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रिन्युबल एनेर्जी और इलेक्ट्रिक वाहनों की सब्सिडी हुई दोगुनी से ज्यादा
भारत द्वारा अक्षय ऊर्जा और इलेक्ट्रिक वाहनों पर दी जाने वाली सब्सिडी वित्तीय वर्ष 2022 में दोगुनी से भी ज्यादा हो गयी है। मगर सरकार के सामने आने वाले वर्षों में देश के जलवायु सम्बन्धी लक्ष्यों को हासिल करने के लिये इस रफ्तार को बनाये रखने की चुनौती होगी। इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट (आईआईएसडी) द्वारा आज जारी की गयी रिपोर्ट में यह बात कही गयी है।
'मैपिंग इंडियाज एनर्जी पॉलिसी 2022 (अपडेट): ट्रैकिंग गवर्नमेंट सपोर्ट फॉर एनर्जी' शीर्षक वाले इस अध्ययन में पाया गया है कि वित्तीय वर्ष 2022 में अक्षय ऊर्जा के लिये 11529 करोड़ रुपये रही, जो वर्ष 2021 में 5774 करोड़ रुपये थी, वहीं इसी अवधि में इलेक्ट्रिक वाहनों पर सब्सिडी में 160 प्रतिशत का उछाल आया और यहां 906 करोड़ रुपये से बढ़कर 2358 करोड़ रुपये के रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गयी।
अध्ययन में पाया गया है कि यह उछाल बेहतर नीतिगत स्थिरता, सोलर फोटोवोल्टिक की स्थापना में 155 प्रतिशत के उछाल और कोविड महामारी के बाद अक्षय ऊर्जा क्षमता में वृद्धि का परिणाम है। फिर भी, इस रुख की पुष्टि के लिये सरकार को सब्सिडी, सार्वजनिक वित्त और सार्वजनिक स्वामित्व वाली कम्पनियों द्वारा निवेश रूपी सहयोगी उपायों को अगले कुछ वर्षों के दौरान और बढ़ाने की जरूरत है ताकि वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट गैर जीवाश्म विद्युत उत्पादन क्षमता हासिल की जा सके और वर्ष 2070 तक भारत को शून्य उत्सर्जन करने वाला देश (नेट जीरो) बनाया जा सके। ऐसा इसलिये है कि वित्तीय वर्ष 2022 में भारत साफ ऊर्जा के मुकाबले जीवाश्म ईंधन को अब भी चार गुना ज्यादा सहयोग कर रहा है। हालांकि वित्तीय वर्ष 2021 से ही इसमें उल्लेखनीय रूप से कमी आ रही है, जब सहयोग को नौ गुना बढ़ाया गया।
आईआईएसडी के पॉलिसी एडवाइजर और इस अध्ययन के सह लेखक स्वास्ति रायजादा ने कहा "भारत द्वारा जीवाश्म ईंधन को निरंतर समर्थन दिया जाना इस देश के ऊर्जा पहुंच, ऊर्जा सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन सम्बन्धी मुद्दों को संबोधित करने के दीर्घकालिक उद्देश्यों के अनुरूप नहीं है। सरकार द्वारा अपने सहयोग
को जलवायु सम्बन्धी लक्ष्यों के अनुरूप बनाने के लिये इस मदद को जीवाश्म ईंधन के बजाय साफ ऊर्जा की तरफ मोड़ना होगा। इन कदमों में वर्ष 2070 तक नेट जीरो के अपने दीर्घकालिक लक्ष्य को हासिल करने के लिये निवेश सम्बन्धी स्पष्ट योजनाएं और अंतरिम लक्ष्य विकसित करना भी शामिल है।"
अध्ययन में पाया गया है कि वित्तीय वर्ष 2022 में कोयले, जीवाश्म गैस और तेल पर कुल 60,316 करोड़ रुपये की सब्सिडी दी गयी जो वास्तविक मायनों में वित्तीय वर्ष 2014 के मुकाबले 76 प्रतिशत कम है। सबसे खास बात यह है कि वित्त वर्ष 2022 में तेल और गैस सब्सिडी 28% गिरकर 44,383 करोड़ रुपये हो गई- लेकिन इसमें उत्पाद शुल्क में कटौती और डीजल और पेट्रोल पर वैट से राजस्व शामिल नहीं है। कुल मिलाकर, भारत ने वित्त वर्ष 2022 में ऊर्जा क्षेत्र का समर्थन करने के लिए कम से कम 5 लाख करोड़ रुपये दिये। इसमें सब्सिडी के रूप में 2.2 लाख करोड़ रुपये से अधिक शामिल हैं। जीवाश्म ईंधन से सरकार को महत्वपूर्ण वित्तीय संसाधन प्राप्त होते हैं। वित्तीय वर्ष 2022 में सरकार के कुल राजस्व का 19 प्रतिशत हिस्सा यानी नौ लाख करोड़ रुपये ऊर्जा क्षेत्र से ही प्राप्त हुए थे। आईआईएसडी के विशेषज्ञों ने पाया कि जीवाश्म ईंधन से उत्पादित बिजली से सरकार को मिलने वाले राजस्व के मुकाबले समाज को उसका चार गुना खामियाजा भुगतना पड़ता है।
रिपोर्ट में पाया गया कि सामाजिक लागत के रूप में भारतीयों को जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल करने के लिये 14 लाख करोड़ रुपये से लेकर 35 लाख करोड़ रुपये तक की कीमत चुकानी पड़ती है। उन्हें यह खामियाजा वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के रूप में चुकाना पड़ता है और इसमें प्रभावों के विस्तार और अनिश्चितता की झलक की एक पूरी श्रंखला शामिल है। रायजादा ने कहा "सरकार के पास लोगों और व्यवसायों को स्वच्छ ऊर्जा में परिवर्तन करने में मदद करने के लिए रणनीतिक रूप से इस विशाल ऊर्जा राजस्व का इस्तेमाल करने का सही मौका है। लंबे समय में यह न सिर्फ जीवाश्म ईंधन की सामाजिक लागत को कम करेगा बल्कि भारत में एक स्वच्छ और अधिक किफायती ऊर्जा प्रणाली को आकार देगा।"