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तलाक के नाम पर पत्नी ने लिए 40 लाख, बाद में नहीं लिया तलाक, कोर्ट ने कहा-हर बार पति ही गलत नहीं होता
बेशक तलाक के बाद पति-पत्नी के रास्ते अलग-अलग हो जाते हैं. लेकिन, संभव है कि कुछ लक्ष्य दोनों के लिए बने रहें. लेकिन फैमलि कोर्ट के एक मामले में सत्र अदालत ने निचली अदालत के फैसले को तर्क-विहीन करार दिया है।
सत्र अदालत ने कहा कि पति-पत्नी के विवाद में हर बार पति गलत नहीं होता है। अदालतों को पुरुष पक्ष को भी इतमिनान से सुनना चाहिए। सत्र अदालत ने यह टिप्पणी निचली अदालत द्वारा पत्नी को प्रतिमाह 25 हजार रुपये के गुजाराभत्ता आदेश को रद्द करते हुए की है। सत्र अदालत ने कहा कि पति के वह तमाम साक्ष्य मौजूद हैं जो बताते हैं कि वह पहले ही पत्नी को 40 लाख रुपये एलीमनी के तौर पर दे चुका है।
पटियाला हाउस स्थित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश प्रवीण सिंह की अदालत ने इस मामले को दोबारा विचार के लिए संबंधित अदालत में भेजा है। अदालत ने कहा कि पति की तरफ से दायर पुनर्विचार याचिका के साथ वह सब दस्तावेज लगाए गए हैं जिनसे पता चलता है कि उसने वर्ष 2014 में ही पत्नी को 40 लाख रुपये एलीमनी(एकमुश्त निर्वाहन राशि) के तौर पर दे दिए थे। इस रकम पर पत्नी वर्षों से प्रतिमाह ब्याज के तौर पर 34 हजार रुपये प्राप्त कर रही है। बावजूद इसके निचली अदालत ने तथ्यों को देखे बगैर 25 हजार रुपये के प्रतिमाह का गुजाराभत्ता कर दिया। इस तरह पत्नी को प्रतिमाह गुजाराभत्ते के तौर पर 59 हजार रुपये मिल रहे थे, जो उसके पति की मासिक आय से कहीं अधिक है।
दरअसल सत्र अदालत के समक्ष पति द्वारा वह साक्ष्य पेश किए गए जिसके मुताबिक पति-पत्नी के बीच विवाद के चलते इन्होंने आपसी सहमति से कोलकत्ता अदालत में तलाक की याचिका दायर की। पहली तारीख(मोशन) पर पति ने 20 लाख रुपये पत्नी के खाते में जमा करा दिए। वहीं दूसरे मोशन से पहले भी 20 लाख रुपये जमा करा दिए गए। लेकिन यहां पत्नी ने कथिततौर पर दिमाग का इस्तेमाल किया और 40 लाख रुपये मिलने के बाद तलाक की अंतिम सुनवाई पर नहीं पहुंची। अदालत ने कई तारीखें डालने के बाद तलाक याचिका को खारिज कर दिया था। पत्नी की तरफ से भी सत्र अदालत में माना गया कि वह 40 लाख रुपये ले चुकी है। साथ ही उसके ब्याज के तौर पर 34 हजार रुपये प्रतिमाह मिलते हैं।
सत्र अदालत ने निचली अदालत के निर्णय पर सवाल खड़ा करते हुए कहा कि अगर संबंधित अदालत पीड़िता को 25 हजार रुपये गुजाराभत्ता राशि ही दिलाना चाहती थी तो उसे यह निर्देश देना चाहिए था कि पत्नी एलीमनी के तौर पर मिले 40 लाख रुपये के ब्याज के एवज में प्रतिमाह मिलने वाले 34 हजार रुपये में से 25 हजार अपने पास रखकर बकाया 9 लाख रुपये की राशि पति को हर माह वापस लौटाए। परन्तु ऐसा नहीं किया गया।