- होम
- राष्ट्रीय+
- वीडियो
- राज्य+
- उत्तर प्रदेश
- अम्बेडकर नगर
- अमेठी
- अमरोहा
- औरैया
- बागपत
- बलरामपुर
- बस्ती
- चन्दौली
- गोंडा
- जालौन
- कन्नौज
- ललितपुर
- महराजगंज
- मऊ
- मिर्जापुर
- सन्त कबीर नगर
- शामली
- सिद्धार्थनगर
- सोनभद्र
- उन्नाव
- आगरा
- अलीगढ़
- आजमगढ़
- बांदा
- बहराइच
- बलिया
- बाराबंकी
- बरेली
- भदोही
- बिजनौर
- बदायूं
- बुलंदशहर
- चित्रकूट
- देवरिया
- एटा
- इटावा
- अयोध्या
- फर्रुखाबाद
- फतेहपुर
- फिरोजाबाद
- गाजियाबाद
- गाजीपुर
- गोरखपुर
- हमीरपुर
- हापुड़
- हरदोई
- हाथरस
- जौनपुर
- झांसी
- कानपुर
- कासगंज
- कौशाम्बी
- कुशीनगर
- लखीमपुर खीरी
- लखनऊ
- महोबा
- मैनपुरी
- मथुरा
- मेरठ
- मिर्जापुर
- मुरादाबाद
- मुज्जफरनगर
- नोएडा
- पीलीभीत
- प्रतापगढ़
- प्रयागराज
- रायबरेली
- रामपुर
- सहारनपुर
- संभल
- शाहजहांपुर
- श्रावस्ती
- सीतापुर
- सुल्तानपुर
- वाराणसी
- दिल्ली
- बिहार
- उत्तराखण्ड
- पंजाब
- राजस्थान
- हरियाणा
- मध्यप्रदेश
- झारखंड
- गुजरात
- जम्मू कश्मीर
- मणिपुर
- हिमाचल प्रदेश
- तमिलनाडु
- आंध्र प्रदेश
- तेलंगाना
- उडीसा
- अरुणाचल प्रदेश
- छत्तीसगढ़
- चेन्नई
- गोवा
- कर्नाटक
- महाराष्ट्र
- पश्चिम बंगाल
- उत्तर प्रदेश
- शिक्षा
- स्वास्थ्य
- आजीविका
- विविध+
- Home
- /
- Top Stories
- /
- हम न हंस पा रहे हैं, न...
हम न हंस पा रहे हैं, न रो पा रहे बेसुरा राग है, बस वही गा रहे ..
आज 30 अगस्त है । अर्थात् प्रथम पांक्तेय वरिष्ठ नवगीतकार डाॅ. योगेन्द्र दत्त शर्मा का जन्मदिन। इस अवसर पर उनके विपुल साहित्य से किसी एक रचना का चयन करना बहुत कठिन है। फिर भी उनके ताज़ा नवगीतों से एक रचना का चयन करके पटल पर प्रस्तुत है । डॉ. योगेन्द्र दत्त शर्मा जी को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई !
□ गीत-योगेन्द्र दत्त शर्मा
.......
हम न हंस पा रहे हैं
न रो पा रहे
बेसुरा राग है, बस वही गा रहे !
सिलसिलेवार
चेहरे बदलती हुई
अनवरत घट रही एक ही त्रासदी
देख भी हम रहे
भोग भी हम रहे
याद करते हुए मौन नेकी-बदी
राह अनजान है
हमसफर अजनबी
आंख मूंदे हुए बस चले जा रहे !
पथ-प्रदर्शक हुआ गुम
किसी मोड़ पर
रह गये हम हतप्रभ खड़े दिग्भ्रमित
वंचना का घटाटोप
चारों तरफ
कर रही विष-बुझी यह हवा संक्रमित
लग रहा है
बरसकर रहेगा कहर
क्रूर बादल लगातार मंडरा रहे !
दर्द की कंदरा में
धंसे जा रहे
हिम-जड़ित चोटियों से फिसलते हुए
पी रहे हैं
अपचनीय आसव सतत
शब्द की अर्थ-ध्वनि को निगलते हुए
अब उगे, तब उगे सूर्य
यह सोचकर
अब अंधेरे बियाबान भी भा रहे !
-- © योगेन्द्र दत्त शर्मा
(प्रस्तोता-जगदीश पंकज)