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बेल पका तो कौआ के बाप का क्या ? - डा रक्षपाल सिंह

Shiv Kumar Mishra
22 Feb 2021 7:52 AM GMT
बेल पका तो कौआ के बाप का क्या ? - डा रक्षपाल सिंह
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इनके अलावा शेष प्रादेशिक माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से संबद्ध सहायता प्राप्त व सरकारी माध्यमिक स्कूलों से अपनी शिक्षा प्राप्त करने वाले ही होते हैं।

अलीगढ़ । उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री माननीय योगी आदित्यनाथ जी द्वारा प्रतियोगी परीक्षाओं के लिये शुभारंभ की गई महत्वपूर्ण अभ्युदय योजना प्रदेश के आर्थिक रूप से सामान्य ऐसे मेधावी अभ्यर्थियों के लिये वरदान सिद्ध होगी जो अपनी-अपनी गुणवत्तापरक स्कूली व उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद इस सदी में आवश्यक हो चुकी कोचिंग व्यवस्था का खर्च वहन करने में सक्षम व समर्थ नहीं हो पाते। 80%से अधिक ऐसे मेधावी छात्र उन परिवारों से होते हैं जिनके अभिभावक अपने बच्चों को प्राथमिक शिक्षा स्तर से उच्च शिक्षा स्तर तक गुणवत्तापरक शिक्षा दिलवाने के प्रति बेहद जागरूक होते हैं एवं अधिकांशत: ये शहरी क्षेत्रों के सीबीएसई स्कूलों से ताल्लुक रखते हैं । इनके अलावा शेष प्रादेशिक माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से संबद्ध सहायता प्राप्त व सरकारी माध्यमिक स्कूलों से अपनी शिक्षा प्राप्त करने वाले ही होते हैं।

असलियत में वस्तुस्थिति यह है कि प्रदेश के लगभग 10-12 प्रतिशत बच्चे ही सीबीएसई अथवा आईसीएसई से सम्बद्ध स्कूलों से तथा शेष में से अधिकांश ग्रामीण अंचल के बेसिक शिक्षा परिषद व प्रदेशीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के स्कूलों से शिक्षा प्राप्त करते हैं। एक ओर जहाँ सीबीएसई एवं आईसीएसई के अधिकांश स्कूलों में गुणवत्तापरक शिक्षा प्रदान की जाती है, तो वहीँ दूसरी ओर बेसिक शिक्षा बोर्ड व प्रादेशिक माध्यमिक बोर्ड के कुछ सरकारी व सहायता प्राप्त स्कूलों को छोड़कर शेष स्कूल विशेष तौर पर अधिकांश निजी स्कूल बदहाली के शिकार हैं जिनकी गुणवत्ता का अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है।

उल्लेखनीय है कि फिलहाल में अभ्युदय योजना के तहत प्रतियोगी परीक्षाओं की मुफ्त कोचिंग के लिये 484852 युवाओं द्वारा दी गई ओनलाईन परीक्षा से 50192 अर्थात लगभग 10% का ही चयन होना स्पष्ट संकेत देता है कि शिक्षा तंत्र में गुणवत्ता की काफी कमी है।

हकीकत यह है कि यूपी बोर्ड से सम्बद्ध अधिकांश स्कूलों विशेष रूप से 75% में से लगभग 70% ग्रामीण अंचल के निजी स्कूलों में पठन पाठन बदहाल रहता है और ये ही स्थिति ग्रामीण क्षेत्रों स्थित निजी महाविद्यालयों की शिक्षा व्यवस्था की वर्तमान 21वीं सदी में चल रही है। ऐसी अफसोसजनक स्थिति में ग्रामीण क्षेत्रों से अपनी समूची शिक्षा की रस्म अदायगी करने वाले विद्यार्थीगण गुणवत्तापरक शिक्षा पाने से वंचित होते रहे हैं और अब माननीय मुख्यमंत्री जी की महत्वपूर्ण अभ्युदय योजना के लाभ से भी ग्रामीण क्षेत्र के अधिकांश डिग्रीधारी युवा वंचित ही रहेंगे। जब तक ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित बेसिक ,माध्यमिक एवं उच्च शिक्षण संस्थानों की शिक्षा को गुणवत्तापरक नहीं बनाया जायेगा ,तब तक ग्रामीण अंचलों के लाखों डिग्रीधारी युवाओं के लिये मुख्यमंत्री जी की स्वप्निल अभ्युदय योजना बेल पका तो कौआ के बाप का क्या? कहावत ही चरितार्थ होती रहेगी अर्थात बेमानी ही रहेगी।

( लेखक प्रख्यात शिक्षाविद, धर्म समाज कालेज, अलीगढ़ के पूर्व विभागाध्यक्ष और डा.बी आर अम्बेडकर विश्व विद्यालय आगरा शिक्षक संघ के पूर्व अध्यक्ष हैं।)

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