दंगों के बाद शांति मिशन के सिलसिले में गांधी पटना आये थे। वे लगभग दो महीने मार्च से मई तक यहां रहे। मनु गांधी नोआखली से ही उनकी सेवा के लिये उनके साथ रहती थी। आखिर तक रही। पटना में गांधी मैदान के पास डा सैयद महमूद के घर में उनका ठिकाना था। गांधी इस लम्बी अवधि के दौरान जहां ठहरे थे वह छोटा सा मकान आज भी एएन सिन्हा इंस्टीटयूट के परिसर में है। मगर अब वहां लगभग कोई नहीं जाता। कोई आयोजन नहीं होता। एकाध बार इसकी मरम्मत जरूर हुई मगर अब भी उपेक्षित पड़ा है।
उसी मकान में रहते हुए मनु गांधी के एपेंडिक्स का दर्द शुरू हुआ था। पहले तो गांधी ने उनका उपचार प्राकृतिक चिकित्सा के जानकारों से करवाया। उन लोगों ने साफ कह दिया कि यह एपेंडिक्स का दर्द नहीं है। मगर जब एलोपेथी चिकित्सकों ने एपेंडिसाईटिस की पुष्टि की तो वे मजबूरन तैयार हो गये। ओपरेशन थियेटर में भी वे सिर्फ इसी वजह से थे, क्योंकि वे देखना चाहते थे कि कौन सही है।
ओपरेशन पटना के डॉक्टर भार्गव ने किया। उनकी भतीजी भी पीएमसीएच में डॉक्टर थीं वे मनु गांधी का खास ख्याल रखती थीं। ओपरेशन के बाद जब मनु को प्राइवेट रूम में ले जाया जाने लगा तो गांधी जी ने साफ मना कर दिया यह कहते हुए कि यह तो गरीब की बेटी है। मगर डॉक्टरों ने कहा कि इनकी जेनरल वार्ड में रहने से काफी भीड़ होने लगेगी। तब बापू माने।
मनु अस्पताल में 5 से 6 दिन रहीं। गांधी लगभग रोज उन्हें देखने आते। उनके आने पर मरीज भी अपने बिस्तर से उठकर मनु के कमरे के पास पहुँच जाते। तब डॉक्टरों के कहने पर गांधी रोज खुद ही अस्पताल के वार्डों का चक्कर लगाने लगे। इसके बाद मरीजों की भीड़ कम हुई।