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- कैप्टन के पास विकल्प...
बलवंत तक्षक
मुख्यमंत्री पद से हटाए गए कैप्टन अमरिंदर सिंह के पास विकल्प क्या हैं? जिस तरीके से कैप्टन को मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ने के लिए मजबूर किया गया, उसकी कैप्टन तो क्या, किसी ने भी उम्मीद नहीं की थी. कैप्टन ने कहा भी है कि तीन हफ्ते पहले उन्होंने पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी से अपने इस्तीफे की पेशकश की थी, लेकिन उन्हें मना कर दिया गया था. वे इस बात से आहत हैं कि मोदी लहर को रोकते हुए पंजाब में कांग्रेस को 77 सीटों पर जीत दिलवा कर सत्ता में लाने के बावजूद उन्हें जलील किया गया.
कैप्टन सबसे ज्यादा नाराज कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू से हैं. उन्होंने अपने मन की टीस को छुपाया भी नहीं है. साफ़ कहा है कि वे आने वाले विधानसभा चुनाव में सिद्धू को जीतने नहीं देंगे. सिद्धू को मुख्यमंत्री नहीं बनने देना ही जैसे उनका लक्ष्य है. सिद्धू के खिलाफ मजबूत उम्मीदवार मैदान में उतारने की उनकी घोषणा को लोग कैप्टन के खुद उनके खिलाफ खड़े होने से जोड़ कर देखने लगे हैं. लोग जानते हैं कि कैप्टन ने देश में मोदी लहर के बावजूद पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली को अमृतसर लोकसभा सीट पर एक लाख से ज्यादा वोटों से मात दी थी. कैप्टन के लिए अगला चुनाव 'करो या मरो' का है.
लेकिन सवाल फिर वही है कि कैप्टन के पास विकल्प क्या हैं? जिस ढंग से वे सिद्धू को देश और पंजाब के लिए खतरा करार दे रहे हैं, उससे लगता है कि वे भाजपा को सिद्धू के खिलाफ एक चुनावी मुद्दा दे रहे हैं. कैप्टन जिस ढंग से सिद्धू के खिलाफ आक्रामक रुख अपना रहे हैं, उसे देखते हुए अंदाज लगाया जा रहा है कि क्या वे भाजपा में जा सकते हैं? कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन की वजह से पंजाब में भाजपा की हालत इस समय सबसे ज्यादा खराब है। सवाल है कि ऐसे में कैप्टन को भाजपा से क्या फायदा होगा? माना जा रहा है कि भाजपा पश्चमी उत्तरप्रदेश में किसान आंदोलन के चलते परेशानी में है.
कैप्टन के ताल्लुकात भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व से अच्छे हैं. अगर मौजूदा हालात में कैप्टन केंद्र सरकार को कृषि कानून वापस लेने के लिए राजी कर लेते हैं तो स्थितियां बदल सकती हैं. राजनीति में कभी भी कुछ भी संभव है. अगर कृषि कानून वापस हो जाएं और कैप्टन भाजपा में नहीं जाएं तो भी नई पार्टी क गठन कर कोई चुनावी समझौता कर सकते हैं. जो भी हो, कैप्टन की पहली प्राथमिकता किसी भी तरफ से सिद्धू को हराना और कांग्रेस को सत्ता में आने से रोकना है.
अभी कांग्रेस आलाकमान की तरफ से चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनानए जाने के फैसले को मास्टर स्ट्रोक करार दिया जा रहा है. इस फैसले से कांग्रेस ने सचमुच विपक्षी दलों से एक बड़ा मुद्दा छीन लिया है. भाजपा जहां पूर्व केंद्रीय मंत्री विजय सांपला को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर अनुसूचित जाति के वोट अपनी तरफ खींचने की रणनीति पर काम कर रही थी, वहीं अकाली दल ने बसपा से चुनावी समझौता कर अनुसूचित जाति के विधायक को उप मुख्यमंत्री का पद देने का ऐलान किया था. आम आदमी पार्टी तो अभी मुख्यमंत्री पद का चेहरा ढूंढ़ने में ही लगी है.
ऐसे में कांग्रेस ने पहल करते हुए कैप्टन की जगह अनुसूचित जाति के युवा सिख विधायक चन्नी को मुख्यमंत्री बना कर विपक्षी दलों से यह मुद्दा ही छीन लिया है. इस एक फैसले की वजह से विपक्षी दल अब नए सिरे से अपनी चुनावी रणनीति तय करने को मजबूर हो गए हैं. कैप्टन भी इस बात को समझ रहे है कि अभी चन्नी के खिलाफ कोई प्रतिक्रिया देना फायदेमंद नहीं है. जाहिर है कि राज्य के करीब 32 फीसदी अनुसूचित जाति के मतदाताओं को वे नाराज नहीं करना चाहेंगे. इसलिए वे सिर्फ सिद्धू पर ही निशाना साध रहे हैं. पंजाब की कुल 117 विधानसभा सीटों में से 34 सीटें आरक्षित हैं. आने वाले दिनों में अगर कैप्टन केंद्र सरकार को कृषि कानून वापस लेने के लिए राजी कर लेते हैं तो राज्य की राजनीति में उनका ग्राफ बढ़ जाएगा और वे इस स्थिति में होंगे कि कांग्रेस में समर्थक विधायकों को अपने पाले में लेकर सरकार गिरवा दें और पंजाब में राष्ट्रपति शासन लागू हो जाए. इससे बाजी उनके हाथ में आने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी.
चुनावी वादे पूरे नहीं करने की वजह से जनता में सत्ता विरोधी भावना देखी जा रही थी. सिद्धू भी चुनावी वादों को लेकर कैप्टन को कटघरे में खड़ा करते रहे हैं, लेकिन कुर्सी गंवाने के साथ ही लोगों का फोकस कैप्टन से हट गया है और वे सोचने लगे हैं कि आने वाले चार महीनों में चन्नी क्या करेंगे? क्या चन्नी 32 फीसदी अनुसूचित जाति के मतदाताओं को कांग्रेस की तरफ मोड़ पाएंगे? यह भरोसा कांग्रेस को भी नहीं है. यही वजह है कि जातीय संतुलन साधने के इरादे से जट सिख सुखजिंदर सिंह रंधावा और हिंदू चेहरे ओमप्रकश सोनी को उप मुख्यमंत्री की कुर्सी दी गई हैं.
कांग्रेस ने चन्नी को पंजाब का 'कैप्टन' तो बना दिया है, लेकिन यह डर भी अपनी जगह सही है कि क्या अनुसूचित जाति के मुख्यमंत्री को जट सिख और शहरी हिंदू मतदाता स्वीकार कर पाएंगे? पंजाब में यह पहला मौका है, जब किसी जट सिख को नजरअंदाज कर अनुसूचित जाति के रामदासिया सिख को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाया गया है. क्या चन्नी लोगों को यह भरोसा दिलाने में कामयाब हो पाएंगे कि वे चार महीने के मुख्यमंत्री नहीं हैं ? अनुसूचित जाति के मतदाताओं को चन्नी कैसे विशवास दिलाएंगे कि अगर चुनावों के बाद कांग्रेस सत्ता में लौटती है तो मुख्यमंत्री की कुर्सी सिद्धू के पास नहीं, उन्हीं के पास रहेगी?
सब जानते हैं कि राजनीति में कोई किसी के साथ नहीं होता. जिस रंधावा ने कैप्टन को हटवाने में सिद्धू का साथ दिया, सिद्धू ने उन्हीं को मुख्यमंत्री नहीं बनने दिया. लड्डू बंटने और बधाइयां लेने के बीच ही एक झटके में कुर्सी रंधावा के हाथ से निकल गई. अब जिस ढंग से सिद्धू साये की तरह चन्नी के साथ घूम रहे हैं, इससे वे लोगों को यही संदेश दे रहे हैं कि उन्होंने ही चन्नी को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाया है और चुनावों के बाद वे इस कुर्सी को हासिल कर लेंगे. कैप्टन भी इस बात को समझते हैं, इसीलिए वे सिद्धू को पाक परस्त करार देते हुए पंजाब के लोगों में उनके खिलाफ माहौल बनाने के प्रयास कर रहे हैं.
कुल मिलाकर यह कि कांग्रेस को इस समय विपक्षी दलों से ज्यादा डर, कैप्टन से ही है. जहां विपक्षी दल कैप्टन के अगले कदम का इंतजार कर रहे हैं, वहीं कैप्टन भी खुद को कांग्रेस विरोधी रणनीति के लिए तैयार करने में जुटे हैं. इतना तय है कि कैप्टन अपने सिसवां फार्म हाउस में बैठ कर चुपचाप चुनावी तमाशा देखने वालों में नहीं हैं. आगे क्या करेंगे? यह जानने के लिए थोड़ा इंतजार करना होगा.