राष्ट्रीय

कोरोना वैक्सीन पर फ़तवे से देवबंद ने क्यों झाड़ा पल्ला!

Yusuf Ansari
29 Dec 2020 9:54 AM GMT
कोरोना वैक्सीन पर फ़तवे से देवबंद ने क्यों झाड़ा पल्ला!
x
ऐसे में मुसलमान दारुल उलूम देवबंद की तरफ़ देख रहा है। वो कह रहा हैं कि उसने कोई फ़तवा नहीं दिया है। देवबंद की ये दुविधा समझ से परे है।

देश में कोरोना वैक्सीन के आने से पहले ही मुस्लिम समाज में इसके हलाल या हराम होने को लेकर बहस छिड़ी हुई है। ऐसे में इस्लामी दुनिया में अपनी ख़ास जगह और साख़ रखने वाले दारुल उलूम देवबंद ने इस मामले पर फ़तवे से पल्ला झाड़ लिया है। इस्लामी संस्था ने रविवार को बाक़ायदा बयान जारी करके कहा कि उसने कोरोना वैक्सीन पर कोई फ़तवा जारी नहीं किया है। ये बयान जारी करके देवबंद ने कोरोना वैक्सीन को लेकर छिड़ी हलाल-हराम की बहस से ख़ुद को अलग करने की कोशिश की है।

देवबंद ने क्यों किया फ़तवे से इंकार?

दरअसल पिछले कई दिन से सोशल मीडिया पर एक फ़तवा वायरल हो रहा था। इसमें दावा किया जा रहा था कि दारुल उलूम देवबंद ने कोरोना वैक्सीन को हराम क़रार दिया है क्योंकि इसमें पोर्क जिलेटिन का इस्तेमाल किया गया है। लिहाज़ा मुसलमान इस वैक्सीन को न लगवाएं। इससे उन मुस्लिम संगठनों की मुहिम को बल मिल रहा था जो कोरोना वैक्सीन में पोर्क जिलेटिन इस्तेमाल होने का दावा करते हुए इसे हराम क़रार देकर मुसलमानों से इस वैक्सीन से दूर रहने को कह रहे हैं। लिहाज़ा दारुल उलूम देवबंद को बयान जारी करके अपनी स्थिति साफ़ करनी पड़ी।

देवबंद का दावा, नहीं दिया फतवा

दारुल उलूम देवबंद ने अपने बयान में यह तो कहा कि उसने कोई फ़तवा जारी नहीं किया है। लेकिन यह साफ़ नहीं किया कि अगर वैक्सीन में पोर्क जिलेटिन के इस्तेमाल की बात सच निकली तो मुसलमान उसे लगवाएं या नहीं? इस पर दारुल उलूम देवबंद के आधिकारिक प्रवक्ता अशरफ़ उस्मानी ने कहा है देश में अभी वैक्सीन आई ही नहीं हैं। अभी यह भी साफ़ नहीं हुआ है कि उसमें किस-किस चीज़ का इस्तेमाल हुआ है तो इस बारे में कुछ भी कहना मुनासिब नहीं है। ख़ासकर फतवा देना तो बिल्कुल भी उचित नहीं है।

फोन पर बात करते हुए अशरफ़ उस्मानी ने ये भी कहा कि दारुल उलूम देवबंद से अभी तक किसी ने कोरोना वैक्सीन को लेकर कोई सवाल नहीं पूछा है। अगर कोई वैक्सीन में इस्तेमाल की गई चीज़ों का ब्यौरा देकर सवाल पूछेगा तो दारुल इफ्ता (फ़तवों का जवाब देने वाला विभाग) उसका जवाब ज़रूर देगा। उन्होंने यह भी साफ़ड कर दिया ऐसे मामलों पर दारुल उलूम देवबंद कभी भी अपनी तरफ़ से कोई फ़तवा जारी नहीं करता हैं। फ़तवा सिर्फ़ लिखित सवाल के जवाब में ही दिया जाता है। इस मामे में भी सवाल आने पर फ़तवा दिया जाएगा।

बाध्यकारी नहीं होता फ़तवा

बता दें कि फ़तवा को कोई आदेश नहीं बल्कि इस्लाम से जुड़े मसलों पर किसी एक मुफ़्ती या संयुक्त रूप से कई मुफ़्तियों की राय होती है। ये राय पूछे गए सवाल में शामिल बिंदुओं पर क़ुरआन और हदीस की रोशनी में ही दी जाती है। लेकिन ये राय सवाल पूछने वालों पर बाध्याकारी नहीं होती। यानि इसे मानना सवाल पूछने वाले या अन्य लोगों के लिए क़ताई ज़रूरी नहीं होता। ये उनकी मर्ज़ी पर निर्भर करता है कि उसे माने या नहीं। इस लिए ये मान लेना एकदम ग़लत है कि किसी इस्लामी इदारे या उलेमा के दिए फ़तवे को मानकर उस पर अमल करने के लिए सारे मुसलमान बाध्य हैं।

रज़ा अकादमी कर रही है वेक्सीन का विरोध

मुंबई की रज़ा एकादमी ने 9 मुस्लिम संगठनों ने ऐलान कर दिया है कि पहले उससे जुड़े मुफ्ती इस बात जांच करेंगे कि वैक्सीन में पोर्क जिलेटिन का इस्तेमाल हुआ है या नहीं। जब यह सुनिश्चित हो जाएगा कि इसमें पोर्क जिलेटन का इस्तेमाल नहीं हुआ है उसके बाद ही मुसलमान इसे लगवाएंगे। हालांकि इस्लामिक स्कॉलर अतीक़ुर्रहमान रहमान और लखनऊ के मौलाना ख़ालिद रशीद फिरंगी महली जैसे कई उलेमा ने मुसलमानों से अफ़वाहों को दरकिनार करके बेफ़िक्र होकर वैक्सीन लगवाने की सलाह दी है। उन्होंने कहा कि जान की हिफाज़त सबसे बड़ी चीज है। लिहाज़ा सभी मुसलमान कोरोना वैक्सीन लगवाएं।

असमंजस में उलेमा

कोरोना वैक्सीन को लेकर दुनियाभर के मौलाना-मुफ्तियों में असमंजस बना हुआ है। सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह हलाल विधि से बनी है या हराम तरीक़े से? अगर इसमें सुअर के मांस या चर्बी का इस्तेमाल हुआ है तो बनी है तो इसे लगवाना जायज़ होगा या नहीं? सबसे ज़्यादा मुस्लिम आबादी वाले देश इंडोनेश्या में भी इस पर बवाल मचा हुआ है। राष्‍ट्रपति जोको विडोडो साफ़ कर दिया है कि इसके इस्तेमाल से पहले वो यह सुनिश्चित कर लेना चाहते हैं कि वैक्सीन पूरी तरह हलाल है। 2018 में इंडोनेशिया उलेमा काउंसिल ने एक फ़तवा जारी कर ख़सरे के टीके को हराम घोषित किया था।

अरब देशों में लग रही है वैक्सीन

वैक्सीन के हलाल-हराम को लेकर छिड़ी बहस के बीच सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात जैसे कई इस्लामी देशों में वैक्सीन लगनी शुरु हो गई है। संयुक्त अरब अमीरात की शीर्ष इस्लामी काउंसिल ने वैक्सीन में पोर्क जिलेटिन के इस्तेमाल होने की स्थिति में भी मुसलमानों के लिये जायज़ करार दे दिया है। काउंसिल के अध्यक्ष शेख़ अब्दुल्ला बिन बय्या ने कहा कि अगर कोई और विकल्प नहीं है तो कोरोना वैक्सीन को इस्लामी पाबंदियों से अलग रखा जा सकता है क्योंकि पहली प्राथमिकता 'मनुष्य का जीवन बचाना है। इसमें पोर्क-जिलेटिन को दवा के रूप में इस्तेमाल किया जाना है न कि खाने के तौर पर।

देवबंद ने क्यों नहीं दिया ऐसा फ़तवा

यहां सबसे अहम सवाल यह है कि दारुल उलूम देवबंद इस पूरी बहस से पल्ला झाड़ कर ख़ुद को कोरोना वैक्सीन के हलाल-हराम विवाद से दूर क्यों कर रहा है। क्या इस बारे में उसकी कोई राय नहीं है? अशरफ़ उस्मानी से पूछा गया कि दारुल उलूम देवबंद संयुक्त अरब अमीरात की इस्लामी काउंसिल का तरह साफ़ तौर पर मुसलमानों की रहनुमाई क्यों नहीं करता? वो साफ़ तौर पर क्यों नहीं कहता कि वैक्सीन में पोर्क जिलेटिन के इस्तेमाल की सूरत में मुसलमानों के वैक्सीन लगवानी चाहिए या नहीं? अशरफ़ उस्मानी इस सवाल को यह कहकर टाल गए कि जब सवाल आएगा तो जबाव दिया जाएगा।

दुविधा में क्यों है देवबंद?

मुंबई की रज़ा अकादमी और उसके साथ 8 अन्य संगठनों की मुहिम पर भी दारुल उलूम देवबंद ने मुंह बंद कर लिया है। उसका ये रवैया हैरान करने वाला है। ये समझ से परे है कि जो इस्लामी संस्था दीन के मामलों के साथ ही सामाजिक और आर्थिक मुद्दों पर दुनिया भर के मुसलमानों क रहनुमाई का दावा करती है वो इतने अहम मुद्दे पर ख़ामोश क्यों है। रज़ा अकादमी जैसे संगठनों ने देश भर के मुसलमानों में असमंजस पैदा कर दिया है। ऐसे में मुसलमान दारुल उलूम देवबंद की तरफ़ देख रहा है। वो कह रहा हैं कि उसने कोई फ़तवा नहीं दिया है। देवबंद की ये दुविधा समझ से परे है।

यूएई के दिखाए रास्ते पर बढ़े

जब दारुल उलूम देवबंद को मुसलमानों की रहनुमाई के लिए आगे आना चाहिए तब उसका ख़ामोशी अख़्तियार कर लेना सनझ से परे है। ताज्जुब तो इस बात का है कि संयुक्त अरब अमीरात की इस्लामी कौंसिल के फ़तवे पर भी दारुल उलूम देवबंद की कोई राय नहीं है। वो अभी अगर-मगर में ही उलझा हुआ है। दारुल उलूम देवबंद हो या फिर नदवातुल उलूम लखनऊ ऐसी संस्थाओं को ऐसे मुद्दों पर बेबाकी से अपनी राय सामने रख कर मुसलमानों का रहनुमाई करनी चाहिए। पल्ला झाड़ने से काम नहीं चलेगा। सच तो है कि भारतीय उलेमा को देर-सबेर संयुक्त अरब अरब अमीरात के दिखाए रास्ते पर ही चलना पड़ेगा तो फिर अभी से क्यों न इसी रास्ते पर चल कर असमंजस को ख़त्म किया जाए।

Next Story