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- युमना एक्सप्रेस वे...
युमना एक्सप्रेस वे हादसा में सबसे पहले पहुंचे निहाल सिंह ने बताई पूरी बात, और रो पड़े जब एक घायल ने पैर पकड कर कही यह बात
सुबह करीब चार बजे जब जनरथ बस झरना नाले में गिरी तो उस वक्त चौगान गांव, एत्मादपुर का निहाल सिंह खेत में था. धमाके की आवाज़ सुनकर निहाल दौड़ा चला आया. सबसे पहले निहाल ने ही राहत कार्य शुरु किया था. कई घायल को बाहर निकाला. पुलिस को सूचना दी. गांव से भी दूसरे लोगों को मदद के लिए बुलाकर लाया. लेकिन बस तक सबसे पहले पहुंचने वाले निहाल ने आंखों देखा जो मंजर बताया उसे सुनकर किसी का भी कलेजा कांप सकता है. कई दिन, महीनों और साल तक हादसे की तस्वीर दिल-दिमाग पर असर कर सकती है.
किसान निहाल ने बताया, "ड्राइवर साइड से बस नाले में आधी डूब चुकी थी. बस के शीशे बंद होने के कारण कई लोग हाथ-पैर चला रहे थे. चंद मिनट में ही खून बस से बहकर नाले के पानी में मिलने लगा था. जिंदा लोग कम और लाशों के ढेर ज्यादा नज़र आ रहे थे. गांव तक मदद मांगने जाता तो काफी देर हो जाती. इसलिए जितनी हो सके पहले अकेले ही लोगों को बचाने की ठानी.
जो लोग चिल्ला रहे थे उन्हें किसी तरह से खींचकर बाहर लाया. इसी बीच एक घायल ने मेरा पैर पकड़ लिया. बोला अंदर मेरी बच्ची और पत्नी है. अगर देर हो गई तो वो मर जाएंगे. यह सुनकर मेरी आंखों से आंसू आ गए. लेकिन मैं अकेला क्या कर सकता था. जो भी घायल पास नज़र आ रहा था और आसानी से निकल सकता था उसे पहले बाहर ला रहा था.
जब मुझे लगा अब मैं अकेला कुछ नहीं कर पाऊंगा तो गांव की ओर दौड़ लगा दी. उसे पहले एक घायल यात्री का मोबाइल लेकर 100 नम्बर पर पुलिस को सूचना दे दी. गांव से भी कई लोग आ गए. गांव में एक जेसीबी थी उसे भी ले आए. अब लोगों के कराहने की आवाज़ तो आ रही थी लेकिन कराहने वाले दिखाई नहीं दे रहे थे. इतनी लाशें पहली बार देखी थी. एक-एक लाश को हटाकर घायलों को तलाशने लगा.
दो-दो, तीन-तीन लाशों के नीचे बेहोश हो चुके घायल दबे हुए थे. 6 घायलों को तो खुद मैंने अकेले ही लाशों के नीचे से निकाला. कराहने की आवाज़ का पीछा करते हुए घायलों को तलाशने का काम किया."