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- बेटे से मिलकर शबनम फूट...
हम एक ऐसे व्यक्ति से परिचित हूं जिसका नाम विभिषण है, हालांकि सामान्यतः लोग अपने बच्चों का यह नाम नहीं रखते। शबनम तो खूबसूरत नाम है।ओस जिसकी बूंदें मोतियों की मानिंद चमकती हैं,जो छू जाने भर से पिघलकर वजूद खो देती हैं,उसी ओस के उर्दू पर्याय शबनम से बेटी का नामकरण करने वाले मास्टर शौकत को सपने में भी अहसास नहीं होगा कि एक दिन उसके कुल का नृशंस नाश वही बेटी कर देगी।
अमरोहा की हसनपुर तहसील के गांव बावनखेड़ी में 14/15 अप्रैल 2008 की वह रात कत्ल की रात थी। शबनम ने अपने प्रेमी सलीम के साथ मिलकर अपने पिता, मां,दो भाई, भाभी, फुफेरी बहन और मासूम भतीजे को कुल्हाड़ी से काट डाला था। पिता शौकत शिक्षक थे तो पुत्री शबनम शिक्षामित्र। 'बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ' का नारा तब वजूद में भी नहीं था।इस घटना को जेहन में रखने वालों को याद होगा कि पुलिस पूछताछ में शबनम ने बताया था कि इतने लोगों को एक साथ कत्ल करते हुए प्रेमी सलीम के हाथ कांप गये तो शबनम ने ही मोर्चा फतह किया था।
इस घटना ने रक्त संबंधों की बुर्जियों को जमींदोज कर दिया था। शबनम और उसके प्रेमी ने राष्ट्रपति तक से जान की भीख मांगी। उनकी दया याचिका खारिज हो चुकी है। फांसी की तारीख मुकर्रर होना बाकी है। हिंदुस्तान की तारीख में फांसी कोई अनोखी बात नहीं है मगर अपने परिवार के सगे सात लोगों को अपने इश्क की खातिर मौत की नींद सुलाने वाली बेटी को फांसी पर लटकते देखने की ख्वाहिश हर किसी को है। शबनम पहली औरत होगी जिसे फांसी दी जाएगी।हो सकता है कि उसके लिए कोई प्रशांत भूषण रात के तीसरे प्रहर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खुलवाये।
यूपी के अमरोहा में बामनखेड़ी कांड में दोषी शबनम की फांसी की संभावनाओं के बीच उनके बेटे ताज ने राष्ट्रपति से अपनी मां की फांसी की सजा माफ करने की गुहार लगाई है। शबनम के बेटे ताज ने बताया, "मेरी राष्ट्रपति जी से अपील है कि मेरी मां को फांसी न दें। मैं उनसे बहुत प्यार करता हूं।"
क्यों रोई शबनम
फांसी का फंदा उसके करीब है। प्रेमी के साथ मिलकर अपने ही परिवार के सात सदस्यों का कत्ल करने वाली शबनम की हैवानियत सुर्खियों में है। बुलंदशहर के एक दंपती ने इंसानियत दिखाते हुए उस मासूम को अपनाया, जिसे कोई गोद लेना तो दूर देखना भी नहीं चाहता था। जेल में पैदा हुए शबनम के इस बेटे की अब यह दंपती परवरिश कर रहा है। लड़का एक स्कूल में छठी में पढ़ रहा है। बच्चा दंपती को छोटी मम्मी-पापा कहता है।
13 दिसंबर 2008 को शबनम ने मुरादाबाद की जेल में एक बेटे को जन्म दिया था, जिसे बुलंदशहर के दंपती ने गोद लिया हुआ है। दैनिक जागरण में छपी खबर के मुताबिक, कुछ दिन पहले ही दंपती उसे रामपुर जेल में बंद शबनम से मिलवाने ले गया था। जब मां ने बेटे को देखा तो फफक कर रोने लगी और काफी देर तक शबनम बेटे से लिपटकर रोती रही। शबनम बेटे से बार-बार कह रही थी कि पढ़-लिखकर अच्छा इंसान बनना। मैं एक बुरी मां हूं इसलिए मुझे कभी याद मत करना।
दंपती के मुताबिक, शायद उसे अपनी मौत का अहसास हो गया है। जेल से लौटते समय बच्चे ने दंपती से पूछा कि पापा, बड़ी मम्मी क्यों रो रही थीं। मुझे बार-बार क्यों चूम रही थीं। ऐसा क्यों कह रही थीं कि पढ़-लिखकर अच्छा इंसान बनना। दंपती कहते हैं कि तारीख तय होने पर वह बच्चे को उसकी मां से अंतिम बार मिलवाने जरूर ले जाएंगे।
शबनम का बेटा 6 साल 7 माह और 21 दिन मां के साथ जेल में रहा था। बाल कल्याण समिति ने बच्चे की अच्छी परवरिश को लेकर 30 जुलाई 2015 को उसे बुलंदशहर के इस दंपती को सौंप दिया था। तब से बच्चा परिवार का हिस्सा है।
शबनम यूपी के अमरोहा जिले के बावनखेड़ी गांव की रहने वाली है। उसने अपने प्रेमी सलीम के साथ मिलकर माता-पिता सहित सात लोगों की कुल्हाड़ी से काटकर हत्या कर दी थी। इस वारदात को 14 और 15 अप्रैल 2008 की रात को अंजाम दिया गया था।