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यूपी का अनुदेशक बेबस और लाचार क्यों? कब मिलेगा न्याय
उत्तर प्रदेश में जूनियर हाईस्कूल में सन 2013 में एक संविदा के पद पर अनुदेशक का पद सृजन किया गया। इस अनुदेशक के चयन की प्रक्रिया हाईकोर्ट की निगरानी मे गठित जिला स्तरीय कमेटी के द्वारा की गई। जिसमें सभी सरकारी मानक पूर्ण किए गए। ये अनुदेशक कला , कृषि , विज्ञान , कंप्यूटर के पद पर रखे गए। उस समय प्रदेश के मुख्यमंत्री के पद पर अखिलेश यादव विराजमान थे। उन्होंने इस पद को मंजूरी दी।
उसके बाद इस अनुदेशक ने लगातार जूनियर हाईस्कूल को ऊंचाइयों पर ले जाने यक अथक प्रयास किया। और एक छात्रों को बढ़िया मुकाम मिला भी। छात्र आज भी अनुदेशक शिक्षकों के स्कूल न आने पार स्कूल भी नहीं आते है। हालांकि अभि दो साल मे स्कूल खुले है काम और कोरोना का असर रहा।
इस नियुक्ति मे सबसे दिलचस्प मामला यह है कि जब अनुदेशक की नियुक्ति हो रही थी तब इनकी नियुक्ति उसी विकास खंड में होनी थी जहां यह तैनात थे। लेकिन अधिकारियों की मनमानी के चलते इन्हे दूरस्थ विकास खंडों में तैनाती दी गई। इसके बाद लगातार इनके ट्रांसफर करके समायोजन की बात चलती रही लेकिन नतीजा ढ़ाक के तीन पात रहा और ये अनुदेशक आज भी 80 से 100 किलोमीटर की दूरी महज 7000 हजार के वेतनमान मे तय करता है। ठीक उसी तरह जिस तरह कोर्ट मे बैठा जज गवाह के इंतजार मे तारीख पर तारीख देता रहता है । लेकिन गवाह और सबूत नहीं मिल पाते है। ठीक उसी तरह नियमितीकरण की आस मे बेबस बेसहारा अनुदेशक अपनी ड्यूटी कर्ज लेकर दे रहा है।
अब दूसरा समस्या इनका ग्यारह माह बाद नवीनीकरण का आता है। उसके बाद इस अनुदेशक का दोहन शुरू होता है। अब लाचार बेसहारा अनुदेशक अपने प्रधानाध्यापक से लेकर उप बेसिक शिक्षा अधिकारी के सामने दंडवत करता नजर आता है और कभी कभी भेंट पूजा भी चढ़ानी पड़ती है। लेकिन उसकी इस समस्या से भी निजात दिलाने वाली कोई सरकार नहीं आई। सबसे पहले अखिलेश सरकार वादा करती रही और उसके बाद 2017 में सत्ता मे आई बीजेपी सरकार ने तो इनको नियमितीकरण का पक्का आश्वाशन भी दिया लेकिन नतीजा वही सिर्फ जीरो निकला। हालांकि इस पर अब पूरे प्रदेश मे चर्चा जरूर हो रही है। अब योगी पार्ट 2 में अनुदेशक इनकी तरफ देख रहा है शायद कुछ मिल जाए।
अब तीसरी समस्या इनकी नौकरी हर समय खतरे मे रहती है जब भी स्कूल मे 100 बच्चे से कम होंगे तब ये स्कूल से निकाल दिए जाएंगे लिहाजा ये हेमशा स्कूल मे बच्चों की संख्या को लेकर सजग रहते है। हालांकि नई सरकार ने स्कूल चलो अभियान की शुरुआत की है। अब देखना यह होगा अनुदेशक के कष्ट कटने की शुरुआत कब होती है।
अब इनके वेतन पर बात करते है। इनको जब नियुक्ति मिली तब भी इनका वेतन 7000 हजार था और आज मार्च 2022 में भी इनका वेतन 7000 हजार है। न महंगाई बढ़ी न भत्ता बढ़ा सरकार इन्हे आज भी 7000 हजार मे प्रयोग कर रही है। मजेदार एक और वाकया सुनिए अखिलेश सरकार ने जब इनका वेतन केंद्र सरकार के द्वारा न्यूनतम वेतन मान 8400 कर दिया तो आने वाली बीजेपी सरकार ने इन सबसे वो बढ़ा हुआ वेतन 1400 रुपये रिकवरी और कर लिया । जबकि बीजेपी के ट्विटर हेंडील से इनको 17000 हजार वेतन देने का ऐलान भजी किया जया चुका है। और तत्कालीन वेसिक शिक्षा मंत्री अनुपमा जायसवाल ने भी इनकी वेतन वृद्धि की जो आज तक क्यों लागू नहीं की गई कोई नहीं बटा सकता है।
जबकि स्पेशल कवरेज न्यूज ने इनकी आवाज 25 अक्टूबर से अनवरत उठाई तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने अंतिम सत्र की कार्यवाही मे 2000 हजार वेतन बढ़ाया वो भी इन्हे अब तक नहीं मिला कारण चाहे जोप भी रहा लेकिन सरकार की भी जिम्मेदारी है कि इन्हे बीजेपी द्वारा की गई घोषणा के मुताबिक 17000 हजार का वेतन दिया जाए ताकि चालीस हजार से ज्यादा अनुदेशक अब घटते घटते 27000 हजार रह गए है,। इनके परिवार मे खुशहाली या जाए।
अनुदेशक आज सरकार के प्रत्येक काम करता है। पढ़ाई के अलावा चुनाव के काम जिले के काम कोरोना मे ड्यूटी और सरकार द्वारा सृजित की जाने वाली योजनाओं को लागू करवाने संबंधी सभी कार्य बढ़े मनोयोग से करता है। फिर इसकी अनदेखी क्यों?
वहीं एक और जानकारी है की उत्तर प्रदेश के इलाहबाद हाईकोर्ट ने इनके पक्ष मे 17000 हजार वेतन देने की बात पर मुहर लगा दी है। सरकार जिस पर सुप्रीम कोर्ट चली गई है। जहां आज भी याचिका लंबित है अगर माननीय सुप्रीम कोर्ट भी इस पर अपना फैसला सुनाता है तो अनुदेशक के पक्ष मे ही आएगा इस पर भी अनुदेशक कोर्ट की और कातर दृष्टि से देख रहा है।