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एक बार फिर से कोविड की आहटें सुनाई पड़ रही हैं। चीन में एक बार फिर से महामारी फैल गई हैं और भारत सरकार भी इसे लेकर सचेत हो गई है। सरकार की तैयारियों से ऐसा लग रहा है कि एक बार फिर लॉकडाऊन लगाया जा सकता है।
लॉकडाउन लगाए जाने का अर्थ है गरीब और मध्यमवर्ग की आर्थिक तबाही।
कहा जाता है कि कोविड को अगी कड़े लॉकडाउन के सहारे रोका नहीं गया होता तो मानव-आबादी का एक बड़ा हिस्सा इसकी भेंट चढ़ जाता। लेकिन इस बात की सच्चाई पर दुनिया के अनेक प्रतिष्ठित वैज्ञानिक और ऊंगली उठाते रहे हैं।
इन विशेषज्ञों का कहना है कि कोविड के कारण नहीं, बल्कि लॉकडाउन के कारण दुनिया भर में लाखों लोग मारे जा चुके हैं और लॉकडाउन खत्म होने के बावजूद, इसके प्रभाव के कारण भारत समेत अनेक मध्यम व निम्न आय वर्ग के देशों की अर्थव्यवस्था तबाह हो चुकी है। करोड़ों लोग गरीबी और बदहाली में जीने के लिए मजबूर होकर मारे जा रहे हैं।
अगर एक बार फिर से प्रतिबंध लगाए जाते हैं तो हालत और बुरे हो सकते हैं।
इस मुद्दों पर हम आज अपने साप्ताहिक शो 'संक्रमण काल' में डॉ प्रमोद रंजन से सुनेंगे।
डॉ प्रमोद रंजन ने कोविड से संबंध में अनेक लेख लिखे हैं, जिनके अनुवाद विश्व के अनेक देशों की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं। इनमें अंग्रेजी के अतिरिक्त जर्मन और स्वीडिश भाषा की पत्रिकाएं भी शामिल हैं।
वर्ष 2020 और 2021 के दौरान लिखे गए अपने लेखों में उन्होंने बताया था कि किस प्रकार कोविड महामारी के बहाने कुछ बहुराष्ट्रीय कंपनियां दुनिया को अपनी मुट्ठी में करने की कोशिश कर रही हैं।
आज हम उनसे समझने की कोशिश करेंगे कि कोविड का यह नए वेरियंट बीएफ 7 क्या है और कोविड का इस कथित नए दौर से हमारी जिंदगियों में क्या परिवर्तन होने की आशंका है?