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योगेन्द्र यादव को संयुक्त किसान मोर्चा से एक महीने के लिए किया गया निलंबित, जानें ऐसा क्यों हुआ?
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योगेन्द्र यादव को संयुक्त किसान मोर्चा से एक महीने के लिए निलंबित कर दिया गया क्योंकि उन्होंने एसकेएम के अनुशासन को तोड़ा है, लेकिन अब वह इसे अपनी PR के लिए एक अवसर का उपयोग कर रहे हैं।
विभिन्न साक्षात्कार में जो बयान सामने आ रहे है या प्रबंधित कर रहे हैं, उससे ऐसा प्रतीत होता है की उन्हें मानवता के चैंपियन के रूप में चित्रित किया जा रहा है और इस तरह से चित्रित किया जा रहा है कि अन्य सभी एसकेएम नेता अमानवीय हैं।
अब मीडिया और आंदोलन के आलोचक आसानी से अनुमान लगा सकते है कि एसकेएम ने एक व्यक्ति को दंडित किया है जो मानवता के मार्ग पर चल रहा है। इस पहलू ने न केवल इस विचार को मजबूत किया है कि एसकेएम अमानवीय घटनाओं का बचाव कर रहे हैं और मानवता चैंपियन के प्रतीक योगेन्द्र यादव को दंडित कर रहे हैं।
आपको दूसरे गांधी के रूप में चित्रित किया जा रहा है, आपको पता होना चाहिए कि एसकेएम में किसी भी संगठन ने आपके कृत्यों का बचाव नहीं किया है, हालाँकि बचाव करने वाले आपके लिए सिर्फ कम सजा की मांग कर रहे थे और उन्होंने यह कभी नहीं कहा कि आपने लखीमपुर में एक आरोपी के घर जाकर सही काम किया है।
यह स्पष्ट रूप से भाजपा के उस कथन का समर्थन करता है कि एसकेएम ने आंदोलन जारी रखने के लिए नैतिक आधार खो दिया है। समाज में मानवता,मूल्यों और उच्च स्तर की कमी को लेकर अगर आप टैगोर और गांधी को उद्धृत कर रहे हैं, आपको यह समझना चाहिए कि टैगोर ने गांधी को महात्मा कहा था, लेकिन एसकेएम के टैगोरों द्वारा आपको बैठक में जो भी कहा गया उसको आप भली भाँति जानते हैं। इसलिए खुद को गांधी के रूप में चित्रित करने की कोशिश न करें क्योंकि जो गांधी को दंडित करता है और उनकी आलोचना करता है वह नाथूराम और आरएसएस बन जाता है। स्वचालित रूप से और इस परिदृश्य में आप पूरे एसकेएम नेतृत्व को उस श्रेणी में डाल रहे हैं।
इसके अलावा आपने रमन कश्यप परिवार को सिख रीति-रिवाजों में पराया महसूस कराने वाले जैसे लेख में जो भी विचार व्यक्त किए हैं, शुभम मिश्रा के अपराध पर सवाल खड़े करकर, ऐसे बिंदुओं पर विचार व्यक्त किए हैं जिनका विश्लेषण विपरीत शिविरों द्वारा अलग-अलग तरीके से किया जा सकता है और एसकेएम के ऐक्शन को विरोधियों के कठघरे में रखे जाने से कम नहीं है। आपके इस वक्तव्य से एक अजीब स्थिति उत्पन्न हो गयी है।
लेकिन आप कभी उन क़िसानो के घर नहीं जाते जिसकी बिना किसी बात के दुर्भाग्यपूर्ण हत्या कर दी गई क्योंकि राजनीति और सामाजिक जाति संरचना में भी उनका बहुत बड़ा कद नहीं था। पीड़ितों को चुनने में कामरेडों के चयनात्मक होने के बारे में आपके विचारों ने उन्हें बांग्लादेशी मुस्लिम शरणार्थी और असम के मूल निवासियों (हिंदू) के उदाहरण का हवाला देते हुए गलत अर्थ निकाल दिया है। आपने आरएसएस/भाजपा के आख्यानों के हित में काम किया है। और इसका जवाब एसकेएम की अगली मीटिंग में माँगा जाएगा।